बांस रहे न बजे नह बाँसुरी – कवि स्व अजयदान जी लखदान जी रोहडिया
🌹सवैया🌹
दूध की सुधि नहिं बछरानहु, पागुर और न गाय करे है|
पौन समर्थ रहै नँह गौन हू मंद ही मंद वही विचरे है|
चालत सूर्य सुता जल ह्वै थिर भूधर होत द्रवित झरे है|
आलि!कहा कहों जो मुरली मुरलीधर ले अधरान धरे है||१
मोर भुजंग फिरै संग हि संग, बैर पुरातन सारे बिसारी|
केहरि हीरन हु मिली खेलत, प्रेम की रीति पुनीत सुधारी|
गोपिन के तन ताप रहै नहि, आग उगालत शीतल वारि|
बाजति है जब माधव के अधरों से सुधा सनी बाँसुरी प्यारी||२
चैन नहीं चतुरानन को छिन बुद्धि गजानन की बनी बौरी|
शंकरजू की समाधि रही नहीं, नारद नें निज बीन मरोरी|
छोरि बिमानन को असमानहि आवत देव छिपै ब्रज दौरी|
बाल गुपाल नें बेणु बजाय के डारि है देवन पें यूं ठगोरी||३
हाल न केवल गोकुल को यह हे वृषभानु महान की जाई|
नाक, रसातल, भूतल में, सबकी मति की गति बेणु चुराई|
नैन न नींद न चैन न चित्त हू, जौ लों नहीं सुरी कान्ह बजाई|
सांची सुनावत नीकी सखी!सुनु, बाँसुरी ह्वै मनु बैरिनि आई||४
ध्यान रहै न मुनिजन को जब, और की कौन बिसात चली है|
चोरत ये सचराचर के चित्त, चातुर चोरनि ऐसी छली है|
काह बखान विशेष अली! कहों, मानों सुधानिधि मांहि पली है|
बाजत है ब्रजराजहु की जब जादु भरी मुरली सुरली है|
ठाढि जहाँ की तहाँ रहती हम गेह की देह की सुधि बिसारी|
लाज न पाज रही उर अर्णव निल्लज सी कुलकानि निवारी|
पीपल पात सो डोलत चित्तरु , बुद्धि भ्रमित भयी है हमारी|
जादु कियो जग में वृषभानुजा!बेशक बेणु बजाय बिहारी||६
गोकुल की गलियाँ गलियाँ मह बात बढी उस काल हु ऐसी|
गोपिन नें मिल एक सभा भरी, पुरब में न भरी कबू वैसी|
राधिका ताकि बनीं सरपंचिनी,प्रश्न कियो थी परिस्थिति जैसी|
बेणु बजै ब्रज में कबहु नहीं , आली! सलाह बतावहू ऐसी?||७
आपनि आपनि पौर तें नारे लगावति आली!चलो मरदानी|
“अज्जय” जाय दिशा विदिशानहु बांस के बंस में आग लगानी|
बांस रहै न बजै नहीं बांसुरी” बोल उठी इम राधिका रानी|
बाजि उठी इतनें मँह बाँसुरी भागी सबै अनुराग भुलानी||८
~~कवि स्व अजयदान जी लखदान जी रोहडिया
गांव- मलावा,तहसील रेवदर-जिला सिरोही,राजस्थान