बच्चे – ग़ज़ल – राजेश विद्रोही

bachche

हमारे मुल्क में मासूमियत खोते हुये बच्चे .
लङकपन में बुजुर्गों की तरह होते हुये बच्चे ..

कहीं से भी किसी उम्मीद के वारिस नहीं लगते .
घरौंदो की बगल में बेबसी बोते हुये बच्चे ..

उदय होते हुये भारत की शाईनिंग पे धब्बा हैं.
अभावों की सङक पर गिट्टियाँ ढोते हुये बच्चे .

वतन के रहबरों से एक दिन इन्साफ माँगेंगे .
ये जूठी पत्तलें चुनकर जवाँ होते हुये बच्चे ..

सजीले शीशमहलों के लिये बदकार गाली हैं .
फटा अखबार ले फुटपाथ पर सोते हुये बच्चे ..

~~राजेश विद्रोही (राजूदान जी खिडिया)

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