बड़े मियाँ – राजेश विद्रोही(राजूदान जी खिडिया)

सबकी सुनकर भी अपनी पर अड़े हुये हैं बड़े मियाँ
लोग शहर के कैसे चिकने घड़े हुये हैं बड़े मियाँ
पहले यूं ख़ुदगर्ज़ नहीं था कुछ अपनापा बाक़ी था
आख़िर हम भी इसी शहर में बड़े हुये हैं बड़े मियाँ
ये मत सोचो इस मरभुख्खे गाँव में क्या तो रक्खा है
जाने कितने बड़े ख़जाने गड़े हुये हैं बड़े मियाँ
चांद सितारों पर जा पहुंचे दुनियां के सब लोग मगर
आप और हम तो उसी सतह पे खड़े हुये हैं बड़े मियाँ
कहने को तो बाजारों में आम हो गये ‘आम’ मगर
ये तो सबके सब आंधी के झड़े हुये हैं बड़े मियाँ
भाई भाई की रंजिश में पंच कहां से आ टपके ?
हर कुनबे में अक्सर दो दो धड़े हुये हैं बड़े मियाँ
जब जब झोंपड़ियाँ सुलगीं हैं जब जब भी खलिहान जले
राजमहल पर पहरे क्योंकर कड़े हुये हैं बड़े मियाँ ?

~~राजेश विद्रोही(राजूदान जी खिडिया)

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