बगत
पैला री बातां
गैलै ज्यूं बैलै क्यूं है!
बावल़ा निजरां देख
जागतो सपना देखण री लत विसार दे
बगत थारै साम्हो है-
फगत देखण री तोजी कर
होल़ी धुखती दीखै है
हमझोल्यां रै हिंयै में
प्रीत री जागा
तूं देख तो सरी
मीत मीत रा लागोड़ा है
पग बाढण नै।
किण विध बचेला तूं!
पग- पग माथै
फण फैलायां बैठा है फणधारी
दिल में खोटी धारियां
मोटी बातां रै पाण
जाणै है अटकल़
नाक बाढ अपसुगन करण री।
बगत बावल़ो होग्यो है
जद ही तो लेवै है
आंटां आपसरा
धर्म री आड़ में
बाड़ में मूत वैर काढणिया
भाई -भाई में राड़ करावण री
जाणै है जुगत
क्यूं कै भल़ै
मिल़ै कै नीं बगत
किणी सुखी घर रो
सुख खोसण सारु
आवै कै नीं ऐड़ो अवसाण
कै
हिंदू मुसलमान री आड़ में
किणी निबल़ी
भूख सूं बाथेड़ा करती
बिलखती मा री
लाठी खोसण रो
आवै कै नीं ऐड़ो अवसाण
कांईठा?
जद ई तो मोको है
मिनखमार होल़ी रमण रो
ओ ई ऐड़ो अवसाण चढियो हाथां
जिणरी बातां- बातां में
कोयलड़ी सिध चाली री मीठी राग में
करलाटियै मचावण रो
कई चूड़ा खांडा कर
हाथां री उतार मैंदी
आल़ै रै उडियै चिड़ियां नैं
बापड़ा कर
रोटी विजोग करण रो।
~~गिरधरदान रतनू “दासोडी”