बजरंग वंदना

।।दूहा।।
उदध उलंगि अडरपण, धिन इक रंगी धीर।
संकट मे संगी सदा, वहा बजरंगी वीर।।
नभ मे नाटक निहारियो, पुगो काटक पास।
झाटक तैं झट झालियो, भड़ दाटक मुख भास।।
।।छंद-रोमकंद।।
नभ मे रवि तेज निहारिय नाटक, राटक रांमत तैंज रची।
अड़ड़ाटक पूगिय जोर उंचांचळ, सांमथ दाटक बात सची।
जबरेल तुंही मुख झालिय झाटक, काटक भोम अंधार करै।
हड़मांन जहांन हुवो दुख हारण, कारण दास पुकार करै।।1
बलवंत बुवो जग जांमण वाहर, लंघड़ सांमद पाज लँगी।
अजरेल त्रिकूट उथाळण आगळ, सांम रै कारज सांम सँगी।
पह सीत रै पास पुगो हरिपायक, सो सुखदायक हांम सरै।
हड़मान जहान हुवो दुख हारण, कारण देस पुकार करै।।2
वन मे बड़ तोड़ मरो़ड़ विधूंसिय, धूंसिय धाकड़ पेख धरा।
कर रीस कुमार जु भांगिय कंधड़, जो भड़ लायन बीह जरा।
मिथुलेस सुता तण सोग मिटाविय, धीस निसांणिय दीठ धरै।
हड़मान जहान हुवो दुख हारण, कारण दास पुकार करै।।3
पह दैत भयंकर तो पकड़ै पुनि, बाळ तिहारिय पूंछ बुवा।
सिळकी दसकंध तणी लंक साबत, हेर दनखी नर नार हुवा।
इण लाय मे फादत देखिय अंदर, पाधर वंदर दीख परै।
हड़मान जहान हुवो दुख हारण, कारण दास पुकार करै।।4
इन्द्रजीत अनै लिछमाल अटारिय, भारिय जोध संग्रांम भिड़ै।
कर खांचत बांण कबांण करारिय, छेह दिये बिहूं वीर छिड़ै।
इक तीर लिछू उर मे लगियो इम, पेखत नाथ अनाथ परै।
हड़मान जहान हुवो दुख हारण, कारण दास पुकार करै।।5
हहकार हुवो हरि रै दळ मे हिव, वीर लिछू किम प्रांण बचै।
उणवेळ मही अतुळी बळ आगळ, सांम री कीनिय साय सचै।
भुज तोल उपाड़ उठाड़िय भाखर, जाय सजीवण लाय जरै।
हड़मान जहान हुवो दुख हारण, कारण दास पुकार करै।।6
धिन लाल कछोटिय मांटिय धारण, काढण चांटिय नाथ किती।
पसरी प्रभता प्रगळी इळ ऊपर, आख सकूं नहीं बात इती।
विरदाविय जोस बधै वरदायक, दोयण तूझ री मींट डरै।
हड़मान जहान हुवो दुख हारण, कारण दास पुकार करै।।7
भयभूत पलीत तणो झट भांजण, साकण डाकण नास सबै।
बजरंग पखै नही पीड़रु व्यापत, झांखत रोग न पास जबै।
अहराज गदाधर लाज उबारण, ओ जस गीध सदा उचरै।
हड़मान जहान हुवो दुख हारण, कारण दास पुकार करै।।8
।।छप्पय।।
धिनो गदाधर धीर, वीर हड़मान वडाळा।
भल विरदाया भीर, हुवै हमगीर हठाळा।
मही सेवगां मंड, खळां दळ खंडण कारी।
बळिहारी बजरंग, भोम पर कीरत भारी।
मानजै अरज मरगटगुरां, तवां विगन तूं टाळजै।
सारजै गरज गिरधर सदा, रीझै आणंद राळजै।।
~~गिरधर दान रतनू “दासोड़ी”