बाळपणो बर-बर बतळावै – हेत-हथायां हमैं कठै

“छाती दुखै, गोडा दुखै; छाती दुखै, गोडा दुखै” इण ओळी नैं होळै-होळै बोलतां-बोलतां बां इयांकली गड़कै चाढ़ी कै आखती-पाखती बैठा लोगड़ां री बाक फाटगी। मूंढ़ै सूं आवाज निकाळणै रै साथै-साथै बै आपरै डील अर हाथ-पगां नैं ई इयां संचालित करै हा जाणै कोई सावचेती सूं कीं काम नैं सिग चाढ़तो हुवै। सगळा सोचण लाग्या डोकरां रै हुयो कांई ? अेको सांस “छाती दुखै, गोडा दुखै/छाती दुखै, गोडा दुखै/छाती दुखै, गोडा दुखै/छाती दुखै, गोडा दुखै/छाती दुखै, गोडा दुखै” री रुणकार अेक-डोढ मिनट ताणी इकसार लागती री। सुर होळै सूं तेज, और तेज, और तेज हुयो। छेवट अेकदम सूं रुणकार रुकगी, जाणै कोई “इमरजेंसी-ब्रैक” लाग्या हुवै। बैठोड़ा सगळा लोग कणांई डोकरै री दाढ़ी कानी देखै तो कदै आंख्यां सामी ताकै। कोई डील-डोळ ताकै तो कोई अेक-दूजै रै सामी चितबगना-चक्षु ताणै पण कोई रै ई कीं समझ में कोनी आयो कै अचाणचकै ई डोकरै रै हुयो कांई अर आपां सगळां नैं अै कैवणो कांई चावै। कोई सोचै आज बाबोसा री आसंग कोनी। कोई सोचै डोकरां पर बूढ़ापो हावी हुग्यो इण कारण साठी बुध नाठी वाळो नजारो है। कोई सोचै डोकरियै रा गोडा अर छाती दुखै अर कोठां वाळी होठां आवै, इण कारण “छाती दुखै, गोडा दुखै” री बा”र घालण लागग्यो हुवैलो। पण असल में सगळा गतागम में फंसग्या, समझ में कीं रै ई कीं नीं आयो।
ओ दरसाव 1980-81 ई. रै अड़गड़ै रो है। म्हारै गाम में म्हारा बाबोसा ठाकुर दुर्गादानजी रो झोंपड़ो। सियाळै री रात। रात रा लगैटगै नौ बज्यां रो सो टेम। बाबोसा मजबूत डील-डोळ रा धणी, आछो ठाठो, लांबी दाढ़ी जकी कानां बारोकर आंटा खायोड़ी। माथै पर पाघड़ी। दोवटी री गूगळी धोती अर लट्ठै रो कमीज। लांबी अर भरवां मूंछा, जक्यां पर बार-बार ताव देवता डोकरां बातां रा गडाछा मारता। बै हथाई रा कुशल कारीगर हा। मेह-आंधी ई बां”री हथाई में छुट्टी कोनी हुया करती। झोंपड़ै रै मांय ही धूणी धुकायोड़ी रैवती। धूणी रै डावै पासै छनेड़ी, जकी बळीतै सूं भर्योड़ी रैवती। छनेड़ी कानी बैठणियो आदमी जरूरत मुजब छाणा, मींगणा, मींगणी, थेबड़ी रो टुकड़ो, लकड़ी, सिणियो आहिस्ता-आहिस्ता धूणी में सिरकावतो रैतो। धूणी रै इण ताप रै बळबूतै बो झोंपड़ो बारली सरदी री बेदरदी सूं मांयलां लोगां री पूरी-पूरी रिछ्या करतो। बाबोसा रै झोंपड़ै मेें 10 सूं 12 लोग रोजीनां रात री हथाई में आया करता। लगैटगै नौ सूं ग्यारा बज्यां ताणीं सास्ती चालण वाळी इण हथाई मांय आडैकट पूरै गाम री दिनभर री खबरां, खेती-बाड़ी, ब्याव-सगाई, बैन-सुवासणी, कारू-कमीण, राहू-बटाऊ, हारी-बीमारी, सुओ-सूतक, न्याव-कचेड़ी, हाकम-पटवारी, मेळा-मगरिया आद सगळी समीक्षावां हुया करती। इणमें कोई औपचारिक क्रम तो नीं हो कै कुणसी बात कद करणी पण अनौपचारिक आंटै मांय ई बातां सगळी समेटीज ज्यावती। इण हथाई मांय गाम री हर जात रो आदमी बिना किणी रोक-टोक आया करतो।
कई ताळ सूं पसर्योड़ै मौन नैं तोड़तां बाबोसा बोल्या बताओ आ आवाज क्यांरी ही ? म्हे मन में सोचां आवाज तो थां री ई ही दूजो तो कोई बोल्यो ई कोनी पण बाबोसा नैं जवाब देवतां कीं सोचणो पड़तो। इण कारण बेगो सो कोई बोल्यो कोनी। इत्तै तो बै खुद ही बोल्या अरे भोळां आ रेलगाडी री आवाज ही। रेलगाडी चालै जणां इयां ई बोलै- छाती दुखै, गोडा दुखै; छाती दुखै, गोडा दुखै। म्हे सगळा ओजूं बातां रै भंवरजाळ में फंसग्या। बै बोल्या बापड़ी रेल कठै सूं कठै पूगै? आवै जको ई बीं पर लद्यां जावै, कोई रै दया न धरम। डब्बै पर डब्बा जोड़्यां जावै। कित्तो”क भार ठरड़ै बापड़ी, अरड़ावती अरड़ावती आगलो नीठां ठिकाणो पकड़ै पण उणरो दरद कुण पिछाणै। म्हे उण हथाई में बैठा जकां मांय सूं घणकरां रै बीं बगत ताणी रेलगाडी में चढण रो काम ई कोनी पड़्योड़ो हो। हाँ! दूर सूं रेलगाडी देख्योड़ी जरूर ही, उणरी आवाज ई सुण्योड़ी ही। डोकरां छाती दुखै, गोडा दुखै; छाती दुखै, गोडा दुखै री धुन इयां करी ही जाणै साच्याणी रेलगाडी इयां ई बोलती हुवै। सागण गति, सागण ढाळ। बां अेकर ओजूं बा री बा आवाज अेक-डोढ मिनट पूरी रंगत सूं दोहराई। सगळां नैं बा म्हारणी मन भायगी। म्हे मन ई मन “छाती दुखै, गोडा दुखै; छाती दुखै, गोडा दुखै” नैं बोल”र रेलगाडी चलावण लागग्या।
बाबोसा आगै बोल्या देखो लाडी! पराई पीड़ तो परदेस समान हुवै। जग रो धारो ओ ई है कै दूजै रो फोड़ो तो फुणसी सूं ई कमतर दीखै पण खुद रो दुखणियो ई दोजख जियां बेजां दुखदाई लागै। आदमी रा अै दुपड़पेटा पड़पंच देख”र दिल में दोराई हुवै पण करां कै बगत रो बायरो जियां बाजै जियां बाजै, उण पर किणीं रो जोर कोनी चालै। बाबोसा री बात सगळा ध्यान सूं सुण रिया हा पण अेक नयो टाबर आज ई हथाई में आयो हो, बो बीच में बोल पड़्यो। बो आपरै नानेरै पढ़तो। नाना-नानी रो लाडेसर अर गाम सूं बारै री हवा खायोड़ो। कीं तर्क-वितर्क री ल्याळ लाग्योड़ी। म्हे सगळा तो बाबोसा रै सभाव सूं परिचित हा अर अेक-अेक दो-दो बार बां री फटकार ई सुण्योड़ा हा पण बो भायो नानेरै रैवण रै कारण गाम में दो-पांच दिन ई आवतो इण कारण बाबोसा ई बीं री कोई घणी गिनार कोनी करता। बीं नै कम ई टोकता। बो बोल्यो बाबोसा रेलगाडी तो लोह अर लकड़ी री बण्योड़ी हुवै। बा सजीव नीं निरजीव हुवै। बा तो इंजन सूं चालै। इंजन कोयला खावै अर उणरै लारै कित्ता ई डब्बा जोड़द्यो बो पटरी माथै सरपट दोड़ै। उणरै नां कोई गोडा हुवै अर नां कोई छाती। पछै दुखै कांई अर कियां। पछै उणरै कुणसो मूंढो। रेल मिनखां री भाषा कियां बोल सकै अर आपां कियां समझ सकां? आ तो साव कूड़ी बात है। म्हांनै डर लाग्यो कै आज ईं “नानेरियै नर” री नसां खिंचीजणी तय है। आज इणनैं बाबोसा री फटकार रो सामनो करणो पड़सी पण सागै-सागै आ ई पण ही कै उण भाईड़ै री बात म्हां सगळां नैं ई ठीक अर तार्किक लागी। म्हे ई सोचण लाग्या के रेलगाडी री अर बाबोसा”ळी म्हारणी री धुन तो मिलै पण छाती दुखै, गोडा दुखै री ठौड़ रेलगाडी कीं और आवाज करती व्हेला। म्हे ई बोल्या हां! बाबोसा दूख-पाछ रो काम तो जीवधारियां रै हुवै, उण निरजीव रेलगाडी रै कुणसी पीड़ अर कुणसो पछतावो। बा तो जे मिनखां नैं चींथ ज्यावै तो ई उणरै कोई फरक कोनी पड़ै। उणमें तो कोई संवेदनां रो नामोनिसाण ई कोनी।
संवेदना रो नाम आवतां ईं डोकरां री आंख्यां भरीजगी। बोली कीं घाघी पड़गी। होकै री नाळ पर हाथ फेरतां अेक हळको सो सुट मार्यो अर सगळै धूंवै नैं मांय रो मांय ई गिटग्या। “हंसा उड़ सरवर गया, (अब) काग भया परधान” कैवतां बाबोसा बोल्या कुणसी संवेदनां री बात करो? बापड़ी रेलगाडी नैं संवेदन-बिहूणी बताओ। अर खुद घणां संवेदनांवां सूं भर्योड़ा हो के? कठै अर कुणमें बची है संवेदना। सगळां सूं ज्यादा संवेदनावां रो ग्हो तो खुद मिनखां मोस्यो है। मिनख खुद मिनख नैं मार”र हाथ कोनी धोवै। अेक टेम हो कै गाम में कोई एक मौत-गमी होज्यावती तो पूरै गाम रा चूल्हा कोनी जगता। अर ओ दिखावो कोनी हो आपस रो जुड़ाव इतरो हुया करतो कै भूख-तिस भूलीज ज्यावती। आपस में रळ-मिळ”र काम करता। अेक-दूसरै रै दुख दरद नैं समझता। सामलायत रै काम सारू सगळा कोड कर”र पार पटकण रो मन राखता। आपसरी रो भरोसो अर अधिकार इयांकलो हो कै गामाऊ फैसलां नैं कोई चुनौती कोनी देवतो। कांकड़ री रुखाळ, नाडी-जोहड़ी री सार-संभाळ, कांकड़ रै कार कढ़ावणी, ल्हास-पळासां करणी अै काम संवेदनांवां वाळा लोग करता। अबै होळै-होळै पख परवारीजतो लागै। बै बोल्या तर्क तो कोई कर सकै पण तर्क सदा ताक पर ई रवै उणरो कोई थिरचक आसण कोनी हुया करै। आज बाबोसा कीं गंभीर हुग्या अर बां आपरै जीवण रा कई अनुभव बतावतां पुराणी रीत-रिवाजां री बातां बताई।
बाबोसा सदा ई रिपिया-पीसां री तो खंच ई भोगी पण मिनखां री माया रो तोटो बां कदै ई नीं भुगत्यो। बां आपरै घरै अर खेत में घणो काम कर”र घर वाळां नैं कदै ई कोनी ठार्या पण गाम रै लोगां रै सार्वजनिक रूप सूं काम आवण वाळी सगळी चीजां रा बै गारड़ू हा। बां दिनां गामां मांय कूआं में मोटरां कोनी लाग्योड़ी ही। ऊंठां, भैंसा अर बळदां सूं कूआ जोतीजता। लाव अर चड़स आवश्यक उपकरण हा। बाबोसा लाव बंटण रा चावा कारीगर हा। आसैपासै गामां मांय ई लाव बंटण सारू बांनैं लोग बुलावता अर बै कोई नैं मनां कोनी करता। चैमासै मांय जद जोहड़ी में पाणी भरज्याया करतो तो गामाऊ कूआ बंद हुज्यावता। उण बगत जोहड़ी री रुखाळी करण रो काम सींतमींत में बाबोसा अर बांरा अेक दो संगळिया कर्या करता अर मजाल है कै कोई टाबर ई जोहड़ी मांय न्हाय”र पाणी गंदो करद्यै। जोहड़ी मांय गाम रा सगळा सांसर-ढोर पाणी पीवण आवता। जियां ई पाणी पीयो, बांनैं पाछा घेर देवता। मेह बरसण री आस हुवतां ई जोहड़ी रै लांबै-चैड़ै ताल री साफ-सफाई सारू पूरै गाम में हेलो पड़ावता अर सगळो गाम श्रमदान करतां थकां उण ताल री साफ-सफाई करतो।
गाम में गायां, भैंस्या अर भेड़-बकरियां रा रेवड़ उछरता। चेत-बैसाख में मेह हुयां कांकड़ में कीं चेतवाड़ियो चुड़खो हुतो जद गायां सारू गाम री अेक कांकड़ आरक्षित करण रो काम गाम रा बूढ़ा-बडेरा बैठ”र तय करता। बीं कांकड़ मांय भेड़़ बकरियां रा रेवड़ जावण री मनाही करीजती। सगळो गाम राजीरजा उण आईनां नैं मानतो अर अजै ई कठै-कठै धरम धीरो है तो अै व्यवस्थावां हुवै। आ व्यवस्था खेतां री बिजाई होय”र धन-पसु झल्यां ताणी बरकरार रैवती। धन-पसु झलण रो मतलब जद खेतां में धान ऊगज्यावै तो आप-आपरै मवेशियां नैं गुवाळिया आप-आपरै खेतां में चरावण लागै।
आज री टेम में आपोआप में सिमटीजतै अर संकीर्ण स्वार्थ रो सांसो भोगतै मानखै नैं देख”र बां लोगां री सह-अस्तीत्व अर सामंजस्य री बातां कल्पना सी लागै। “कांकड़ री रुखाळ” वाळो “कांसेप्ट” आज कालातीत हुग्यो पण विचार करो कै गाम री अेक पूरी कांकड़ जिण मांय गायां रै चरण सारू सावळ घास-फूस हुवै उणनैं संरक्षित करीजती। उण कांकड़ मांय गाम रै हर जात अर हर वर्ग रै आदमी रा खेत हुया करता। ओ ई पण हो सकै कै अेक रेवड़ वाळै रा सगळा खेत उण संरक्षित कांकड़ में आज्यावै। उणरै कोई गाय न बाछी। वो तो फगत रेवड़ राखै। बो कैय सकै हो कै भाई म्हें तो म्हारै खेत में म्हारो रेवड़ चरास्यूं, म्हारै थांरी गायां रो कांई लेणो-देणो पण बावजूद इणरै किणी गाम में कोई इयांकलो प्रतिरोध नीं हुयो, ओ आपसी समझ अर साझेदारी रो मोटो प्रमाण है।
बाबोसा बतायो कै सियाळै अर उन्याळै में गामां में लोगां रो नेम हुया करतो कै दिनूंगै उठता जणा आपरै घर री बाड़ रै आस-पास ध्यान करता कै कोई लाचार जिनावर बैसकै (जको कमजोरी रै कारण खुद उठण में असमर्थ हुवै) पड़्योड़ो नीं होवै। जे होवतो, तो दो आदम्यां नैं हेलो कर”र उण सांसर-ढोर नैं पूंछ अर कान पकड़”र सावळ सर उठावता। ज्यादा दब्योड़ो दीखतो तो दो बगळ चारो-फूस आगै राखता। कई बार तो कीं घणां दब्योड़ां रा पग मसळ-मसळ”र बांनै चालण जियां करता। बैसकै ज्यादातर गायां पड़ै। बां बतायो कै जे कांकड़ में बैवतां कोई गाय-सांसर नैं बैसकै पड़्योड़ी देख लेवता तो पै”ली तो खुद उणनैं उठावण री खेंचळ करता अर जे नीं पार पड़ती तो भलांई गाम सूं लोगां नैं बुलावणा पड़ै पण उण जिनावर नैं उठाण”र चलतो-फिरतो कर्या करता।
बाबोसा इयां बोलता-बोलता पासो पळट्यो अर पूछ्यो अरे ओ पढेसरी बता बां गायां री आवाज म्हांनैं कियां सुणीजती। बां री बोली म्हांरै कियां समझ आवती। अर साची तो आ है रे भाई कै ओ आपाणो जीवण अेक रेलगाडी री जात्रा ई है। आदमी खुद रेल रो इंजन बण्योड़ो परिवार रै लोगां रा डब्बां नैं ढोवै पण जे डब्बा आप-आपरी मस्ती में रैवण लागै। खुद री हेंकड़ी में चोड़ा हुया फिरै। म्हे चोड़ा अर गळी सांकड़ी वाळो भरम पाळल्यै। डब्बा कितरा ई मोटा अर मैताऊ हुवो पण बळबळती आग रो ताप तो इंजन सहण करै। इण खातर इंजन रै दरद नैं जे डब्बा समझणो बंद करद्यै तो इंजन रा गोडा अर छाती जवाब देवतां टेम कोनी लागै। बाबोसा लांबी अर गैरी सांस लेवतां बोल्या जे समझ सको तो अेक बातरी गांठ बांधल्यो कै जे थांरै मन में दूजां रै प्रति पवित्र भाव है तो पछै भाठो हुवो वा भाखर, ठाकर हुवो वा चाकर, कंस हुवो वा करुणाकर, कतरो हुवो वा आकर सगळां री अणबोली बोली समझ में आज्यासी अर जे भावां में भूंगड़ा है जणांस बोबीड़ा मार्यां ईं कीं समझ कोनी आवै। आज बाबोसा अर बो सगळो माहौल बीतग्यो। कई बार सोचूं बै हेत-हथायां हमैं कठै?……………………..
~~डाॅ. गजादान चारण “शक्तिसुत”