बनासा री बछेरी सतेज घणेरी – समानबाई रचित बना

बनासा री बछेरी सतेज घणेरी, जीनै राम बना चढ फेरी।।टेर।।
राय आंगण बिच रिमझिम नाचै, जाणै इक इन्द्र परेरी।
हार हमेल हिया बिच सोहे, कनक लगाम खिंचेरी
बनासा री बछेरी सतेज घणेरी………….।।1।।
ओछे पांव बजाय घूघरा, मानो इक भाग्य भरेरी।
इत सूं उत पलटत छबि पावै, चपला कार करेरी
बनासा री बछेरी सतेज घणेरी………….।।2।।
कबहुंक लाग लहर चलि आवै, कबहुंक निरत करैरी।
राजद्वार का चौक बिचाऴै, मछली हेल तिरैरी
बनासा री बछेरी सतेज घणेरी………….।।3।।
शिव सनकादिक औ ब्रह्मादिक, जीकों ध्यास धरैरी।
कहत समान कंवर दसरथ पर, फूल अकास झरैरी
बनासा री बछेरी सतेज घणेरी………….।।4।।
समानबाई कविया ने वैवाहिक रस्मो तथा रिवाजो पर वृहद व उच्चस्तरीय साहित्य का सृजन किया है और सभी जगह बना को रामचंद्रजी के नामसे संम्बोधित करके रचनायें बनाई हैं।
~~प्रेषित: राजेन्द्रसिंह कविया (संतोषपुरा-सीकर)