बीज अर माटी री बंतळ

जद बीज जमीं में गाडीज्यो,
अंतस अकुलायो दुख पायो।
बचबा रा गेला बंद देख
रोयो घबरायो पछतायो।
तद माटी उण सूं यूं बोली
रे बीज मती ना घबरावै।
जो जुड़ै जमीं सूं जड़ उणरी
कोई पण काट नहीं पावै।
साहस कर सीस उठा बीरा
ऐ सगळा द्वार उघड़ जासी।
धरती री काईं बात करै।
थूं आसमान रै अड़ जासी।।

गाडै उणनैं मत गाळ्या दे,
बो घणै हेत सूं बावै है।
थारै मिस खुद रै जीवण रा,
वो सपना सदा उगावै है।
वो एक नहीं उणरै घर री
हर आँख उडीकै है थन्नै।
रे चिड़ी कमेडी काग बटाऊ
सैंग उडीकै है थन्नै।
जिण पल धारैलो जीवटता,
जीवण री जोत जगा लेसी।
जण जण री पलकां बैठलो
आ दुनियां कंठ लगा लेसी।।

जो जो भी माटी सूं जुड़िया,
जग वांनैं हियै लगाया है।
पुरसारथ कीनो पर हित में,
तो जगती ढोल घुराया है।
दूजां हित देही त्यागणियां,
मर कर भी अमर हुवै जग में।
रे बीज! बाजसी बलिदानी,
थूं महामरण रै इण मग में।
हिवड़ै री हूंस तणो हेलो,
जिण पल साचेलो सुण पासी।
थूं मुगत हुवैला माया सूं,
माथै रो बोझ उतर जासी।।

म्हैं देख्यो सगळी दुनियां में,
सुण भाग भलेरो है थारो।
थूं बीज-बाजरो बाजै है,
करसां री आँख्यां रो तारो।
कितराक दाणां री किस्मत में,
ओ सुजस लिखै है आ जगती।
अरबां में मिलसी इक-आधो,
है जिणरै भागां आ भगती।
जो बीज मोद सूं मिल माटी,
करसै रो करज चुकावैलो।
वट-वृक्ष बणैलो वो व्हालो,
कीरत रा कोट बणावैलो।

~~डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’

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