बीसा छंद खोडियार जी रो

🌹छंद रोमकंद🌹
अवनी नभ पातळ और नही कछु, पाणि पवन्न हुता न पृथी।
सब शुन्न चराचर सृष्टि सृजि, सुभ, कारण-पाळण हार कथी।
लख शुन्न सु शुन्न दियां रु लियां लवलेश नही घटियो लखियो।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।1
(शुरुआत में धरती नहीं थी, आकाश नहीं था, पाताल भी नहीं था, पानी नहीं था, पवन नहीं थी पृथ्वी भी नहीं थी। केवल शुन्य ही था। शून्य से सब सचर अचर शुभ सृष्टि का सृजन हुआ। उसकी कारण आप ही थी उस की पालनहार भी हे मां आप को ही कहा गया। लाखों शून्य से शून्य लेने पर या उस में से कुछ देने पर यानी कि जोड़ने पर या घटाने पर कुछ बढा भी नहीं न ही कुछ घटा। ऐसी शून्य से सृष्टि का सृजन करने वाली खप्परवाली हे मां खोडियार आप खमकार करो आप का यह बालक आप को याद कर रहा है।
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अध पख्ख उजाळिय आठम वाळिय, देव दयाळिय दुख हरो।
अधनारि उपाण सँसार अजोनिय, शंकर सँग सदैव फरो।
हणियो हरणाकस ह्वै नरसिंहज, आध पशु नर देह कियो।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळ कियो।।2
शुक्ल पक्ष के अर्ध में यानी शुक्ल पक्ष की अष्टमी वाली हे मां आप है। वह आप की तिथि है। हे दयामयी माता मेरे समस्त दु:खों का निवारण करो। आप अर्धनारीश्वर स्वरुप में संसार की उत्पति करने वाली है। आप अयोनि स्वरूप शिव शंकर के साथ सदैव विहार करती है। आप ही नें तो अर्ध पशु और अर्ध मानव योनि धारी नरसिंह रूप धारण करके दैत्य हिरण्यकश्यप का संहार किया। हे खप्पर वाली मां खोडियार आप खमकार करो आप का यह बालक आप को याद कर रहा है।
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अवनी नभ सूरज चंदर एकज, कल्पतरु सुरभि कहियो।
ब्रह्म ऐक पुरुष प्रकृत्ति कहे वळ, एक परम्म प्रकाश अयो।
जनमं मरणं इक बार जगत्तह, आप समां इक आपज हो।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।3
इस संसार में पृथ्वी, सूर्य, चंद्रमा, कल्पवृक्ष, सुरभी यानी कामधेनु एक ही या अनन्य ही पाई जाती है। ब्रह्म तत्व भी एक ही है, पुरूष तत्व भी एक ही पाया जाता है और प्रकृति तत्व भी एक ही पाया जाता है। परम तत्व भी इस संसार में एक ही है। इस संसार में जैसे किसी भी प्राणी का जन्म और मृत्यु एक बार ही होता है। और ठीक वैसे ही हे मां खोड़ियार आप के समान केवल आप एक ही हो। हे खप्परवाली खोड़ल आप खमकार करो आप का बालक आप को याद कर रहा है, पुकार रहा है।
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दुय पक्ख तथा दिन रात दुहु दुय सुख्ख रु दुःख रु ताप छियां।
रिधि सिद्ध दुहु ज प्रवृत निवृतिय, हाथ रु पांव दुहु ज कह्या।
दुय चख्ख अनुपम कान ज सुंदर, कुंभक दोयज छिद्र मयो।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।4
इस संसार में पक्ष दो है कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। रात और दिवस दो है। सुख और दु:ख। आतप और घना साया।रिद्धि और उसके साथ सिद्धि भी दो के युग्म में।प्रवृत्ति है तो उसक साथ साथ निवृत्ति भी। मनुष्य के हाथ और पैर भी दो की संख्या में है। दो आँखे और दो कान भी है और तो और हे मां निज अपत्य को पियूष पिलाने हेतु जननी स्वरूप में हे पराम्बा आप के स्तन भी दो ही है। हे मां खोडियार खमकार करो आप का यह बालक आप का स्तुति गान कर आप को याद कर रहा है।
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त्रिशगत्त जगत्त महा लखमी महाकाळिय शारद मात महा।
त्रय संझ प्रभात मध्याहन रु भोर ज, नाग सुरां नर तीन कह्या।
त्रिगुणात्मक सत्व रजस्स तमस्स ज, त्रीपुर सुंदरि आप जयो।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।5
इस संसार में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में आप विद्यमान हो। प्रभात और मध्याह्न और सायंकाल के रूप में तीन संध्याए विद्वानों ने मानी है। नर, सुर और नाग कुल तीन के जोडे में है। संसार में त्रिगुणात्मक तत्व सत्व, रजस् और तमस् भी तीन ही पाए जाते है। आप का भी एक नाम त्रिपुरसुंदरी है जिसमें भी तीन की संख्या समाहित है। आप की जय जय कार हो। हे मां खोडियार खमकार करो आप का यह बालक आप का स्तुतिगान कर आप को याद कर रहा है।
तरवेणिय संगम तीन नदी तट, गंग जमन्न रु सारसती।
त्रय काल ज भूत भविष्य तथा व्रतमान, कह्यो समयं जगती।
त्रयनेत्र तणी तरुणी तुम हो कर, जोगण हाथ त्रशूळ गह्यो।।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।6
त्रिवेणी संगम तीन नदी गंगा, यमूना और सरस्वती से बनता है। जगती में त्रिकाल भूत भविष्य और वर्तमान काल को कहा जाता है। शिवा के रूप में आप त्रिनेत्र शिव की तरुणी हो जो सदैव त्रिशूल हाथ में धारण कर के योगिनी के रूप में खडी रहती हो। हे मां खोडियार आप खमकार करो आप का यह बालक आप का स्तुतिगान कर के आप को याद कर रहा है।
त्रयपद्द करम्म उपासन ग्यान ज, सप्तक तार मँदा मधयो।
त्रय दंडिन वाचस मानस कायक, धर्म अरथ्थ रु काम मयो।
त्रय देव बिरंचि हरी हर तौ अग, आप अनूसुय बाळ थयो।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।7
त्रय जोतिष लोक त्रयी त्रय ईषण तीन भुवन्न संसार तथा।
त्रय दोष त्रयी प्रसथान तथा बह्मसुत्र गीताज वेदँत कथा।
त्रिपुरा तव गान करंत सदैवज आणँद मो अदभूत थयो।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।8
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चतुरानन चार मुखां वद चारित, चारह वेद चरित्त कहे।
पुरुषारथ चारह पींड ज चारह चारह वर्ण रु आश्रम हे।
जुग चारहि जोगण आप जगामग, पार नहीं तव कोइ पयो।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।9
चित री नित चार अवस्थ कही चतुवाणिय भेद विदग्ग भणे।
चतु देह मयी विहरे लघु, बाळ कुमार ज जोबन वृद्ध बणे।
जुग देव ज चार प्रकार ज जोगण, मावड ह्वै मन मे बसियो।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।10
चतु भाग्य उपांग ज चार तथा मुख री चतु मुद्र मुनिन्द्र कहै।
महिमा महवाक्यज चार अपारज, भिक्षुक चार भजंत रहै।
चतुरंग चमू चढ पाणिय चारज, भैरवि आप भराथ कियो।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।11
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पच बांण पँचानल पांच लवण्ण रु लक्षण पंच रु पंचसुना।
उपचार ज पांच रु पांच ज पांडव, कारण पांच प्रपंच गुना।
पच तत्व रु पंच मकार कह्या पच, कोषज पंचम आप छयो।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।12
वटि पंच रु वल्कल पंचज कोष तथा पचकारण कर्म पचम्।
विषयं पच इन्द्रीय पँच कही पच प्राण तथाज पँचीकरणम्।
पच गव्य रु गँध तथा पच अमृत, लोवडियाळज आप लयो।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।13
पचकन्यक आपज आइ पृथिपर, आयतनापच देव मयी।
पच प्रांण पँचांग महायग पंचम मातज पंच कथीज मही।
बिरदाळिय बैठ पँचानन वाहर, केहरियौ डणकार कियो।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।14
पच बाण रु अंगुल पांच कथी पच, इन्द्रिय ग्यान मुनीनद्र अखी।
वयवं-पच मातज पंच कथी वळ, पंच ज न्याव करे ज पृथी।
मन अंतस कारण पंचक पंचज, दारुण पातक पंच दह्यो।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।15
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षड राग तथा रस और रिपू षड, दर्शन वेदज अंग षडं।
षड द्रव्य विशैषिक भाष कथे षड, कांड रमायण माय कथं।
ऋतु आप षडं बणने विहरे रहि, पाळक सृष्टि न पार पह्यौ।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।16
षडकर्म मनुष्य तणां कहिया षडकर्म ज योग तणा कहिया।
षडऐशवरायज जोगण सांप्रत, दुर्ग तथा षड है दुनिया।
पय पांन छठी शुभ नाम पडायज, कायम रो उपकार कियो।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।17
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सुर सात रु वासर सात कह्या सत चक्र शरीर तणा कथिया।
सत खास पँचांग कह्या करणं सत भाव रसातल सात वद्या।
सत स्वर्ग रु सात समुद्र कथ्या सत, झूलर जोगण आप जयो।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।18
ऋषिसात, रु सात कुलाचल सातज द्वीपज सात रु मोक्ष पुरी।
वन सातज सप्त प्रकृति कही सपतासज रत्थ अदीत करी।
सपतातम मात री बात अनूपम, पार नहीं जिण कोइ पयो।।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।19
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अठ सिद्ध महा अठ योग ज आठ विधान अठं नमनं कहिया।
अठ कर्म तथा गुण आठ गजां अठ मंगल शंकर मूरतियां।
वसु आठ चिरंजीव आठ तथा अठ भोगज जोगण आप लयो।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।20
लखमी अठ अष्टक छंद लिखै कवि आठ ही जामज आठ गुणां।
अठ धातुमयी शुभ आप विराजर मावड पातक मेट मनां।
वरणां धर वाळिय राजपराळिय, आठम तौ शुभ दन्न कह्यो।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।21
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नवधा भगती नव द्वार नवे रस, भाव नवे नव नाग भणे।
नभ में विचरे नव ग्रह निरंतर, जोतिष काळ अधार बणै।
नवखंड निलांणिय वे अन पाणिय, पूरण मां परथीज पयो।
खमकार करो खपराळिय खोडल याद करे तव बाळकियो।।22
नव रत्न निधी नव नाथ नवे नव मात कथी नवरात नवं।
नवलाखज लोवडियाळ नखत्रह नौलख नौसर हार हुवं।
नवलाख ज फौज जिमाइ जुनागढ, कुल्लड ने अखपात कियो।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।23
नवसो नदियां नवनेज धजाळिय, मंत्र नवार्ण कह्यो ज महा।
रमती दुरगा नव ही नवरातज, आणँद धार अपार अहा।
नव अंक कह्यो सब अंक महि नव, नंद घरां नित मोर कियो।।
खमकार खरो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।24
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अवतार दशे दस थाट दशो दिश, द्वार दसेय शरीर दियां।
विजया दसमी दशशीष दळ्यौ विभु, रामज आपज नाम लियां।
दस मास ही मात रखै निज ऊदर, आप महाविध दस्स अयो।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।25
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अगियारह रुद्र इळा पर औपत, रुप रुद्राणिय होय रमें।
व्रत ग्यारह आप कह्या ज वसू भणि, ग्यारह रोहिणि तूं नभमें।
अगियारह होम कह्या अवनी पर, पाप प्रजाळण पुण्य मयो।।
खमकार करो खपराळिय खोडल याद करे तव बाळकियो।।26
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वसु द्वादस मास अमावस द्वादस, आदित द्वादस है अवनी।
शिव शंकर ज्योतिरलिंग ज द्वादस, बारह राशि वळे बरणी।
वसुधा पर पूनम बार कही शुभ, कुंडळि द्वादस द्वार कह्यो।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।27
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गुण तांबुल तेरह जख्ख ज तेरह तेरह नाट्य अचार्य तथा।
वळ तेर महारथ भारथ रा शुभ तेर नखत्तर योग जथा।
कर औगुण तेरह माफ कहूं मम, आणंद देण अपार अयो।
खमकार करो खपराळिय खोडल याद करे तव बाळकियो।।28
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भुवनं चवदे मनु चौदह रत्न विधा स्वर है दस चार वळे।
वसु माय चवद्दह जाग चवद्दह राम सिया वनवास चले।
शुभ चख्ख कही सपतास तथा दस चार तथा सुरराज थयो।
खमकार करो खपराळिय खोडल याद करे तव बाळकियो। 29
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पनरे तिथि चंद्र कळा पनरे पुनि, धान कहे पनरे प्रगळा।
पनरे पडवा परमाणज पंद्रह हे पनरे हिम ही सगळा।
पनरे दुय पक्ख रु मास बणे ऋतु जेण करी जगतंब जयो।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।30
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उपचारज सोडस पूजन अंब ज, सोल शिंगारज आप सजे।
कल सोडस, सोडसी आप कथी वळ, सोडस मातज आप वजे।
वर्ग सोडस औ सँसकार ज सोडस, चौधडिया दिन रात थयो।
खमकार करो खपराळिय खोडल, याद करे तव बाळकियो।।31
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सतरे लख साख लहै दुनि सांचज धान कणी सतरे धरती।
सतरे शुध भोजन स्वादमयी, सतरे जुध सूर सदा ज रती।
सतरे लख सगं सझी इळ भार, सेस सरूपज आप सह्यो।
खमकार करो खपराळिय खोडल याद करे तव बाळकियो।।32
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अधयाय अठार गीता कहिया महभारत पर्व अठार मही।
वरणी वळ भार अठार वनस्पत साथ पुराण अठार सही।
व्रण आप अठार तणीज वदी, जननी जगदंब ज आप जयो।
खमकार करो खपराळिय खोडल याद करे तव बाळकियो।।33
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बजि हाक सु बीर हुवै उगणीस ज, जोगण झुंण्ड अखाड जमे।
उगणीस अखोहिण सैन समैतज, मात ज चंड रू मुंड दमे।
गरजै घन घोर घटा जिम तूं घण, रणतूर रसातळ होय रह्यो।
खमकार करो खपराळिय खोडल याद करे तव बाळकियो।।34
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जय बीसहथी, कर बीस ज आयुध, बीस ज जंत्र मयी जयदा।
नखवीस तथांगुल देह ज बीसज, है बिसवाविस तूं वरदा।
शुभलाभ प्रदायक रेय सहायक, जोगण तो जसगान कियो।
खमकार करो खपराळिय खोडल याद करो तव बाळकियो।।35
🌹कल़स छप्पय🌹
वसे वरणा मांय, वळे माटेल बिराजै।
राजपरे ले रास, खळां पर धारी गाजै।
संग ले बहनां सात, चारणी अर चौरासी।
जोगण नवलख जुडै, रमे अहनिश गुण राशी।
छपन क्रोड चामुंड सह, बैठी तूं बिरदाळ मां।
करजोड करे “नरपत” नमन, रहजै बस रखवाळ मां।
🌹दोहा🌹
महर करी मातेसरी, हेत धरे सिर हाथ।
बीसा छंद बणावियो, आखर कथ अवदात।।
~~नरपतदान आवडदान आसिया “वैतालिक”