ग़ज़ल: बेलियों नें गाल़ दूं

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धूड पर जाजम धरो री ढाल़ दूं।
बैठ बेली! दीप-तारक बाल़ दूं।।१
चांदणौ चमचम झरे है आभ सूं,
आव पुरसै हेत रौ रस थाल़ दूं।।२
बेलियों रे थाल़ भोजन लापसी,
वाडकी भर घी जिकण पर वाल़ दूं।३
घोडलां नें नाज पाणी खूब द्यूं,
सांढण्यां रे बांध घूंघरमाल़ दूं।४
आभ री धर सिर रजाई ओढ लूं,
बात क्यूं कर आप री म्हूँ टाल़ दूं।।५
क्हूकणौ चावै गज़ल-कोयल अगर,
तौ उणी नें बेसणौ मन-डाल दूं।।६
वै कठै “नरपत” रयी अब गोठडी,
बैठ मीठी बेलियों ने गाल़ दूं।।
~~©नरपत “वैतालिक”

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