बेटी-गिरधरदान रतनू दासोड़ी
बेटै सूं बेटी बती, आगै हुई अमाम।
गुणी लेवै घण गुमर सूं, निरणा ज्यांरा नाम।।१
बेटां वालां इण वसू, हिय पोमै हकनाक।
धर इण उपनी धीवड़ी, नमिया सुरगण नाक।।२
बेटां सूं बेटी बती, समजो सैण सुजाण।
पेखो हिमगर पामियो, महि बेटी सूं माण।।३
पायो मिथुला परघल़ो, जस जनक धिन जोय
सीता कारण सांपरत, दिप्या घराणा दोय।।४
प्रतख भूप पांचाल़ रो, इल़ हद तपियो आप।
पूत जण्या धर पांतरी, बजै द्रोपदी बाप।।५
आई आवड़ ईसरी, मामड़ रै घर मात।
नाम मामड़ रो नेम सूं, पात रटै परभात।।६
अणंदै मीसण रै अखां, पुनि कुण जाणै पूत।
देखो जनमी देवला, सकवी बज्यो सपूत।।८
सढायच भलियै सदन, उपनी देवल एक।
चरणां उणरै चाव सूं, अनमी नमै अनेक।।९
किनियै मेहे रो कहो, जस किण लारै जोय।
कीरत खाटी करनला, करै न समवड़ कोय।।९
कितरा वेदै रै कंवर, कहो मांड कवियाण।
सगती जनमी सैणला, देख नमै दुनियाण।।१०
देखो अल़सी देवडै, जाई लालर जोय।
वैर बाप रो वाल़ियो, देख भुजां बल़ दोय।।११
सगती लिछमी सरसती, जग बेटी में जोय।
वसु जिकै घर वंदना, होड बीजां न होय।।१२
~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी