बेटियाँ – राजेश विद्रोही(राजूदान जी खिडिया)

बाबुल की बेशक़ीमती थाती है बेटियाँ।
बेटे अग़र चिराग हैं बाती हैं बेटियाँ।।
अंजाम हर फ़रज को हमेशा दिया मग़र।
हरग़िज नहीं हकूक जताती हैं बेटियाँ।।
बेटों से एक घर भी संभलता नहीं मग़र।
दो मुख़्तलिफ़ घरों को मिलाती हैं बेटियाँ।।
बाबुल की देहरी से विदाई के बाद भी।
नैहर के नेगचार निभाती हैं बेटियाँ।।
बेटों के बीच बढती दरारों के दरमियान।
कुनबे की अस्मिता को बचाती हैं बेटियाँ।।
अब्बा की आबरू की हिफ़ाज़त के वास्ते।
हर ज़ुल्मो ज्यादती को छिपाती हैं बेटियाँ।।
तुम आज कोख में ही क़तल कर तो रहे हो।
सोचो बड़े नसीब से आती हैं बेटियाँ।।
~~राजेश विद्रोही(राजूदान जी खिडिया)
great sir