भगवा

कुण नै चिंता करम री, करै सो आप भरेह।
पण इण भगवा भेख नैं, काळो मती करेह।।
काळा, धोळा, कापड़ा, या हो नंग धड़ंग।
भारत में है भेख रो, सूचक भगवों रंग।।
भगवैं नै भारत दियो, सदा सदा सम्मान।
भगवैं भी राखी भली, इण भारत री शान।।
जे भगवों भंड जाय, शिवि री करुणा सूखै।
जे भगवों भंड जाय, चाल चाणक्य चूकै।
जे भगवों भंड जाय, बळै सत वाळो बूटो।
जे भगवों भंड जाय, परमहंस फिरै अपूठो।
वेदव्यास नैं बावळो, कह-कह बोलो राखसी।
विमंद विवेकानंद नैं, दंद फंदिया दायखी।। 01।।
जे भगवों भंड जाय, भक्तिमती मीरां भंडै।
जे भगवों भंड जाय, खरी मानवता खंडै।।
जे भगवों भंड जाय, धरम री धाक भंडीजै।
जे भगवों भंड जाय, सनातन साख भंडीजै।
क्यों काळैै करमां कारणै, खुद री कबर खुदायली।
इण भगवैं माथै भार बण, (तूं) धोळां धूळ न्हखायली।। 02।।
~~डॉ. गजादान चारण “शक्तिसुत”