भैरव आरती

दोहा
पुर-काशी-वासी! बटुक!, अविनाशी! चख-लाल!
खर्पराशि! सुखराशि! विभु, नाशी भय भ्रम-जाल!!१
भैरव! भयहर! भूतपति!, रुद्र! वेश-विकराल!!
दास जानि करियो दया, व्योमकेश! दिगपाल!!२
भैरव-आरती
आरती! मधुर उचारती, भारती! भैरवनाथ तिहारी!
दुर्धर-रव! खप्पर कर! अभीरव! जय शमशान विहारी!!१
जय जय!
भैरव आरती! गगन गुंजारती!
आरती! आरती! आरती! आरती!
भयहर! भैरव! भीम! भयंकर!, क्षेत्रपाल! दु:ख हारी!
काशीपुरवासी! सुखराशी!, अविनाशी! अविकारी!!२
श्वान सवारी!, गण-त्रिपुरारी! भस्म रमावत अंगा!
मुंडन माल गले बिच सोहत, सिर पर मुकुट भुजंगा!!३
उरग हार! उपवीत नाग-तन! कुमकुम तिलक कपालं!
चामर, गदा, सदा कर सोहे, खप्पर अरु करवालं!!४
स्वर्ण सिंहासन आप विराजित, रूप-अलौकिक!स्वामी!
छबि निरखत मन तृप्त न होवे, पाहि-माम प्रणमामी!!५
भस्म विलेपित-नील-कलेवर, व्योमकेश! वरदानी!
सुर संतन भक्तन प्रतिपालक, पशुपति अवढरदानी!!६
शीश जटा पर छटा बीज शशि, केश घटा घन-कारी!
विकट अटपटा! रूप भूतपति!, काल-व्याल भयहारी!!७
दंडपाणि! डमरु-कर! डम डम, पद घूंघर घमकावै!
बटुक नाथ! बालक-वपु! सुमिरत, रोग शोक विनसावै!!८
रुण झुण रुण झुण रव कटि किंकणी, ठणण घंटिका बाजै!
अद्भुत नर्तन करत अहर्निश, डमरु शूल कर छाजै!!९
अति-भीषण! असितांग!, उग्र! चंड! अकुल! दिगंबर! व्याली!
वदन-कराल! लाल-चख! उन्मत! क्रोधित! रुद्र! कपाली!!१०
“नरपत” चरण कमल को चेरो, नाथ! रखो नित नेरो!
भव बंधन दु:ख द्वंद्व विदारहु, मिटै जगत को फेरो!!११
~~©डा. नरपत आशिया “वैतालिक”