भैरव चालीसा

भैरव चालीसा
दोहा
श्री गुरु! गणपति विमल मति!, अरु धरि सुरसति ध्यान!
भयहर भैरवनाथ के, करहु कवित-गुणगान!!१
जटा-शीश, उपवीत-फणि, कर-खप्पर, चख-लाल!
श्रीभैरव !भयहरण प्रभु!, अशरण-शरण दयाल!!
चौपाई
जय भैरव! काशीपुर स्वामी!
करतल-सुलभ-सिद्धि! बहुनामी!१
त्रिभुवन-निलय !श्वान-असवारा!!
कलि-मल-संहारक! फणि-हारा!२
कापालिक! दिगवसन! अघोरा!
श्यामल गौर स्वरूप किशोरा!!३
व्योमकेश! भूतेश! भयंकर!
दंडपाणि! डमरु-कर खप्पर!!४
उन्मत ! अति-पावन! शुचि!सुंदर!
दसन-कराल! विकट-मुख! सुखकर!!५
बटुक!बाल-वपु! अतिबलशाली!
श्याम-वर्ण!विकराल कपाली!६
विकट-रूप!जय-कृत-अरि-खण्डम्!
खड्ग-शूल-चामर-कर-दंडम् !!७
कोटिक-पातक-पुंज-प्रजारी!
दृष्टिपात-पावक-चिनगारी!!८
वरदाभयपाणी! सुर भूपा!
रक्त-पुष्प-गल-माल-अनूपा!!९
करुणामय!अतिविस्मित वेशम्!
कुंचित केशम्! श्रीभूतेशम् !!१०
जटाजूट-शिर-चंद्र-मनोहर!
नाग-सूत्र-उपवीत दिगंबर!!११
मृगमद तिलक ललाट विशाला!
सेंदुर-चर्चित-गात्र !कृपाला!!१२
दीर्घ-जिह्व! प्रभु ! कोप-कराला!
ज्वाल-नेत्र विकराल विशाला!!१३
कटि किंकणि! पद घूंघर सोहे!
मुण्ड-माल गल बिच मन मोहे!!१४
ताप-शाप-मोचक! जयकारी!
शशि शेखर! भैरव-वपु-भारी!!१५
भीषण!रुद्र! अभीरव! व्याली!
दीर्घ-काय! मुक्ता-मणिमाली!१६
माल-कपाल-धरण-वर-देवा!
शोक-कलह-भ्रम-दु:ख हर लेवा!!१७
भक्ताभीष्टप्रदायक स्वामी!
वीरभद्र!फणिभूषण!नामी!!१८
असित-अंग-भैरव-जग-पालम्!
महाकालकालं विकरालम्!१९
वज्रकाय! वसु व्योम निवासी!
क्षेत्रपाल! मेटहु यम फाॅंसी!!२०
आपद-उद्धारण-अरि हंता!
अंधक-नाशक! ईश!अनंता!!२१
कालमूर्ति!जय! अंतर्यामी!
शूल-दंड-शर-कर! प्रणमामी!!२२
भीम! त्रिलोचन! द्वंद्व निकंदन!
शरणागत वत्सल! पद वंदन!!२३
मृत्यु-रोग-संकट-भय-नाशी!
सर्वसिद्धिफलप्रद!सुखराशी!!२४
रिद्धि-सिद्धि-नव-निधि के दानी!
काल-पाश-हर! जयति श्मशानी!!२५
डमरू ध्वनि शंखम् गुंजारम्!
झालर घंटा नाद अपारम्!!२६
घूंघर-घम-घम-घम-पद बाजै!
डाक-डमाल-डमरु-कर साजे!!२७
चौसठ योगिनी नाचत संगा!
चहुं दिस बाजत चंग मृदंगा!!२८
चामुंडा चंडी का चेला!
खेलत नवलख बिच अकेला!!२९
काली बजा रही करतारी!
तांडव नृत्य करत अविकारी!!३०
भूत-पिशाच-प्रेत-गण-नाथा!
ऋषि मुनि तुव गावत यशगाथा!!३१
दश दिगपाल रु बावन वीरा!
चितवत तुम को धरि मन धीरा!३२
सुर नर मुनि ब्राह्मण ब्रह्मचारी!
निश दिन अस्तुति करत तिहारी!!३३
विद्याधर! चारण! कवि सारे!
यशोगान कर “नेति” उचारे!!३४
प्रणत-भक्त-जन-पूरित-आसा!
संत सुपोषक! असुर विनासा!!३५
आनंदकंद! भजे !दशपाणी!
महिमा जिहि कि न जाय बखानी!!३६
दरसन करत सकल भ्रम दूरा!
अति दयाल!जय दैत जरूरा!!३७
वरदानी! अति वदन!गंभीरा!
सुमिरत सुलभ सकल वर-बीरा!!३८
स्मरण शीघ्र-फल प्रद! सुखकारी!
अशरण-शरण! हरण भय भारी!!३९
नरपत चरण कमल को चाकर!
युगल रूप! सुर-भूप ! कृपाकर!!४०
दोहा
जय! भैरव! जय! जय! बटुक!, श्यामल गौर किशोर!
कवि-किंकर नरपत चहै, तुव पद-पंकज ठौर!!
~~©डा नरपत आशिया “वैतालिक”