भरतपुर अंग्रेज संग्राम और कविराजा बांकीदासजी आसिया – राजेन्द्रसिंह कविया

कविराजा बांकीदासजी आसिया पहले राष्ट्रीय भावना के प्रबल पक्षधर व स्वदेशप्रेम भावना से ओत-प्रोत कवि थे। कविराज नें डिंगऴ काव्य में अंग्रेजी शासनके खिलाफ बिगुल बजा दिया तथा तात्कालीन राजन्यवर्ग को रजपूती (वीरत्व) रखने के लिए निम्न प्रकार से प्रेरित किया:-

।।दोहा।।
महि जातां चींचाता महऴां, ऐ दुय मरण तणां अवसाण।
राखौ रे कैंहिक रजपूती, मरद हिन्दू की मुसऴमान।।

पुर जोधांण उदैपुर जैपुर, पह थारा खूटा परियांण।
आंकै गई आवसी आंकै, बांकै आसल किया बखांण।।

अंग्रेज अफसरों नेअपने छऴ छंद प्रपंच रच कर सभी देशी रियासतों को साम दाम दण्ड भेदोप चारों उपायों से ईस्ट इंडिया नामक कम्पनी के अधीन करद राज्य बना दिया था, तो बांकीदास का ह्रदय बहुत आहत हुआ और एक सवैया पिंगल में फटकारा कि:-

।।सवैया।।
जाट बृजंद्र कहावत हौ सो, प्रयाग में कैद भयौ नहिं लाजै।
दिक्खन कौ सुलतांन कहावत, विप्र विठौरे के घाट विराजै।।
है रणजीत अजीत कहा भयौ, कंम्पनी के दल पै नहिं गाजै।
आज सवै अकलीमन पै इक, “बंक” फिरंग की नौबत बाजै।।

अंग्रेजों की घातक व कुटिल कुचालों के प्रति एक दोहे में बांकजी ने उनको चुगल व पानी में आग लगाने वाला बताया है।।

।।दोहा।।
चुगल फिरंगी अति चतुर, विद्या तणां विनांण।
पांणी मांहै पलक में, आग लगावै आंण।।

अंग्रेजों के साथ में हुए भरतपुर के संग्राम में इस कविने कहा है कि अंग्रेज किस प्रकार स्वंय विस्तारवादी बनते हुए मुगलों और टीपू सुल्तान के साथ धोखा कर सफल हुए थे।

उतन विलायत किलकता कानपुर आविया,
ममोई लंक मदरास मेऴा।
इलम धुर वहण अंगरेज दाटण इऴा,
भरतपुर ऊपरा हुवा भेऴा।
अली मनसूर रो वंस कीधौ असत,
रेस टीपू विजै त्रंबंक रूड़िया।
लाट जनराऴ जनरेल करनेल लख,
जाट रै किलै जमजाऴ जुड़िया।।

भरतपुर महाराजा ने धूर्त अंग्रेजों का डटकर के मुकाबला किया व अंग्रेज सैनिकों की लाशों से मैदान पाट दिया इस वीरोचित साहसिक कार्य की सराहना में मातृभूमि की रक्षा के पवित्र एवं पावन लक्ष्य का भाव अंतर्निहित होने से बांकीदासजी ने भरतपुर के लिए लिखा है कि:-

अमावड़ वनां में हुई लोथां अनंत,
चढे घोड़ां दिगंत बात चाली।
साथरां दिराणां हजारां साहिबां,
खुरसियां हजारां हुई खाली।।

भरतपुर किले के रक्षक बृजक्षैत्रिय वीर सैनिकों को नन्द के कुमार कहकर बांकीदासजी ने उनके प्रति सम्मान प्रकट किया हैः-

“कपाटां ठिकाणां, ऊभा नन्द रा कुमार”

भरतपुर का किला अंग्रेजों के अधिकार में जाने के पीछे एक षडयंत्र रचा गया था जिसमें जाट महाराजा के धर्मगुरु सलेमाबाद के महन्तजी (निम्बार्क संप्रदाय) की प्रमुख भूमिका थी। वह साधु अंग्रेजों से मिल गए थे। उस नीच व नमकहराम देशद्रोही साधु की बांकीदासजी ने तीखी भर्त्सना में उनके विश्वासघात वृतान्त का वर्णन बड़े ही मार्मिक शब्दों मे किया है एवं महाराजा सूरजमल के बलप्रताप व शौर्य द्वारा एकत्र खजाने को फिरंगीयों द्वारा लूटे जाने की पीड़ा व्यक्त की है ऐसे थे बांकीदासजीः-

।।गीत।।
माल खायौ ज्यांरौ त्यांरौ हियै रती नायौ मोह,
कुबुध्दां सूं छायौ भायौ नहीं रमाकान्त।
वेसासघात सूं कांम कमायौ बुराई वाऴौ,
माजनौ गमायौ नींबावतां रै मंहन्त।।1।।
आगरा सूं लूट सूजै एकठौ कियौ हौ आंणै,
खजांनौ ऊ तूट ताऴा लूटिजियौ खास।
कंपनी सूं भेध मोटौ जोगियां पालटै किलौ,
वैरागियां हूंता हुवौ जाटां रौ विणास।।2।।

एक दूसरे गीत में बांकीदासजीने उस नींबावत महन्त की कटु निंन्दा कर भगवान से आराधना में कहा है कि भगवान इन मोडा साधुओं पर यमराज की गुरज गिराए। तथा दूसरी तरफ आमेर राज की रक्षा में दादूपंथी साधुऔं के बलिदान की प्रशंसा की है।

।।गीत।।
वैरागियां सलेमाबाद रां कांम कीधौ वुरौ,
गेरौ यां ऊपरै रांम काऴ री गुरज्ज।
नागा जो नरांणा वाऴा राखतौ बृजेंद्र नैड़ा,
भरत्तांण वाऴा न को भांजतौ भुरज्ज।।1।।

दादू रां आंबेर चाड केई वारां सीस दीधा,
कूरमां री धरा रा निरभ्भै कीधा कोट,
गुरु व्है सुणाया नांम कंठी बांधी जाटां गऴै,
फिरंग्यां सूं सांधी नींबावतां फोट।।3।।

इस प्रकार बांकीदासजी आसिया अयाची एवं साची बात कहने वाले कवि थे। केवल जोधपुर महाराजा मानसिंहजी को छोड़कर कभी भी कहीं भी नही गऐ परन्तु तत्कालीन रियासतों के साथ अंग्रेजी कंम्पनी की चालबाजी कुचक्रों के बारे में भलीभांति ज्ञान व ध्यान रखते थे। साथ ही वीर एवं बहादुर भारतीय यौध्दाऔं की प्रशंसा तथा इतिहास लेखन में उदारता से अपना कर्तव्य भी निर्वहन करते थे। भरतपुर के साथ हुए छल व धौखे का सार्वजनिक रूप से प्रकाशन कर बहुत ही बड़ा व नेक काम किया था।

~~राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर

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