भूरजी, बलजी पर बड़ौ साणौर गीत – महाकवि हिंगलाजदानजी कविया

।।गीत – बड़ौ साणौर।।

लखे घोर घमसांण ऊडांण ग्रीधण लहै,
अपछरां पांण बरमाऴ ओपै।
ऊगतो विचारै भांण आरंभ इसा,
किसा कुऴ भांण रै सीस कोपै।।

बाट उप्रवाट बहता थका बाहरू,
उरस अड़ि अबीढै घाट आया।
दाटणा जिका कुज्रबाट दीपक दहूं,
थाटणा थाट मुह मेऴ थाया।।

बेवड़ी नाऴ छात्यां चढी बंदूकाँ,
घमाघम ऊपड़ी चाप घोड़ां।
खायगा गिरह धाड़ायत्याँ खोजणां,
दो जणां बिधूंसी फौज दोड़ां।।

धड़ाधड़ कायरां कऴेजा धूजिया,
सड़ासड़ फायरां सुभड़ सूगा।
डाकवां तणां धमचाक हूँता डरे,
होस गुम हाकमां तणा हूगा।।

कँदऴ मच गणै पऴ आव मोतां कमऴ,
हयँद हूकऴ कऴऴराव होतां।
हुवा दऴ पाव चऴ बिचऴ लोप्या हुकुम,
पाव रोप्या अचऴ राव पोतां।।

निसारिपु ढाब सपतास झोकी नजर,
फैर तुपकां गजर पँजर फूटा।
बयऴ ग्रीषम रसम चसम हिरदा बजर,
जजर रा रूप धमजगर जूटा।।

भणै सूरज घणा रंग दोनूं भड़ां,
लड़ै असमाण उतमंग लागा।
हऴवऴां दऴां बेढंग ह्वैता हला,
बला भूरा भला जंग बागा।।

पूर दिल हाम सुर धांम पूगा परा,
बिहूं बीरां सुरां बांम बरिया।
करै रजपूत जिण भांत धाड़ा कर्या,
मरै रजपूत जिण भांत मरिया।।

~~महाकवि हिंगलाजदानजी कविया

प्रातः स्मर्णीय कविया हिंगऴाजदान जी ने वीरता को वरैण्य मानकर स्वतंत्रता के सुपुत्रों का अनेकानेक काव्यों में चरित्र चित्रण किया है उसी श्रृंखला में शेखावाटी के सूरवीर भूरजी, बलजी पर बड़ा साणोर गीत की रचना की है।।

प्रेषित: राजेन्द्रसिंह कविया (संतोषपुरा सीकर)

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