दासोड़ी

राजस्थान सरकार गांव-गांव रो इतिहास लिखावण री सोच रैयी है।
आ बात वास्तव में सरावणजोग है। इण दिशा में म्है, कीं छप्पय आपरी निजर कर रैयो हूं। इण छप्पयां रै मांय म्है म्हांरै बडेरां नैं मिलियै गांवां री विगत बतावण री खेचल करी है।
परमवीर देवराज भाटी रै प्राणां री रक्षा करणियै द्विजवर वसुदेवायत पुरोहित रै बेडै रतन री संतति चारणां में रतनू बाजै। इणी रतनू वंश परंपरा में म्हांरा बडेरा आसरावजी रतनू (सिरुवो) होया जिकां स्वामीभक्ति री मिसाल कायम करतां थकां राव जगमाल मालावत सूं जैसलमेर री रक्षा करी अर दूदा जसहड़ोत नै जैसलमेर रावल़ बणावण में महताऊ भूमिका निभाई। इणी आसरावजी री वंश परंपरा में रतनू भोजराजजी होया। जिणां नै दूदा जसहड़ोत बधाऊड़ा जैड़ो मोटो सांसण दियो। आज रै बाप कसबै री घणकरीक जमी जागा इणी बधाऊड़ा री है। इणी भोजराजजी री संतति रा गांव – दासोड़ी, हरलायां, घोड़ारण, अमरपुरा रै साथै एक दो गांव जयपुर इलाके में है। जद जैसलमेर रावल गड़सी बिखै में हा तो उणां छ: महीणा इणी भोजराजजी रै घरै आपरै रावल़ै सहित रैयर बिताया। भोजराजजी इणां नै घणै सम्मान साथै राखतां थकां इण दूहै नै सार्थकता प्रदान करी-
रावल़ सरणै राखिया, पाया लाख पसाव।
वरण सारै ई भाखियो, रतनू साचा राव।।
इणी भोजराजजी री वंश परंपरा में रतनू आसाणंद होया। आसाणंदजी मध्यकालीन सिरै डिंगल़ कवियां री गिणत में हरोल़ नाम है। इणी आसाणंदजी रै रतनू जीवराज/जीवाणंद होया। जीवराजजी वीर पुरस प्रतिभाशाली कवि कर उदारमना मिनख हा। राव कल्याणमल बीकानेर आपरी बिखै री बगत एकर इणां रा महमान बणिया। इणां कल्याणमलजी नै गोठ दीनी। इण सूं कल्याणमलजी घणा राजी हुया अर कैयो कै आप बीकानेर पधारो, म्है आपनै सांसण देवूंला। जीवराजजी बीकानेर आया अर इणां नै करमीसर गांव दियो। जिको बीकानेर रै एकदम पाखती हो। आप ओ गांव नीं राखियो अर दरबार नै निवेदन करियो कै गांव पाछो ले लिरावो। उण बगत खिंदासर ठाकुर धनराजजी भाटी ई उठै विराजता। उणां रावजी नै कैयो कै जीवराजजी अर म्हांरै पीढियां रों सनातन है। इणां नै म्हारै कन्नै दासोड़ी गांव दे दिरावो।
रावजी उणी बगत ओ गांव, लाख पसाव अर सवारी रो घोड़ो इनायत करियो। जीयैजी रै राघवजी होया अर राघवजी रै बलूजी रतनू होया। जिणां खारी रै मोतीसर पांचाणजी नै एक घणमोलो घोड़ो बगसियो। पांचाणजी रो कैयो ओ दूहो घणो चावो-
बलू थारा बोल, साखां सौ बीसां सिरै।
सारी बात सतोल, रतन जड़ावूं राघवत।।
इणां नै महाराजा अजीतसिंह जोधपुर अरटिया उर्फ समंदड़ा गांव दियो जिको दासोड़ी रै एकदम पाखती है।
इण सगल़ी बातां नै संक्षेप में आपरी निजर कर रैयो हूं
।।छप्पय।।
बधाउड़ो बड वास, दूद भोजै नै दीनो।
जसहड़ जैसलमेर, कायम सांसण युं कीनो।
गड़सी जैसलगिरै, सूर संकट जद सहियो।
उण वरियां उथ आय, रावल़ खट मासां रहियो।
भोजैण बात टोरी भली, पह बडेरां प्रीत री।
रतनुवां ख्यात सधरी रखी, रसा सनातन रीत री।।1
इण भोजै री ऐल़, चारण आसाणंद चावो।
आखर कहण अमाम, थल़ी मुरधर में ठावो।
पात आसै रो पूत, जाण रतनू जीवाणंद।
कमंध कलै नै गोठ, ईहग करी उर आणंद।
बात नै ख्यात कायब विमल़, वीदग सुधमन वाचियो।
जैत रै नंद जिवराज नै, दत करमीसर जद दियो।।2
दूथी आ दरबार, विगत कथ मांड बताई
सांसण सहर नजीक, ऐह गल्ल दाय न आई।
धिन जादम धनपत्त, कलै सूं अरजी कीनी।
खन्नै खिंया रै खास, दत्त दासोड़ी दीनी।
पसाव लाख चढणै पमंग, लहर करी नै जस लियो।
जैत रै नंद जिवराज नै, कर कूरब मोटो कियो।।3
कलै बीकपुर कमंध, ऐण विध सांसण अरप्यो
जद रतनू जिवराज, थान आयल रो थरप्यो।
दासोड़ी दरियाव, चहुंवल़ कीरत चावी।
थल़ी सांसणां सधर, ठीक मुरधर में ठावी।
माड री धरा मंझ माल़वै, मालम नर मेवात रा।
आमेर अहो मेवाड़ इल, जाणै सगल़ी जातरा।।4
पात जियै रै पेख, जोर सुत राघव जायो।
मरद जिको मनमोट, गीत जस कवियण गायो।
गढवी राघव घरै, बलू वो पात बडाल़ो।
साख बीसां सौ सरब, भोम मालम सब भाल़ो।
जोधाणनाथ अजमल जिको, पह सुपातां पारखो।
दिल उदार उण नै दियो, गांम समंदड़ा सारखो।।5
बलू घरै विद्वान, दूद कवि जाहर दाखां।
इस्टबल़ी अजरेल, भगत आवड़ रो भाखां।
वडो पात विजपाल़, पूत दूदै रै पेखो।
खिती जिकण घर खींम, सुजस जिण नहीं सुलेखो।
वीरभाण भाण भोमि परै, खरो प्रगटियो खीमरै।
कृपाराम कवि जिणरै कहो, कीरत रखी कदीम रै।।6
कृपाराम रै कंवर, महादान कवी मानो।
पींगल़ डींगल पटू, जस जिणरो छिती जानो।
बिणरै हुवो वभूत, वीदग वडो वरदायक।
सुत जिणरै सादूल़, लियो जस व्रण में लायक।
‘सिद्धराज’ तणो सेवग सदा, भलो रैयो बण भावसूं।
तरां मूरत वभूतै तणी, चित सुद्ध थरपी चाव.सूं।।7
हेतव भो हरदान, नेस सादुल रै नामी।
इल़ा बात इतियास, खरी कहतो बिन खामी।
हेर घरै हरदान, गुणी गुणजी गुणधारी।
केसव जिणरै कहो, गढव जिणरै गिरधारी।
पितामह पास सीख्यो प्रगट, विगत सुकविता बातरी
रीझनै ऊपर नितप्रत रहै, महर भल़ै चँदु मातरी।।8
~~गिरधर दान रतनू दासोड़ी