बिरहण अर बाँसुरी

बिरहण बोदी बाँसुरी,साजण जिण री फूंक।
घर आयां पिव गावसी,कोयल रे ज्यूं कूक।।१
बिनां फूंक री बाँसुरी,बिरहण अर बिन नाह।
ऐ दोन्यूं है एक सी,जीवण नीरस जाह।।२
बजै बिरह री बाँसुरी, अहनिस बिरहण अंग।
जिण रा सुर सुण रीझता,कविता रसिक कुरंग।।३
बाँसुरिया अर बिरहणी,इण दोन्यूं औ फेर।
परस बजै पिव अधर औ,बा पिव बिरह लहेर।।४
बिरहण बिन- सुर -बाँसुरी,हुई पिया बिन हाय।
राग रिझाल़ू घर नहीं,कुंण अधर रस पाय।।५
बाजै नह मन बाँसुरी, बालम बसै बिदेस।
नवरस अब नीरस लगै,बरसत नैण हमेस।।६
बेणु बजाय’र बिरह री,रीझावूं राजंद।
अवस सुणै आसी पिया,दिल मेटण दुख द्वंद।।७
बैत चार री बाँसुरी,पदमण पांचां हाथ।
एक अधर रस झूरती,दूजी झूरै बाथ।।८
बाजै मीठी बाँसुरी,राजै कर रसराज।
लाजै नहँ लवलेस औ,दाझै बिरहण आज।।९
अरे बाँसुरी !थूं बुरी, छुरी समा तौ बोल।
काटै म्हारौ काल़जो,कानां विख मत घोल।।१०
बडबोली औ बाँसुरी,बोली बैठर होठ।
हूं भोल़ी समझी नहीं,रही ठोठ री ठोठ।।११
बाजी बैरण बांसुरी,गाजी रव गंभीर।
साजी नें माेंदी करी,लाजी नहीं लगीर।।१२
बरजूं थांनें बाँसुरी, बेर बेर मत बाज।
लरजै सुणतां काल़जौ,उर पीडा ह्वै आज।।१३

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published.