बीरवड़ी वंदना

दूहा
चखड़ाई चहूंकूंट में, वरदाई विखियात।
बाई बिरवड़ बीसहथ, सुरराई सखियात।।
अन्न पूरै घर ईसरी, मन नित रखै मराल़।
तन पर राखै ताजगी, सह दिन करै सँभाल़।।
छंद सारसी
अन्नपूर आई चक्खड़ाई, तूं सदाई सेवियां।
बातां बधाई बह बडाई, दख सवाई देवियां।
नरपत नमाई इम अथाई, पहुम बाई परवड़ी।
निज सुजस जाहर चढै नाहर, बणै वाहर बिरवड़ी।। 1
घण खुसी घरही दाट डरही जयो धरही जगतरी।
उठ नमै नरही अपै वरही भीर करही भगतरी।
भुय पिसण परही जोस भरही खरी थिरही पख खड़ी।। 2
इल़ मांण मंडी तूं अखंडी फरक झंडी फरहरै।
थित निजर ठंडी तेज तंडी कज ब्रमंडी तूं करै।
दल़ दूठ खंडी करां दंडी चाड चंडी तूं चड़ी।। 3
नवघ्घण आयो सिर नमायो नूर भायो निरमल़ो।
भोजन बणायो मन्नां भायो उर रँजायो ऊजल़ो।
संको सुणायो वल़ बतायो पक्ख पायो पग पड़ी।। 4
धरपत्त हमीरं छोड धीरं हिव वहीरं होवियो।
गढपत गंभीरं गात पीरं राल़ नीरं रोवियो।
साजो सरीरं कर अमीरं गहर भीरं तिण घड़ी।। 5
हंस रीझ हत्थं दे गरत्थं सुतन सत्थं साजियो।
मेवाड़ पत्तं बह्यो पत्थं गह समत्थं गाजियो।
अह बहै बत्थं सुणां उत्तमं वहा फत्तं बंकड़ी।। 6
सीसोद सारा थया थारा भगत भारा भावसूं।
सांझै सवारा निराहारा चवै चारा चावसूं।
साची सधारा तरण तारा अँवल़ वारा तूं अड़ी।। 7
जातरी जाता मया माता दूध भाता तैं दिया।
गुण तोर गाता खंच खाता कोड ताता वां किया।
बडम्म विख्याता खरी ख्याता चिरत गाथा तो चड़ी।। 8
कवियांण गिरधर सुजस नितकर जोड़ जुगकर जापवै।
दुख ताप परहर सुखद दिनकर अमर संपत आपवै।
अब सजा होफर बैठ उणपर मूझ मोहर मावड़ी।।
निज सुजस जाहर चढै नाहर बणै वाहर बिरवड़ी।। 9
छप्पय
चखड़ाई चहूंकूंट सकल़ जाणै सकल़ाई।
वरदाई विखियात किया महिपाल़ किताई।
नवघण नामी नूंत छतो दल़ बल़ां छकायो।
होय भीर हम्मीर राज चित्तौड़ रखायो।
पवाड़ा अनँत कुण पढ सकै, सुण इतरा स्वीकारजै।
गीधियो कहै बिरवड़ गिरा, धणयप म्हारी धारजै।।
~~गिरधर दान रतनू “दासोडी”