चंवरां वाल़ी चूंप, भुरजां सूं दीसै भली!
झूंपड़ा/झोंपड़ा कभी पश्चिमी राजस्थान की पहचान रहा है। इसे चंवरा भी कहा जाता है। यह अरणी, फोग व आक की छड़ियों तथा डोरियों, बड़ी व गू़छल़ै (सभी सिणिया/चग से बनते हैं) से बनकर, पूल़ो से किड़ा तथा सैवण अथवा मुरट से छज्जा जाता है। अब हर गांव में इसके विशेष कारीगर नाममात्र के रहे हैं।
पहले यह पूरा छड़ियों से बनता था फिर बाद में कच्ची ईंटों से भींत बनाकर ऊपर किड़ा जाने लगा तो यह भींतिया/भींतोरा कहलाने लगा। जिसे महमानों के लिए अलग से बनाया जाता है उसे उतारो, उताक, कोटड़ी वाल़ो झूंपड़ो/भींतियो कहा जाता है।
आज हमने जो बड़े -बड़े कमरे महमानों के लिए बनाएं हैं, वे महमानों के लिए कम व दिखावे के अधिक काम आते हैं लेकिन जब झूंपड़े थे तो वे महमान नवाजी के लिए अपने इलाके में ही नहीं अपितु इतर इलाके में भी अपनी विशेष पहचान रखते थे।
पश्चिमी राजस्थान के लगभग लोकगीत इन्हीं झूंपड़ों के निवासियों की संवेदनशीलता के प्रतीक है।
आज सुबह मेरे बड़े भाई तथा अभिन्न मित्र अभजी रामदयालजी रां के घर हथाई करने गया तो उनके भवन के पीछे बना उनकी कोटड़ी का भींतिया जो अब केवल कबाड़ रखने के काम आ रहा है का एक अनायास चित्र ले लिया। कभी इसका अतीत भी उज्ज्वल रहा था।
इस भींतिया के बहाने एक गौरवमयी परंपरा को एक गीत समर्पित कर रहा हूं
।।मुरधर रा रूप झूंपड़ा मांटी।।
।।गीत वेलियो।।
मुरधर रा रूप झूंपड़ा मांटी,
आनधारियां तण-आवास।
आगर-नेह ओपता नौखा,
अतँस सैणां भरण उजास।।1
दाटक टकर गढां नै दैणा,
पड़ियां बिखो रोपणा पाव।
ओछी नहीं तकी अबखी में,
दियो नहीं हीणो इक डाव।।2
मिनखापणो रह्यो आं मांही,
सतपण रह्यो सदा सूं साख।
गढां पखै में जुप गाढाल़ां
निडर झूंपड़ां रखियो नाक।।3
जोगा मिनख झूंपड़ां जलम्या,
बहै जिकां री अजलग बात।
जस रा कोट अजै थिर जोवो,
महि धिन बजै उवां री मात।।4
दिलसुध देख कोटड़ियां-दावो,
जीमी पहि रोटड़ियां जेथ।
गल़ती रात मीठोड़ै गलवै,
उपजी राग हेत री ऐथ।।5
चूंपां शिखर फबै चँवरां री,
कीरत जेम कांगरां कोट।
अड़िया मरद किलां सूं आगल़,
आपी इणां भड़ां नै ओट।।6
ओपै विमल़ धोरियां ऊंचा,
छझिया सैवण वाल़ी छात।
थल़वट थाट धरा रा थंभा,
महलां नै झूंपा दी मात।।7
मन मोटै तणा रहै मानवी,
हिरदै मांय भर्योड़ो हेत।
सतपण रखै सादगी सांप्रत,
साचड़िया पत रखण सचेत।।8
आयां मिनख अति उमंगाणा,
भायां जेम दिखाणा भाव।
परघल़ दही दूध हद पाणा,
चित हित सूं करणा घण चाव।।9
मांझी भला झूंपड़ा मुरधर,
आंझी बगत राखणा आन।
परकत तणी प्रीत सूं पंगिया,
राजै सधर अहो रजथान।।10
पड़िया काल़ अराड़ा प्रिथमी,
निठियो जदै घरां में नाज।
झुकिया नाय जदै ऐ झूंपा,
तणिया रह्या धारियां ताज।।11
सुख में प्रीत सवाई सब सूं,
दुख में सदा बतावै दूण।
हर सूं आस रखै उर हरदम,
चांच देइ सो देसी चूण।।12
अल़ी ठगी सूं रहै आंतरै,
बहणा सल़ी सदा सूं वाट।
मन री रल़ी पाल़ मरजादा,
थल़ी झूंपड़ां रखिया थाट।।13
अजतक झूंप आंटीला अवनी,
जुद्ध में मेलै जबर जवान।
सीमा काज देय सिर सूरा,
हेर साख दे हिंदुस्थांन।।14
~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी