चारणों के पर्याय-नाम एवं १२० शाखाएं/गोत्र – स्व. ठा. कृष्णसिंह बारहट

सन्दर्भ: चारण कुल प्रकाश (ठा. कृष्ण सिंह बारहट विरचित)
प्रसिद्ध क्रांतिकारी एवं समाज सुधारक ठा. केसरी सिंह बारहट के पिताश्री ठा. कृष्ण सिंह बारहट (शाहपुरा) रचित ग्रन्थ “चारण कुल प्रकाश” से उद्धृत महत्वपूर्ण जानकारी–
चारणों के पर्याय-नाम और उनका अर्थ
चारण जाति के जितने पर्यायवाची नाम अद्यावधि हमको मिले, वे नीचे लिख कर उनका धात्वर्थ और व्यत्पत्ति सहित, भाषा में अर्थ लिख दिया गया है कि जिनके समझने में सर्व-साधारण को सुविधा रहे।
ये शब्द, प्रथम संस्कृत में थे परन्तु फिर प्राकृत में पड़ कर देश-भाषा में रूपान्तरित हो गए हैं, जो उसी रूपांतर के साथ डिंगल-भाषा के काव्यों में इस समय तक आते हैं, सो काव्यों से छाँट कर सब लिखे गए हैं। यदि दृष्टि-दोष के कारण कोई शब्द बाकी रह भी गया हो तो इसी क्रम में व्याकरण के मतानुसार उसका भी अर्थ समझ लेवें:-
१. ईहग (ईहगः), ‘ईह वाञ्छायाम्’ ‘गम्लृ गतौ’ इत्यनेन इच्छया गच्छतीति ईहगः, स्वेच्छाचारीत्यर्थः।। निरंकुशाः कवय इति प्रसिद्धिः।। भावार्थ :- ईह धातु चेष्टा अर्थ में है। ‘ईहग’ का अर्थ है, चेष्टा से अभिप्राय जानने-वाले अर्थात् चेष्टा से अभिप्राय को समझने-वाले विद्वान्।
२. कव, किव, किव-जण (कविः और कविजनः) काव्यस्य कर्तार, अतीता-नाग तसर्वज्ञे, सूक्ष्मार्थविवेकिनि, मेधाविनि, पंडितेस्यर्थः।। भावार्थ :- कवि धातु, काव्य बनाने में है और भूत, भविष्यत् जानने-वाले का नाम कवि है अथवा सूक्ष्म-अर्थ के जानने-वाले बुद्धिमान् पंडित को कवि कहते हैं।
३. गढवीर (गढपतिः वा गाढवान्), गढपतिः (राजा) अन्यच्च गाढं दृढे। प्रणवचन-विचारादिव्यवहारे दृढेत्यर्थः।। भावार्थ :- वदान्य नामक चारण को काठियावाड़ का राज्य मिलने के पश्चात् चारणों का नाम गढपति प्रसिद्ध हुआ है, जिसका प्राकृत भाषा में गढवी हुआ है।। दूसरा अर्थ :- गाढ शब्द दृढ अर्थ में है, जिसका भावार्थ है अपने प्रण, वचन, विचारादि व्यवहार में दृढ, चारणों के ग्रामों का नाम गढवाड़ा है, जिसका भी यही अर्थ है कि अन्य की अपेक्षा चारणों के शांसण अधिक दृढ हैं और इनको पूज्य मान कर इनके ग्रामों को लुटेरे लूटते, नहीं थे इस कारण इनके ग्रामों के बाड़े ही गढ हैं।
४. गुणियण, गुणिजण (गुणिजन), गुणमस्यास्तीति गुणी, गुणी चासौ जनश्च गुणिजनः।। भावार्थ :- गुणवान् (विद्वान्) मनुष्य को गुणीजन कहते हैं।
५. चारण (चारणः) ”चारयंति कीर्त्तिमिति चारणः।” भावार्थ :- देवता और क्षत्रियों की कीर्ति फैलाने के कारण चारण नाम है।
६. ताकव (तर्क्ककः), तर्ककारके, तर्कमीमांसादिशास्त्रकुशलेत्यर्थः। भावार्थ :- तर्क करने-वाले और तर्क, मीमांसा आदि शास्त्रों में कुशल।
७. दूथी (द्विथः, द्विस्थः, वा द्विकथी), याचक, ‘थः रक्षणे’ अथवा ‘तिष्टत्यस्मि न्नितिस्थः’ इत्युभयत्रशब्दार्थचिंतामणिः। कथवाक्यप्रबन्धे। भावार्थ :- क्षत्रियों के याचक। प्राकृत में ‘द्वि’ का ‘दुव’ होता है, जिसका अपभ्रंश भाषा में ‘दू’ हुआ, जो ”दो” की गणना का वाचक है और ‘थः’ का थी हुआ, जो रक्षा अर्थ में है।
ये दोनों मिला कर ‘दूथी’ हुआ है, जिसका अर्थ है, खारा (युद्ध) और त्याग (दान), इन दोनों स्थानों में क्षत्रियों के यश और कीर्ति रूपी शरीर की रक्षा करने-वाले, ‘दानश्च प्रभवा कीर्तिः शौंडीरप्रभवो यशः’ अर्थ :- दान से उत्पन्न होवे, उसका नाम कीर्ति और पराक्रम से उत्पन्न होवे उसको यश कहते हैं। दूसरा अर्थ :- ‘स्थ’ का ‘थी’ हुआ है। इसका अर्थ है, खाग और त्याग, दोनों समय में स्थित रहने- वाले अथवा ‘द्विकथी’ के ककार का लोप होकर ‘दूथी’ बना है क्योंकि प्राकृत में ककारादि अक्षरों का लोप हो जाता है, बाकी ऊपर लिखे शब्द के अनुसार ‘दूथी’ शब्द सिद्ध हुआ, जिसका अर्थ है कि यश और अपयश दोनों प्रकार की कथा करने-वाले अर्थात् श्रेष्ठ पुरुषों का यश-पूर्वक और दुष्ट-पुरुषों का निन्दा-पूर्वक काव्य करने- वाले।
८. नीपण (निपुण), प्रवीण, विज्ञे, क्रियासु दक्षेत्यर्थः। भावार्थ :- शिक्षा पाये हुए, ज्ञानवान्, कार्य करने में चतुर।
९. पात (पात्रम्), दान-पात्रे, विद्यातपोयुक्ते, पतनात् त्रायते यस्मात् तत्पात्रम्। भावार्थ :- दान-पात्र, विद्या और तप से युक्त, गिरने से रक्षा करने-वाले अर्थात् क्षत्रियों को हीन-दशा से बचाने-वाले।
१०. पोळपात (प्रतोलीपात्रः) प्रतोल्यां पात्रः प्रतोली पात्रः।। गोपुरं हि प्रतोल्यां तु नगरद्वारयोरपि इति महीपः।। भावार्थ :- ”महीप-कोश” में द्वार का नाम ‘प्रतोली’ लिखा है, सो प्रतोली (पोळ) पर रक्षा करने-वाले।
११. बारहठ (द्वारहठः), द्वारे हठं करोतीति द्वारहठः। भावार्थ :- द्वार पर हठ करके रक्षार्थ, मरने-वाले।
१२. भाणव (भाणवः) भणतीति भणवः। भावार्थ :- भण धातु शब्द करने में है, सो उत्तम वक्ता (स्पीकर) अर्थात् व्याख्यान देने-वाले का नाम है।
१३. महागण (महार्गणम्), अन्वेक्षणे, संवीक्षणे, याचके, कविकृतिपीयूषरहितान लुप्तप्रायान् क्षत्रियकुलपूर्वजान् संवीक्षणकारकाः, अर्थात् इतिहासकर्तारः, क्षत्रियगुणदोषवीक्षणकर्तारश्च।। भावार्थ :- हेरना, खोजना, देखना, कवियों की कविता रूपी अमृत से रहित, अस्त को प्राप्त, ऐसे क्षत्रियों के पूर्वजों के इतिहास-कर्ता और क्षत्रियों के गुण-दोषों को ढूँढने वाले।
१४. वीदग (विदग्वः), ‘विदज्ञाने’ चतुरे, दक्षे, पण्डितेत्यर्थः। भावार्थ :- ‘विद’ धातु ‘ज्ञान’ के अर्थ में है और चतुर व पंडित का नाम विदग्ध है।
१५. हेतव (हितवहः), वह प्रापणे हित वहंति प्राप्नुवंति ते हितवहः। भावार्थ :- ‘वह’ धातु प्राप्ति अर्थ में है, जिसका अर्थ है, हित को प्राप्त कराने-वाले।
चारणों के १२० गोत्रों का वर्णन
चारणों की एक सौ बीस (१२०) शाखा होने के तीन कारण हैं, प्रथम, तो प्रसिद्ध पिता के नाम से शाखा प्रकट हुई है, दूसरे, ग्राम के नाम से शाखा का नाम प्रसिद्ध हुआ है और तीसरे, कोई बड़ा कार्य करने से, उस कार्य के अनुसार शाखा का नाम प्रसिद्ध हुआ हैं। इन्हीं तीन कारणों से १२० शाखाओं का भिन्न-भिन्न होना पाया जाता है जैसे, इन्हीं तीन कारणों से क्षत्रियों के छत्तीस- वंश भिन्न-भिन्न हुए हैं और इन्हीं कारणों से ब्राह्मण और वैश्यों में भी जुदी-जुदी शाखा होना सिद्ध होता है, सो चारणों की जो शाखा, जिस कारण से प्रसिद्ध हुई है, उसका कारण नीचे शाखा के साथ लिख दिया जाता है। परन्तु जिस शाखा के नाम का कारण संतोष-दायक नहीं मिला, वहाँ केवल शाखा का नाम लिख कर, कारण की जगह खाली छोड़ दी है क्योंकि बिना पुष्ट-प्रमाण मिले, कल्पना करके लिख देना विद्वानों का मत नहीं है।
बहुत कुछ छान-बीन करने पर भी अद्यावधि हमको चारणों की एक सौ बीस (१२०) मूल-शाखा के नाम नहीं मिले और न यह सिद्ध हुआ कि ये शाखाएं कब-कब फँटीं और न यह पता लगा कि इन शाखाओं के फँटने से पहिले गोत्र भेद क्या-क्या थे? परन्तु ”कुल-गुरु” की पुस्तक के देखने से और विद्वान् चारणों के प्राचीन लेखों से अथवा विद्वान् चारणों के कथन से जो कुछ वृत्तांत हमको विदित हुआ, उसके अनुसार शाखाओं का वर्णन नीचे दिया जाता है, जिनमें प्रथम, उन शाखाओं का वर्णन है जिन शाखाओं के चारण अभी विद्यमान हैं।
इसके पश्चात् जितनी शाखाओं का ”कुल-गुरु” की पुस्तक में नष्ट हो जाना लिखा है, उनके नाम-मात्र लिख दिए जायेंगे। विद्यमान शाखाओं में एक शाखा से फँट कर अनेक प्रति-शाखाएं हुई हैं, उनके नाम मूल-शाखा के नीचे लिख दिए जायेंगे, जिससे मालूम हो सकता है कि इतनी शाखाएं, इस शाखा से निकली हैं। इस विषय में हमको जोधपुर के श्री जादूदान बणसूर के लेख से भी अच्छी सहायता मिली है, जिनका हम उपकार मानते हैं।
- १. अबसूरा – यह मूल शाखा, अबसूर नामक पिता के नाम से प्रसिद्ध हुई है, जिसमें से निकली हुई प्रति-शाखाएं नीचे लिखी जाती हैं :-
- २. आसिया :- आसा नामक पिता के नाम से
- ३. बणसूर :- बणबीर नामक पिता के नाम से
- ४. मोहड :- पिता के नाम से
- ५. लालस :- लाला नामक पिता के नाम से
- ६. सामोर :- पिता के नाम से
- ७. सुधा :-
- उपरोक्त सातों-शाखाएं, परस्पर बाँधव हैं।
- २. आज्यसुर :- यह मूल शाखा, पिता के नाम से प्रसिद्ध हुई है।
- ३. आमोतिया :- यह मूल शाखा, पिता के नाम से प्रसिद्ध हुई है।
- ४. कवियल :-
- ५. कायल :-
- ६. कुंवारिया :- यह मूल शाखा, ग्राम के नाम से प्रकट हुई है।
- ७. केसरिया :- केसर नाम के पिता के नाम से यह शाखा प्रकट हुई है।
- २. महियारिया :- मिहारी नामक ग्राम के कारण जुदी शाखा प्रसिद्ध हुई, जो दोनों भाई – भाई हैं।
- ८. खड़ी :-
- ९. खरळ :- यह मूल शाखा, ग्राम के नाम से प्रसिद्ध हुई है।
- १०. गांगड़ा :- यह मूल शाखा, पिता के नाम से प्रसिद्ध हुई है।
- २. कड़वा :- यह गांगड़ों की प्रति-शाखा है परन्तु नाम का कारण मालूम नहीं हुआ।
- ११. गांगणिया :- गांगण नामक पिता के नाम से प्रकट हुई। मधुडा, नामक पिता से।
- १२. गाडण :- गडा हुआ बच्चा, शक्ति के वरदान से जीवित होने के कारण गाडण नाम प्रसिद्ध हुआ कहते हैं, परन्तु कई लोगों के मत से ‘गाडणा’ नामक ग्राम के नाम से ‘गाडण’ कहलाना पाया जाता है।
- २. बाटी :- पिता के नाम से
- ३. बाडूआ :-
- ये तीनों शाखाएं परस्पर बाँधव हैं।
- १३. गुठल….
- १४. गैलवा…..
- १५. गोकुळी भेरूंड़ा
- १६. चांदा :- पिता के नाम से यह मूल शाखा प्रकट हुई है।
- १७. चेहड़ :- यह मूल शाखा, पिता के नाम से प्रकट हुई है।
- १८. चोराड़ा :- पिता के नाम से यह मूल शाखा प्रसिद्ध हुई है।
- २. कविया…..
- ३. थेहड़…..
- ४. खिड़िया….
- ये चारों शाखाएं परस्पर-बाँधव हैं।
- १९. छेड़ा…..
- २०. जसकरा :- यह मूल शाखा, पिता के नाम से प्रसिद्ध हुई है।
- २१. जामग…..
- २२. जाळगा :- जाळग नामक पिता के नाम से यह शाखा प्रकट हुई है।
- २३. जूवड़…..
- २४. जेसळ :- पिता के नाम से यह मूल शाखा प्रकट हुई है।
- २५. जोगबीर :- यह मूल शाखा पिता के नाम से प्रकट हुई है।
- २६. झड़ेलचा :-
- २७. तुंगल :-
- २८. तुंबेल :-
- २९. थींगल :-
- ३०. दागड़ा :-
- ३१. देवका :- यह मूल शाखा, पिता के नाम से प्रकट हुई है।
- ३२. धांधा
- ३३. धूधू….
- ३४. धूहड़ :- यह मूल शाखा, पिता के नाम से प्रकट हुई है।
- ३५. नइया :- यह मूल शाखा, पिता के नाम से प्रकट हुई है।
- ३६. नरा…..
- २. नांदू…..
- ३. जगहठ…..
- ४. बोगसा….
- ५. देवल :- देवल नामक ऋषि की संतान होने के कारण।
- ६. दधवाड़िया :- दधवाड़ा नामक गाम के नाम से।
- ७. झीबा :-
- ये सातों शाखाएं परस्पर-बाँधव हैं।
- ३७. नायल :-
- ३८. नील-सोरठिया
- ३९. नेचड़ा :-
- ४०. पर्वतगोरा :-
- ४१. पिंगुल :-
- ४२. बरणसी :-
- ४३. बीजळ :-
- ४४. भाचळिया – यह मूल शाखा, पिता के नाम से प्रकट हुई है।
- २. भादा :-
- ३. सिंढायच :- नरसिंह नामक भाचळिया द्वारा अधिक सिंह मारने के कारण नाहड़राव पड़िहार ने ‘सिंह-ढाहक’ की पदवी दी, जब से उसके वंश के सिंढायच कहाये (डिंगल भाषा में ‘क’ का ‘च’ होता है) ऊजलाँ ग्राम से उज्वल शाखा प्रकट होना।
- इन तीनों शाखा-वाले परस्पर-भाई हैं।
- ४५. भूरियांण :-
- ४६. महैसमा –
- ४७. मादा :- मृत्तिका के पुतले को देवी ने स-जीवित किया, इस कारण ‘मादा’ कहलाये। डिंगल भाषा में मिट्टी को मादा कहते हैं।
- २. ठाकरिया :-
- ३. फुनड़ा :-
- ४. बीजड़ :-
- ५. बाला :-
- ये पाँचों-शाखा, परस्पर-बाँधव हैं।
- ४८. मारू :- यह मूल शाखा, ‘मारू’ नामक पिता के नाम से प्रसिद्ध है, यों तो मारवाड़ से निकले हुए सम्पूर्ण चारणों को मारू कहते हैं परन्तु उसी के अन्तर्गत यह शाखा, पिता के नाम से भिन्न प्रकट हुई है।
- २. किनिया :- कनीराम नामक पिता से प्रसिद्ध हुए।
- ३. कोचर :- पिता के नाम से।
- ४. देथा :- पिता के नाम से।
- ५. सीळगा :- सीळग नामक पिता से प्रसिद्ध हुए।
- ६. सुरताणिया :- सुरताण नामक पिता से प्रसिद्ध हुए।
- ७. सौदा (वा) सौदा-बारहठ :- बारू नामक देथा शाखा के चारण ने घोड़ों की सौदागरी (व्यापार) से चित्तौड़ के महाराणा हमीरसिंह को चित्तौड़ वापिस लेने में सहायता की, इसकी यादगार के लिए उन महाराणा ने शाखा का नाम ‘सौदा बारहठ’ रखा।
- ये सातों शाखाएं एक ही शाखा से निकलने के कारण परस्पर-भाई हैं।
- ४९. मीसण :- चंडकोटि नामक कवि ने संस्कृत आदि छहों-भाषाओं को मिश्रित करके शास्त्रार्थ जीता, इस कारण ‘मिश्रण’ कहलाये, जिसका अपभ्रंश ‘मीसण’ हुआ।
- २. महेगू :-
- ५०. मैडू :- मैड़वा नामक ग्राम से निकलने के कारण ‘मेहड़ू’ कहलाते हैं।
- २. टापरिया :-
- ये दोनों-शाखाएं एक ही शाखा से निकलने से परस्पर-भाई हैं।
- ५१. रत्नू :- रतना नामक पिता के नाम से यह शाखा प्रसिद्ध हुई है।
- २. नाला :-
- ३. चीचा :-
- ये तीनों-शाखाओं वाले परस्पर-भाई हैं।
- ५२. रेड़ (वा) रेड़िया :- पिता के नाम से यह शाखा प्रसिद्ध हुई है।
- २. छाँछड़ा :-
- ३. झूला :-
- ४. थांनडा :-
- ५. बरसड़ा :-
- ये पाँचों-शाखाएं, एक शाखा से निकलने के कारण परस्पर-भाई हैं।
- ५३. रोदा (वा) रादा :-
- ५४. रोहड़िया बारहठ :- घेर कर चारण बनने के कारण।
- २. आला :- पिता के नाम से।
- ३. ओळेचा – ग्राम के नाम से।
- ४. कळहठ :- पिता के नाम से।
- ५. गूंगा :- ग्राम के नाम से।
- ६. धीरण :- पिता के नाम से।
- ७. बीठू – पिता के नाम से।
- ८. भदरेचा :- ग्राम के नाम से।
- ९. मिकस (वा) मेगस :- पिता के नाम से।
- १०. शामळ :- पिता के नाम से।
- ११. हड़वेचा :- पिता के नाम से।
- १२. हाहणिया :- पिता के नाम से।
- ये बारहों-शाखा-वाले एक शाखा से निकलने से परस्पर-भाई हैं।
- ५५. लूणगा…..
- ५६. वाचा…..
- २. आढा :- आडां नामक ग्राम के नाम से प्रकट हुई।
- ३. बड़ियाळ
- ४. महिया :- मेहा नामक पिता के नाम से प्रकट हुई।
- ५ सांदू :- सांदू नाम पिता के नाम से प्रकट हुई।
- ५७. साउवा :- साऊ नामक पिता के नाम से यह मूल शाखा प्रकट हुई।
- ५८. सजग :-
- ५९. साइया :-
- ६०. सावादेवा :-
- ६१. सीकड़….
- ६२. सुगुणी :- सुगुण नामक पिता के नाम से यह शाखा प्रकट हुई।
- ६३. सुर-सोरठिया
- ६४. सूंघा :- पिता के नाम से प्रसिद्ध हुई।
- ६५. सूरू :- सूरा नामक पिता के नाम से यह मूल शाखा प्रकट हुई।
- ६६. सेहड़िया :-
यहाँ पर, गुजरात के सुप्रसिद्ध विद्वान् श्री पिंगलसी परबतजी भाई पायक द्वारा सम्पादित, की हुई और कवि प्रवीण भाई-हरसुर भाई, मधूड़ा, राजकोट, के सौजन्य से वर्तमान में गुजरात में शाखा उप-शाखाओं की जानकारी प्राप्त हुई है। ये शाखायें गुजरात में उपलब्ध हैं। इन्हें यथावत् नीचे दी जा रही हैं। मैं, प्रवीण भाई के सहयोग के लिए आभारी हूँ।
गुजरात में चारण जाति की 23 शाखाओं की विगत – उप-शाखाओं सहित
1. नरा :-
दादल, ईश्वरा, ईशरपोत्रा, उसड़ा, केहरा, केरीया, कागड़ा, कीड़िया, गुढ़ा, गादु, गेला, गोखरू, गोयला, गोहेला, गोरवियाळा, धुधड़, घेलड़ा, जगहठ, जगमल, जाजलिया जासंग, जेशंळ, जाळफवा, जांळग, जासील, जंळपसा, जेत्रहथा, जोगड़ा, जोगा, जेता, झीबा, दधिवाड़िया, हेमल, धुहड़, धेवड़ा, उनजमल, नडीर, नडीयारा, नरदेव, नरा, नरेला, नागैया, नामाळंग, नायक, नांदळ, नांधळ, नौधुं नेचड़ा, पायक, पालिया, पोपरिया, पंचाल, पमांण, पाडरशींगा, बावड़ा, राजसी, गेला, राणींग, बुड़ा, बारगी बुधड़ा, बेघड़ा, बेरा, बोगसा, भुहड़, भैंसवड़ा, माणींया, मुळिया, मोखराम, मोढ़ा, मोढ़ेरिया, भांभल, र’वाई, राजपाल, राजैया, राबा, रजवट, रादळ, लमदेवा, लबदिया, लुहड़, लुवण, लोभा, लोयंण, शींगड़िया, चुड़ा, सोया, सोसर, सुधा, सोढ़ा, होठा, हेठोंणा, बालदिया, मलाणा, यायावरीय, सोराट, अभाणीं जुगाणीं, राईवाणीं, जगाणीं, जामोतर, भायाणीं, पतांणी देवांणी।
2. अवसुरा :-
अवसुरा, आपजड़, आसपाल, आशिया, ओगर, ओलवेगड़ा, कवड़ीया, किनियां, कुना, कुवरिया, कुवार, रवात्रा, खड़ाचया, खांडणा, खुरवड़, रेवरा, गियड़, गेदड़ा, गोदला, गोल, जशगार, जणींया, जलिया, जड़िया, झंझार, दांगा, दास, देवका, देवणंग, घणां, नागलाणीं, नागीया, पगर, पसिया, पिंगुर, पटोणां, पटोणीया, पेथा, बंका, बंणदा बुधसी, भुवा, भोज, भोर, महेरांण, माणुं, मालण, मोखु, मोखा, मुलरव, मोखीया, मोहड़, तरन, रेढ़, लाळस, लाला, लुणीयां, वणसीयां, वणसूर, साजका, सामोर, संभळा, सुमंग, सुगा, सुरु, सुरा, साँसी, असोगर, सोलखा, होनां, देवल, गढवी।
3. चोराड़ा :-
चड़ीया, आयल, आलवा, आलुवा, आंबा, कवल, कविया, कांपड़ी, कांस, कांटा, कोलवा, कोलू, खिड़िया, खेड़ा, खोड़, खैया, खीमतेज, गड़दिया, गीयड़, गागल, गोरा, गोरिया, चंड, चाखड़ा, चीबा, चोराड़ा, जोगरा, जाया, जासा, जोगवीर, जुविया, डोड, डोडिया, तांम, तेजा, लहेड़, दाद, देवत, देपावत, देवसुर, देवगंडा, देसिया, धमणां, धामणां, धींगड़मल, धोणी, धोडीया, धीचड़, नागु, नासीया, पडीयार, पाया, पसीया, भड, भाकवीर, भोजा, भोजग, मुधा, मेमल, मुंणराज मालकोश, माला, महुवा, राणां, राजीया, रेराई, लोयांण, लोलिया, लोपु, लभवा, लांबा, लुणां, लुणभां, लुणंग, वजमल, वजीया, वड़गामा, वणभा, वरणसीं, वाधला, वालिया, वानरा, वानरीया, वसीया, विकल, वीका, विशणां वींसण, सका, सडीर, सनपर, सगपर, समा, सरा, सींगहर, सादैया, सोमातर, हादा, हुतल, सांखड़ा, धमंण।
4. मारू :-
अलपका, आला, अलमांण, उभमांण, ऊका, डककंण, उटा, धुघरीया, धोघरा, गांगारा, चंदणभुंवा, चांचवड़ा, जोरवमड़ा, दांती, देथा, पाला, पालावत, बोहड़िया, बाघरा, भजंग, मरेटीया, भड़माला, भारमल, भाकू, भालक, मारू, मारुत, मोकंण, मेंणमला, रांटा, रसोया, लघु लोंपण, वाघीया, वीकसिया, वासींग, वडीयाल, सीरायरा, शींगला, सुधा, सतीया, शोभता, सौदा, सुरताणिंया, सोहरीया, सवई, सांई, सोमटीया, सुकरीया, खुमड़ीया।
5. चवा :-
अभय, अरडू, आलगा, ऊमैया, ऐसु, कणंग, काजा, कीकड़ा, केरवा, कुंवरीया, खुलकीया, खुसरीया, गवाद, गागीया, गाँगड़िया, गोड, गीडा, गीगा, गोढ़, धोड़ा, चाटका, चवा, छाँछड़ा, जीया, झणिंया, झूला, जया, ध्रांटी, धाँनीया, धाया, नागदेव, जाया, त्रवीया, भड़ा, भोणां, भायका, मलका, महातंग, माणेंक, मोंणकव, मेम, माम, मोरांग, भुजड़ा, मातका, मालीया, राजा, राजवणां, लाँगड़िया, वरसड़ां, वाला, वागीया, वीरम, वीरड़ा वीर-वैजया, सांपाकी, सांबा, सुमंग, सबर, सताल, सुंमणीणीया, शियाल, सोरीया।
6. बाटी :-
अना, काळीया, खारववा, गाडवा, जाजु, जोटा, डेर, धर्माणीं, नाद, धाँनैया, धोमा, पांचालिया, पीठड़िया, बाटी, बुधराम, बधा, भोट, भासीया, भुंड, भेवलिया, मेर, मैदण, मेधा, रंणा, रतड़ा, बेवड़ा, वोहणिया, सवड़ा सिंह, सेववड़ा, सोमल।
7. तुंबेल :-
काग, गुगड़ा, गंढ, गुजरीया, धानका, धाना, धुधु, बुढ़ड़ा, बठयाचा, भागचुन, भाचकंन, भागचन्द्र, भीड़ा, मवर, मोवर, मोड़, मुन, राग, रूड़ायरा, व्रेमल, वीरमंल, वेरा, वाणरा, सेड़ा, सिंधीया, संघड़िया, सांइसराण, जीविया, धाधुकिया, भला, देवाणीं, लाखाणीं, भाराणीं, मेघाणीं, विधाणीं, वरीया, धूप, सागर, मंध्रिया, मेघरिया, काराणीं, कानाणीं, भोजाणीं, भुवा, रवाणीं, वींहणपुरी, राजसीयावी, मालम, खेतसींयाणीं सुमत।
8. वाचा :-
आढ़ा, गोग, गुगा, धनीया, भाँन, महीया, मोणसा, लाला, लुणाँ, वडीया, वमोणसी, वाचा, वणीसोय, जाम, बेगड़ा, सनीया, सिंहड, सानैया, साँदू, कानिया, मेगा, मुंगा, धाराणीं, कोसाणीं, बुधीया, मेहा।
9. मींसण :-
आधुणीया, कांनल, कांणींद, कुंचाला, डेंमाण, तमंर, तोहरिया, मींसण, गेलवा, मेश, मेसमा, मंगु, मोढेरिया, मोहणींया, राईद, लांगा, लांगावदरा, शेषमाँ।
10. ठाकरिया :-
आमोतिया, कटारिया, खेता, गोधा, धूद, गरा, टाहा, ठाकरिया, थरकनां, कुनिया, कोलवा, बालवा, बाड़वा, बावणां, मांघण, मरकांना, माांलेद, रविया, रोहड़ा, वीजवणां, सपात्रा, सापखड़ा, साऊ, हुना, होना, होया।
11. जाखला :-
खळेळ, खरेड़, जाखला, जमाण, महीसुर।
12. गुढायच :-
उधास, उढ़ास, गांगड़ा, गुदड़ा, गुढ़ायरा, मोलधा, शोभगैसी।
13. टापरिया :-
आतल, पांडप, छांछला, जोरवा, टापरिया, नागचूड़, नेत्रमां, मुंजा, रतुड़ा, रेढ़, शशीयाँण, सुडा, सेडा, होथीड़ा।
14. भाचळिया :-
उजणां, चडीया, चांचड़ा, चांचडिया, जुड़ा, डेकर, बहुनामां, भादा, भादण, भाचणीया, मेजठिया, मांझा, भीझा, भचली, वासंग, वाजसी, वासंगही, वाणीया, राजसिंयाणी, जामोतर, सामरणीं, विसाणीं, वजिया, साँपल, भसुरा, सिढ़ायच।
15. नैया :-
अनाणा, कुंवरिया, टालीया, थांमा, दांदी, धनका, नैया, वळदा, वालिया मांकड़डा, भोभाया, मालख, वेणाभड़।
16. घांघणिया :-
अनेकवल, आला, अमट, उमट, गोगट, धांघणिया, चारणिया, जेठी, मधुड़ा (कानाणीं) मोढ़ा, मालवीया, मोकस, मोहना, बाघड़ा, तुरीया, थीरिया, रवदरा, रवसी, रवनाग, रांदल, वावड़ा, सुमड़ा।
17. रोहड़िया :-
करटिया, कणोद, कळहठ, गुंगा, जादव, धींरण, धुंना, पातंग, पात्रोड़, पावोड़, पात्रगणा, भाटी, भाँणु, मेगस, मिकस, रोहड़िया, बीठू, शांमळ, सांगण, हाहणिया, हाहण, बारहठ, ईशराणीं, (नोट– लखावत, पालावत जैसी शाखा है)
18. कुनड़ा :-
कुनड़ा, वीजल।
19. लादीत :-
लादीत, लीला, कारीया, भाँणपसा।
20. आसणिया :-
आसणिया
21. रत्नू :-
धुहड़, रत्नू, चांदा, भरमां, भेरूड़ा, भोला, भला, चीबा।
22. केशरिया :-
आमट, केशरिया, चांचवड़ा, जीवधरा, जोट, बाँदीया, मेहडू, महियारिया, मादिया, मोखू मोकला, मोहळ, रणंग, साखरा, सोहला।
23. मादा :-
कारीया, मादा।
साबा सोबावत लाखाफुलाणी के राज कवि मावल जी सोबावत के वंशज के बारे मै जानकारी नही मिली कृपया जानकारी दे
Jay mataji
Kaja aur viram ke bare me vistrut mahiti dijiye.
लोयाण शाखा और कहाँ हैं किसी बन्धु को पता होता बताए मैं मध्यप्रदेश से हुं मेरी जानकारी में तो कही नही मिल रही है मैंरा एक ही घर नीमच जिला में है
Hukum dewal charno ki kul devi kon h
Depawat kis gotra mei aate hain. Kripya btayen.
जयमाता जी सा
हुकुम चारण दिग्दर्शन किताब के अनुसार रोहड़िया बारठ रोहड़ी शहर के नाम के कारण पड़ा है। जब आस्थान जी ने भीम भाटी से युद्ध किया तथा भीम के पुत्र चंद को गिरफ्तार कर अपने साथ मारवाड़ ले आए यही पर चंद को नागाणा में आवड़ माता के आशिर्वाद से चारण बनाया तथा कुलदेवी नागणेची माता हुई।
करण सिंह बारठ
बडीसिड, मारवाड़
Bilkul Sahi he hkm
Charaniya ke bare me jyada kahe
वडियल चरणों के बारे मे भी बताने की कृपा करें वे भी समाज के बंधु हैं
छडीदार चारणौ के बारे मे भी जानकरी बताने की कृपा करें। वो भी आपके भाई बन्धु है।एक समाज नेक समाज।
हूकम अखावत रोहडिया बारहट गोत्र का इतिहास बताईये।
हुकम हम लोग तकनिकी टीम हैं। आप इतिहास की जानकारी भेजिए, हमारी टीम उसे यहाँ प्रदर्शित करेगी।
गुर्जर जाती का इतिहास मिल सकता है
Bhaisaheb
KHARA sakha ki jankari hi to batai ye..
Khara charaniya me aate he
मेरा नाम शिव भूषण ढाकरिया है मैं सतना मध्यप्रदेश से हूँ मुझेऔर बहुत जानकारिया चाहिए जो मुझे अपने बुजुर्गों से नहीं मिल पाई
वेबसाइट को देखते रहें। जो भी जानकारियाँ एकत्रित होंगी उन्हें यहीं पर पब्लिश किया जाएगा।
My name is Abhijit Tapariya. I just want to know how many villages of Tapariya are there in Rajasthan. Can you please give me a list of villages?
Hello Abhijit ji,
Please follow this link and then do a browser search for ‘टापरिया’.
http://www.charans.org/charno-ke-ganv/
Please make sure you are doing a browser search and not the content search from the searchbox on the website.
साहब ,
सौदा बारहठ की कुलदेवी मां सिंदुवड के बारे में ज़रा सी भी जानकारी होने पर बताएं।
यदि जानकारी ना मिले , तो कहां पता लगाया जा सकता है, ये बता दे।
कष्ट के लिए क्षमा
मुझे स्वयं तो जानकारी नहीं है सा मगर कोशिश करता हूँ। यदि कोई जानकारी मिली तो अवश्य अवगत करूंगा।
Soda barhat ki kuldevi aawad maa hai.
Aavad mata ratnoo charno ki kuldevi hai sa
गांगणिया गोत का कोइ इतिहास हो तो बतावे हुकम
मो. न.8107149920
हुकम जितना यहाँ लिखा है उतना ही पता है।
Bhaut Hi shandar Jankari
Jai Mataji Sa
JAY MATAJI HUKM
MERI AAPSE EK REQUEST HE KI AAP CHARNOME JANME RATN KI WIKIPEDIA PAR UPLOAD KARE JESE DEVIYAN GRANTH H WO WIKIPEDIA PE BHI AANA CHAHIYE AUR HARIRAS BHI
CHARANO KI EK AUR WEBSITE BANAO JISME SARE CHARNO KE THIKANE HO AUR UNKI HISTORY BHI HO
JESE INDIAN RAJPUTS WEBSITE H
ESE HI AAP INDIAN ROYAL CHARANS KARKE WEBSITE BANANE KA KASHT KARAVE
AAP KA DHANYAWAD
HIMAT DAN CHARAN