चारण हूँ मैं – पद्मश्री सूर्यदेव सिंह बारहट

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मैं समुद्र की लहर, चंद्र की ज्योति,
पुष्प की गन्ध, अथक विश्वास
समय का दर्पण हूँ मैं।।
चारण हूँ मैं।।
इतिहासों ने पढ़ा,
रसों ने जिसको गाया
तलवारों की छौहों ने,
जिसको दुलराया,
वही कलम का धनी,
ज्ञान का कारण हूँ मैं।।
चारण हूँ मैं।।
मैं तांडव की ताल, ताल का नाद,
नाद के स्वर, व्यंजन हूँ, शब्द युग्म हूँ।
पुरुष पुरातन संभाषण का,
गुरुकुल ऋषिगण उच्चारण का,
छंदोबद्ध पठन-पाठन का,
शुद्ध परिष्कृत मूर्त्त रूप हूँ।
शतपथ ब्राह्मण अंकित वर्णित,
वेदपुराण उपनिषद चर्चित
चारण अवधारण का ध्वज हूँ।
उन्न शिखर धवल चमकीले
हिम अंचल से आया उतरा
कोलवंश का राजहंस हूँ।
युग से युग के और सदी से
नयी सदी के सेतु बनाता
वागीशा का वरद् पुत्र, सेवा अधिकारी।
साबी, लूणी, माही, खारी,
चम्बल, बनास व सिंधु तटों का विहरी प्रहरी।
शस्य श्यामला अरावली की
हरित-भरित घाटी का वासी।
आर्य उन्नयन का अभिलाषी।
रेतीले मरुधर का मैं ही यायावर हूँ,
गरबीले गुजरात प्रान्त में नीलाम्बर हूँ।
दिल्ली से द्वारिकापुरी तक
ग्राम नगर मग डगर बिछा वो पीताम्बर हूँ।
मैं भी चला-चली जहां भद्रता
मैं भी रुका जहां रुकी शिष्टता,
परिसर में प्रतिभा विकसाई,
प्रासादों सभ्यता बताई,
आसन को संस्कृति सुझाई।
जड़ को गति दी, गति को दिशा,
दिशा को बोध, बोध को वाणी दे दी,
तो वाणी का आचरण, प्रगति का चरण
चारण हूँ मैं।।
शिव से लेकर शक्ति,
शक्ति का विश्वासी हूँ।
महाशक्ति में विश्वासों की
मैं गंगा हूँ, मैं काशी हूँ।
पूजित हिंगलाज व चावंड
स्थापित करणी माता आवड़
विदित गिरवरा, बैचर बरवड़,
खोडियार कामख्या तेमड़
इन्दर, सायर, सोनल, देवल
सैणी राजू बट्ट अर बल्लर।
महम्माय का कृत कृतज्ञ हूँ।
चरण धूल हूँ पुण्यनमन हूँ,
बांकीदास, उम्मेद, मुरारि,
सावल, दुरसा, जाड़ा, लखा।
लंघी काना सायां झूला
पिंगल हरदा कागा दूल्हा।
सूर्यमल बारू वीरों सा,
रचना, साहस और शौर्य की
त्रिवेणी का झरना हूँ मैं।
प्राप्त अधिकृत अधिकारों के
विरोध का धरना हूँ मैं।
जोरावर प्रताप केसरी,
तिल तिल विगलित तदापि प्रञ्चलित
अमर क्रान्ति का कर्ता हूँ मैं।
मारवाड़ की बुद्धि शिरा विञ्जी लालस सी
उज्ज्वल व ब्रदी गाडण सी।
फैली ज्ञान प्रखरता हूँ मैं।
मैं श्रद्धा का तीर्थ, आस्था का हूँ मंदिर,
रहा राज्य चाणक्य, सभा श्रृंगार,
सनातन धारण हूँ मैं।
भाषा पंडित प्रवण स्नेह का श्रावण हूँ मैं।।
चारण हूँ मैं।।
अति अतीत के स्मरित विस्मरित,
घटनाओं का एकल लेखक।
रण प्रांगण के घोर युद्ध का,
गर्जक तर्जक अंकक मापक।
समय समय से लिखी जा रही,
विविध विधा का रूपक चित्रक।
ईसरदास प्रभृति सन्तों की,
भक्तमाल का मोती मानक।
परवाडों की महिमाओं का,
जगदम्बा का गाथा गायक।
उतर भारत चर्चित चिन्हित,
करणी माँ का अर्चक वन्दक।
चारू चरित उतम अन्तर्मन,
आदर्शों का शाश्वत सरजक।
काल-भाल पर अमिट उभरता,
अक्षर, सुन्दर, सत्य सार्थक।
अवतारों की पीढ़ी हूँ मैं,
सदाचार की सीढी हूँ मैं,
भावी का मैं पूर्व निमन्त्रण,
वर्तमान आमन्त्रण हूँ मैं।।
चारण हूँ मैं।।
जब-जब मैं सृजनात्मक होता,
मेरा मन बंशी होता है।
रोम रोम राधा होता है,
बाल-बाल कान्हा होता है।
सुरगंगा सी झरनों झरती,
यमुना सा कलकल स्वर करती।
इंद्रधनुष सी बनती मिटती,
गागर में सागर सा भरती।
मानस में हंसों सी विहरे,
दुल्हन सी डोली से उतरे।
प्रियतम की पाती ज्यों आती,
सांझ जगे ज्यों दीया बाती।
कलियों पर भंवरी सी गूंजे,
आँगन में तुलसी सी लागे।
ज्यों कबीर में साखी जागे,
ज्यों मीरा में भक्ति पागे।
ऐसे मुझमे रमती कविता,
और कविता में रमता हूँ मैं।
शुभ प्रभात में शुद्ध अर्ध्य सा,
काव्य सूर्य को अर्पण हूँ मैं।।
चारण हूँ मैं।।
मैं कविता में पला,
पली मुझसे कविता है।
मेरा प्राण कवि है,
मेरी वाणी ही कविता है।
मेरा उद्बोधन कविता है,
मेरा स्पंदन कविता है।
मेरी पूजा मेरा चन्दन,
मेरा आराधन कविता है।
मेरा श्वास छंद है चिन्मय,
लेखन कर्म धर्म होता है।
मेरी पंक्ति प्रेरणा पूरित,
जिसका अर्थ मर्म छूता है।
मेरा वचन पुनीत राम सा,
मेरा मन पावन सीता है।
मेरा कहा कथा है,
मेरा शब्द शब्द गीता है।
मै प्रतिभा की पहचान,
पाण्डित्य प्रतिमान।
भक्ति का भाष्य,
भाव का भूषण हूँ मैं।।
चारण हूँ मैं।।
आह्वान है ओ समाज के,
सभी आयु के भाई बहनों।
प्रेम परिश्रम धैर्य ध्यान के,
बाहर भीतर बाने पहनों।
आओ कदम बढाओं युग के,
न्योते तुम्हें बुलाते हैं स्वीकारों।
तकनीकी विज्ञान, ज्ञान के,
नित नूतन आयाम उभारों।
नए-नए तुम मापदंड दो,
दीप शिखा को कर प्रचंड दो।
आने वाली नव पीढ़ी को,
आगे बढ़ भारत अखण्ड दो।
हम न बंटें, पीछे न हटें,
एकीकृत होकर साथ चल पड़े।
पद चिन्हों से पदचापों से,
नए-नए दिनमान बन पड़े।
हमीं अग्नि हैं हमीं लोह हैं,
हम ढालेगें हमीं ढलेंगें।
संकल्पी बन संघर्षी रह,
साथ चलेगें साथ रहेगें।
शुभ समाज में, सत् समूह में
सदा जागरण चारण हूँ मैं।।
कहो गर्व से चारण हूँ मैं।।
चारण हूँ मैं।।
पुष्प की गन्ध, अथक विश्वास
समय का दर्पण हूँ मैं।।
चारण हूँ मैं।।
इतिहासों ने पढ़ा,
रसों ने जिसको गाया
तलवारों की छौहों ने,
जिसको दुलराया,
वही कलम का धनी,
ज्ञान का कारण हूँ मैं।।
चारण हूँ मैं।।
मैं तांडव की ताल, ताल का नाद,
नाद के स्वर, व्यंजन हूँ, शब्द युग्म हूँ।
पुरुष पुरातन संभाषण का,
गुरुकुल ऋषिगण उच्चारण का,
छंदोबद्ध पठन-पाठन का,
शुद्ध परिष्कृत मूर्त्त रूप हूँ।
शतपथ ब्राह्मण अंकित वर्णित,
वेदपुराण उपनिषद चर्चित
चारण अवधारण का ध्वज हूँ।
उन्न शिखर धवल चमकीले
हिम अंचल से आया उतरा
कोलवंश का राजहंस हूँ।
युग से युग के और सदी से
नयी सदी के सेतु बनाता
वागीशा का वरद् पुत्र, सेवा अधिकारी।
साबी, लूणी, माही, खारी,
चम्बल, बनास व सिंधु तटों का विहरी प्रहरी।
शस्य श्यामला अरावली की
हरित-भरित घाटी का वासी।
आर्य उन्नयन का अभिलाषी।
रेतीले मरुधर का मैं ही यायावर हूँ,
गरबीले गुजरात प्रान्त में नीलाम्बर हूँ।
दिल्ली से द्वारिकापुरी तक
ग्राम नगर मग डगर बिछा वो पीताम्बर हूँ।
मैं भी चला-चली जहां भद्रता
मैं भी रुका जहां रुकी शिष्टता,
परिसर में प्रतिभा विकसाई,
प्रासादों सभ्यता बताई,
आसन को संस्कृति सुझाई।
जड़ को गति दी, गति को दिशा,
दिशा को बोध, बोध को वाणी दे दी,
तो वाणी का आचरण, प्रगति का चरण
चारण हूँ मैं।।
शिव से लेकर शक्ति,
शक्ति का विश्वासी हूँ।
महाशक्ति में विश्वासों की
मैं गंगा हूँ, मैं काशी हूँ।
पूजित हिंगलाज व चावंड
स्थापित करणी माता आवड़
विदित गिरवरा, बैचर बरवड़,
खोडियार कामख्या तेमड़
इन्दर, सायर, सोनल, देवल
सैणी राजू बट्ट अर बल्लर।
महम्माय का कृत कृतज्ञ हूँ।
चरण धूल हूँ पुण्यनमन हूँ,
बांकीदास, उम्मेद, मुरारि,
सावल, दुरसा, जाड़ा, लखा।
लंघी काना सायां झूला
पिंगल हरदा कागा दूल्हा।
सूर्यमल बारू वीरों सा,
रचना, साहस और शौर्य की
त्रिवेणी का झरना हूँ मैं।
प्राप्त अधिकृत अधिकारों के
विरोध का धरना हूँ मैं।
जोरावर प्रताप केसरी,
तिल तिल विगलित तदापि प्रञ्चलित
अमर क्रान्ति का कर्ता हूँ मैं।
मारवाड़ की बुद्धि शिरा विञ्जी लालस सी
उज्ज्वल व ब्रदी गाडण सी।
फैली ज्ञान प्रखरता हूँ मैं।
मैं श्रद्धा का तीर्थ, आस्था का हूँ मंदिर,
रहा राज्य चाणक्य, सभा श्रृंगार,
सनातन धारण हूँ मैं।
भाषा पंडित प्रवण स्नेह का श्रावण हूँ मैं।।
चारण हूँ मैं।।
अति अतीत के स्मरित विस्मरित,
घटनाओं का एकल लेखक।
रण प्रांगण के घोर युद्ध का,
गर्जक तर्जक अंकक मापक।
समय समय से लिखी जा रही,
विविध विधा का रूपक चित्रक।
ईसरदास प्रभृति सन्तों की,
भक्तमाल का मोती मानक।
परवाडों की महिमाओं का,
जगदम्बा का गाथा गायक।
उतर भारत चर्चित चिन्हित,
करणी माँ का अर्चक वन्दक।
चारू चरित उतम अन्तर्मन,
आदर्शों का शाश्वत सरजक।
काल-भाल पर अमिट उभरता,
अक्षर, सुन्दर, सत्य सार्थक।
अवतारों की पीढ़ी हूँ मैं,
सदाचार की सीढी हूँ मैं,
भावी का मैं पूर्व निमन्त्रण,
वर्तमान आमन्त्रण हूँ मैं।।
चारण हूँ मैं।।
जब-जब मैं सृजनात्मक होता,
मेरा मन बंशी होता है।
रोम रोम राधा होता है,
बाल-बाल कान्हा होता है।
सुरगंगा सी झरनों झरती,
यमुना सा कलकल स्वर करती।
इंद्रधनुष सी बनती मिटती,
गागर में सागर सा भरती।
मानस में हंसों सी विहरे,
दुल्हन सी डोली से उतरे।
प्रियतम की पाती ज्यों आती,
सांझ जगे ज्यों दीया बाती।
कलियों पर भंवरी सी गूंजे,
आँगन में तुलसी सी लागे।
ज्यों कबीर में साखी जागे,
ज्यों मीरा में भक्ति पागे।
ऐसे मुझमे रमती कविता,
और कविता में रमता हूँ मैं।
शुभ प्रभात में शुद्ध अर्ध्य सा,
काव्य सूर्य को अर्पण हूँ मैं।।
चारण हूँ मैं।।
मैं कविता में पला,
पली मुझसे कविता है।
मेरा प्राण कवि है,
मेरी वाणी ही कविता है।
मेरा उद्बोधन कविता है,
मेरा स्पंदन कविता है।
मेरी पूजा मेरा चन्दन,
मेरा आराधन कविता है।
मेरा श्वास छंद है चिन्मय,
लेखन कर्म धर्म होता है।
मेरी पंक्ति प्रेरणा पूरित,
जिसका अर्थ मर्म छूता है।
मेरा वचन पुनीत राम सा,
मेरा मन पावन सीता है।
मेरा कहा कथा है,
मेरा शब्द शब्द गीता है।
मै प्रतिभा की पहचान,
पाण्डित्य प्रतिमान।
भक्ति का भाष्य,
भाव का भूषण हूँ मैं।।
चारण हूँ मैं।।
आह्वान है ओ समाज के,
सभी आयु के भाई बहनों।
प्रेम परिश्रम धैर्य ध्यान के,
बाहर भीतर बाने पहनों।
आओ कदम बढाओं युग के,
न्योते तुम्हें बुलाते हैं स्वीकारों।
तकनीकी विज्ञान, ज्ञान के,
नित नूतन आयाम उभारों।
नए-नए तुम मापदंड दो,
दीप शिखा को कर प्रचंड दो।
आने वाली नव पीढ़ी को,
आगे बढ़ भारत अखण्ड दो।
हम न बंटें, पीछे न हटें,
एकीकृत होकर साथ चल पड़े।
पद चिन्हों से पदचापों से,
नए-नए दिनमान बन पड़े।
हमीं अग्नि हैं हमीं लोह हैं,
हम ढालेगें हमीं ढलेंगें।
संकल्पी बन संघर्षी रह,
साथ चलेगें साथ रहेगें।
शुभ समाज में, सत् समूह में
सदा जागरण चारण हूँ मैं।।
कहो गर्व से चारण हूँ मैं।।
चारण हूँ मैं।।
~~पद्मश्री सूर्यदेव सिंह बारहट