चारन की बानी – डूंगरदानजी आसिया

स्वर्ण की डरीसी शुद्ध साँचे में ढरीसी मानो,
इन्द्र की परीसी एही सुन्दर सयानी है।
विद्या में वरीसी सरस्वती सहचरी सी,
महाकाशी नगरीसी सो तो प्रौढ औ पुरानी है।
जीवन जरीसी वेद रिचाऐं सरीसी गूढ
ग्यान गठरीसी अति हिय हरसानी है।
सांवन झरीसी मद पीये हू करीसी सुधा
भरी बद्दरी सी ऐसी चारन की बानी है।।१
गीता हू के ग्यानकी सी ध्रुववर ध्यान की
दधीची के दानकीसी निर्मल निशानी है।
अर्जुन के बान की सी हाक हनुमान की सी
प्रलै काल भानु की सी आग बरसानी है।
हिरन्य की खान की सी पिण्ड माहीं प्रान की सी
धूप में वितान की सी सुख पहूंचानी है।
रोग के निदान की सी हरी गुन गान की सी
प्रेम रस पान की सी चारन की बानी है।।२
खीर भरे थार की सी कंज पुष्प हार की सी
बसंत बहार की सी मीठी मस्तानी है।
द्विज के कुठार की सी विध्युत प्रहार की सी
हलाहल मार की सी करवी कहानी है।
गंग जल धार की सी तुहिन आगार की सी
मलय बयार की सी सीतल सुहानी है।
समझै तो सार की सी नहीं तो अ सार की सी
विवध प्रकार की सी चारन की बानी है।।३
सर्व रस सानी देवी देवता रिझानी महा
राजा राजा मानी शूर वीरां को सुहानी है।
साहित्य की खानि शब्द सिरता बहानी कथा
कविता कहानी अब कछु अलसानी है।
बक्त पर्यो आनि एक भाव दूध पानी जैसौ
लाभ वैसी हानी ऐसी छाई नादानी है।
जानकार जानी नांहीं समझै अग्यानी किव
डूंगर बखानी ऐसी चारन की बानी है।।४
~~डूंगरदानजी आशिया