चारण ने हमेशा उत्कृष्ट के अभिनंदन एवं निकृष्ट के निंदन का अहम कार्य किया है

PatrikaKhedकल की अशोभनीय खबर का खेद प्रकट करते हुए आज राजस्थान पत्रिका ने लिखा है कि उन्होंने ‘ऐसा मुहावरे के तौर’ पर लिखा है। जहां तक हमारी जानकारी है हिंदी शब्दकोश या मुहावरा-लोकोक्तिपरक कोशों में ऐसा कोई मुहावरा नहीं जो कल के समाचार में लिखे मंतव्य को बयां करता हो। और जहां तक जातिसूचक मुहावरों या लोकोक्तियों की बात है तो बहुत से ऐसे मुहावरे हो सकते हैं लेकिन क्या किसी मुहावरे को मनचाहे ढंग से कहीं भी प्रयुक्त करना सही है। यदि ऐसा है तो मैं ऐसे अनेक शब्दों की जानकारी राजस्थान पत्रिका एवं लेखक मि. वर्मा को उपलब्ध करवा सकता हूँ। क्या वे उन शब्दों का प्रयोग करते हुए ख़बरें या लेख प्रकाशित करेंगे?

GarvHaiMeinCharanHoonवैसे वर्मा एवं राजस्थान पत्रिका के उन तमाम सुजान संपादकों की जानकारी के लिए बतादूं कि चारण बनना आसान नहीं है। चारण बनने के लिए बहुत माद्दा चाहिए। चारण बनने के लिए मां सरस्वती की अहम अनुकंपा की जरुरत होती है। यही तो कारण रहा कि देश के शीर्षस्थ साहित्यवेता एवं राष्ट्रीय स्वर के प्रखर रचनाकार श्री रामधारी सिंह दिनकर, जिन्हें राष्ट्रकवि का सम्मान मिला है ( हो सकता है आप जैसे आधुनिक बुद्धिसंपन्न एवं चिंतनपरक संपादक इसे नहीं माने पर देश ‘दिनकर’ का सम्मान राष्ट्रकवि के रूप में करता है) ऐसे महाकवि के मन में भी चारण के प्रति इतना सम्मान था कि वे खुद अपने आपको ‘युग-चारण‘ कहने में गौरव महसूस करते थे (पढ़ें: राष्ट्रप्रेम का युग चारण: दिनकर)। इतिहास इस बात का साक्षी है कि हर कलमकार ने अपने आपको ‘चारण’ कहने में गौरव का अनुभव किया है और करते हैं आज भी देश में मंचीय कविता में वीररस के शिखर पुरुष हरिओम पंवार को अपने आपको युग का चारण कहने में गर्व महसूस होता है (पढ़ें: मैं झोपड़ियों का चारण हूँ आँसू गाने आया हूँ |)। अनेक ख्यातनाम कवियों ने अपनी रचनाओं में खुद को चारण कहकर फक्र किया है।

संपादक जी! आपने सुना तो है पर गुना नहीं है वरन गुनाह कर बैठे। ‘चारण’ को चापलूस का पर्यायवाची मानने से पहले चारण के योगदान पर जरूर सोचना चाहिए था। यह सार्वभौमिक सत्य है कि जो जितना बड़ा, सामर्थ्यवान एवं सक्षम होता है, उसके खिलाफ कुछ हल्की टिप्पणियां गाहे बगाहे हास-परिहास के लिए चल पड़ती है जैसे अक्सर पत्नी को लेकर हल्की टिप्पणियां हास्य में की जाती है लेकिन उसे सच मान लिया जाए तो समाज का बंटाधार नहीं हो जाएगा ? एक उदाहरण से बात स्पष्ट करूं( नारिशक्ति से अग्रिम क्षमा चाहते हुए) जब कभी किसी शब्द के मात्रात्मक वर्तनी रूप को देखने की बात आती है तब एक जुमला आम है कि- किसी ने अपने मित्र से पूछा कि नारी में ‘ई’ की मात्रा छोटी होगी या बड़ी तो दूसरा मित्र कहता है कि भाई नारी और बीमारी कभी छोटी नहीं होती। यह मात्र हास्य है और इसे आप जैसे विद्वान् नारी को बीमारी बताने लग जाएं तो नारी की क्या स्थिति होगी, वही स्थिति आज चारण समाज की है। ‘चारण’ कभी चाटुकार नहीं रहा है। चारण एक स्वाभिमानी कौम है और हमें फक्र है अपने आपके चारण होने पर।

चारण ने हमेशा उत्कृष्ट के अभिनंदन एवं निकृष्ट के निंदन का अहम कार्य किया है। भारत की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों के खिलाफ पूरे देश में सबसे पहले आवाज उठाने का काम हम चारणों ने किया। यदि इतिहास पढ़ने की फुर्सत है तो जरा स्वतंत्रता संग्राम् में राजस्थान के योगदान को ठीक से पढ़ें। राजस्थान के चारण बांकीदास आसिया ने 1857 से दशकों पहले ‘आयो अंगरेज मुलक रै ऊपर, आहस लीधी खेंच उरां/ धणियां मर्यां न दीधी धरती, धणिया ऊभां गई धरा’ (पूरा पढने के लिए क्लिक करें) जैसा प्रखर गीत लिखकर देश के सोये हुए स्वाभिमान को जगाने का कार्य किया। महाराणा फ़तेह सिंह को सितारे हिंद के लिए दिल्ली दरबार में जाने से रोकने के लिए अपनी वरदायी वाणी बोलने वाले अमर स्वतन्त्रता सैनानी केसरीसिंह बारठ की ‘चेतावणी रा चूंगटिया’ (पूरा पढने के लिए क्लिक करें) छब्बीस पंक्तियों की रचना है लेकिन इतिहास की धारा को बदला। मेवाड़ को देश की जनता ने जो हिंदुआ सूरज का खिताब दिया था उस खिताब की लाज बचाने का कार्य केसरीसिंह बारहठ ने किया, जो चारण थे।

माननीय संपादक जी। यदि जाति विशेष के योगदान की बात चलेगी तो फिर इतिहास का अन्वेषण जरूरी होगा। और यह हमारा दावा है कि जिस दिन हमने किसी जाति के लिए आपकी तरह विशेषण ढूंढने शुरू कर दिए (यद्यपि हमारे संस्कार हमें इसकी अनुमति नहीं देते हैं) उस दिन धारा के वेग को रोक पाना बहुत मुश्किल हो जाएगा क्योंकि हमने तो रणांगण में कलम और करवाल को एक साथ साधने का कार्य किया है।

आपने अपने अखबार में ‘चारण’ को लेकर की गई टिप्पणी पर क्षमा याचना तो की है लेकिन वहीँ चारण को चापलूस का पर्यायवाची मानने की आपकी हठधर्मिता स्पष्ट दिखाई देती है। संकेत में आपको कुछ लिखा है, ज्यादा लंबा अभी लिखना ठीक नहीं। यदि वाकई आपको लगे कि आपने किसी जाति के खिलाफ आहात करने वाली टिप्पणी की है तो मन से क्षमा याचना करते हुए इस जाति के योगदान को अपने आलेख् का विषय बनाएं। Ravindranathफिर हमें लगेगा कि आपकी भूल हुई है अन्यथा तो आपका खुला सा षड़यंत्र चारण समाज की प्रतिष्ठा को तार-तार करने का लग रहा है। मैं एक उदाहरण आपको देता हूँ शायद इस रचनात्मक प्रतिभा वाली जाति के बारे में सही-सही जानने के लिए आपका मन बने। मैंने रामधारी सिंह दिनकर एवं हरिओम पंवार के नाम गिनाए, ऐसे अनेक नाम है, जिनमें महात्मा गांधी का नाम भी एक है, जो चारण समाज के योगदान को अहम मानते हैं। विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने राजस्थान के चारण श्री हिंगलाजदान कविया, सेवापुरा जयपुर को डिंगल काव्य पाठ करते हुए सुना। जब कविया काव्यपाठ कर रहे थे तो उनके काव्यकौशल एवं प्रस्तुतीकरण से विश्वकवि इतने प्रभावित हुए कि वे अपने स्थान पर खड़े हो गए, उनके रोम-रोम खड़े हो गए, जिसे काव्यापाठके बाद विश्वकवि ने खुद बयां किया तथा चारणों की डिंगल काव्य परंपरा एवं उनके रचनाकौशल की भूरि-भूरि प्रशंसा की, ये सब बातें यूं ही नहीं है, सबके लिखित साक्ष्य उपलब्ध है। बहरहाल ! हमारा मानना है कि किसी भी विद्वान् को किसी जाति विशेष को लेकर मुहावरे गढ़ने का दुस्साहस नहीं करना चाहिए। आप जैसे विद्वान लेखक एवं सुधी संपादकों से यह अपेक्षा हमेशा रहती है कि किसी कौम के रचनात्मक योगदान एवं स्वाभिमानी सृजन को गाली ना दे। चारण को समझने के लिए राजस्थान एवं गुजरात की डिंगल कविता को समझना जरूरी है। इस बाबत आप जितनी चाहें उतनी सामग्री उपलब्ध है। आप कहें तो उपलब्ध करवा दी जाएगी। आशा है आपका अपेक्षित एवम् पत्रिका की साख के अनुरूप वक्तव्य आएगा।

~~डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’

राजस्थान पत्रिका में 19/7/16 के अंक में छपी यह अमर्यादित टिप्पणी न केवल आऩंद स्वरूप वर्माजी की कुंठित मानसिकता का परिचायक है बल्कि पत्रिका की संपादन नीति पर भी सवालिया निशान खड़ा करती है। वर्माजी का यह कहना कि ग्रेडिंग से तो ‘चारण भाट ही पैदा होंगे’ न केवल उनके मानसिक दिवालियेपन की परिचायक है बल्कि जाति विशेष की सामाजिक प्रतिष्ठा के भी प्रतिकूल है। जो लोग यहां तक नहीं जानते कि चारण क्या है?और भाट क्या है?इन दोनों जातियों का अलग अलग कार्य क्षेत्र रहा है और दोनों की समाज में अलग -अलग सम्माननीय स्थिति रही है।पीत पत्रकारिता करने वाले व सामाजिक अलगाव की भाषा बोलकर अपनी रोटी पकाने वाले वर्माजी जैसे लोगों ने न तो आज तक चारण साहित्य ही पढा और न ही इनकी ऐसी कोई पृष्ठभूमि रही है ।ऐसे में इन्हें कैसे पता होगा कि चारण क्या हैं? इन्हें विदित होना चाहिए कि चारण बनाए नहीं जाते बल्कि यह एक नैसर्गिक वैचारिक प्रतिबद्धता का नाम है जिन्होंने विदेशी आक्रांताओं के खिलाफ भारतीय जन मानस में विद्रोह की ज्वाला प्रज्वलित करने का कार्य किया है। जिस जाति में ईशरदास बारठ,दुरसा आढा,नरहरदास बारठ, जाडा मेहडू, बांकी दास आसिया, सूर्यमल्ल मीसण, केशरसिंह बारहठ जैसे प्रभृति कवि हुए जिनकी समकक्षता के लिए वर्माजी की सात पीढियां सात बार जन्म ले, तो भी नहीं कर सकती।

ऐसे बेहुदे व बेहया बयान की जितनी निंदा की जाए शायद कम होगी। जन -जन की आवाज कहीं जाने वाली राजस्थान पत्रिका अगर किसी जाति विशेष की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने वाले बयान प्रकाशित करती है और सामाजिक वैमनश्य फैलाने में ऐसे लोगों को प्रश्रय देती है तो घोर निंदनीय है। पत्रिका अपने इस प्रकाशित बयान पर खेद प्रकट नहीं करती है तो इन दोनों समाजों को इसका बहिष्कार करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए।
~~गिरधरदान रतनू दासोडी
मानद अध्यक्ष
प्राचीन राजस्थानी साहित्य संग्रह संस्थान दासोड़ी ,बीकानेर।

सच तो ये है चापलूस आनन्द स्वरूप वर्मा…कि जिन राजा महाराजाओं की तस्वीर देखकर तुम आज भी पेंट गीली कर देते हो…. उनके सामने चारण कवि अपनी कविता में प्रजा की पैरवी करता था..आज भी उसे ही सरवस्ती पुत्र कहा जाता है ….कभी फुर्सत से इतिहास पढना…. आज ये कविता पढ ले…

“चारण कवि”

हाँ आज बदळती दुनियां में
विज्ञानी सूरज ऊग गियो
तारां ज्यूं उङतौ आसमान
ओ मिनख चाँद पर पूग गियो
नूंवी तकनीक मशीनां सूं
पल पल री खबरां जाण सकां
सुख दुःख री बातां सचवादी
अखबारां छाप बखाण सकां
अजकालै पूरी आजादी
है साच झूठ नैं जांचण री
कम्प्यूटर टीवी रेडियो सूं
जग में दरशावण बाँचण री
अब तो आं खबर नवीसां रै
कानूनी औदो हाथां में
अै बोल सकै अर तौल सके
जनता री हालत बाथां में
पण याद करो बै दिनङा जद
रजवाङी डंको बाजै हो
घोङां री टापां रै सागै
अम्बर गरणाटै गाजै हो
जद सामन्ती हूंकारां सूं
धरती थर थर थर्राती ही
उण बैळ्यां अैके बाणी सूं
चारुं दिश जै जै गाती ही
राजा रै साम्ही आँख उठा
जोवण री हिम्मत नीं हूती
मुंह खोल्यां मोटी बात बणै
रोवण री हिम्मत नीं हूती
उण बखत धरम रो रखवाळौ
जन जन री पीङा लख लैतो
बो चारण ही सब खरी खरी
मुख भरी सभा में कह देतौ
जद जद सामन्ती ठाट-बाट में
राजा राह भटक जातौ
इतिहास गवाह है उण बेळ्यां
चारण कवि मारग दिखलातौ
बज्जर सूं तेज बदन जिणरो
सिंहां री झपटां भिड़ जातौ
बो वीर भवानी रो जायो
भैरव ‘जुग चारण’कहलातौ ||
~~@प्रहलादसिंह झोरङा

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