चारण – डॉ. रेवंत दान बारहठ

स्वर्ग के लिए जब पहली
बार रचे थे पांच देव –
देवता, विद्याधर, यक्ष, चारण और गंधर्व
तभी इहलोक पर रचा था केवल
एक नश्वर मनुष्य
मगर मनुष्य ने खुद को बांट दिया था
क्षत्रिय, बामण, वैश्य और शूद्र में
कहते हैं कि राजा पृथु ने
स्वर्ग के देवताओं में से
चारण गण को आहूत किया था
मनुष्यों के बीच सत्य की रक्षार्थ
तब गंधमादन पर्वत को
बनाया था उन्होंने पहला पड़ाव
वे ब्राह्मणों की बनाई हुई
चतुर्वर्ण चौकड़ी में नहीं समाए
और वे समय के सूरज पर
शब्दों के सच्चे सारथी बने
जिनके साक्षीभाव से ही
संभव हुआ हर बार
देवताओं द्वारा दानवों का दमन
श्रीमद भागवत ने बखाना कि
“चारयंति किर्तिमती चारण”।
जिन्होंने मनुष्य समाज को
आदिम से सामाजिक बनाया
जिन्होंने हिंसक बनैले जानवरों को
नाथ से,नकेल से,लगाम से,
अंकुश से और चाबुक चलाकर
पालतू बनाया
जो देश देशान्तर में
वेद और योग के प्रचारक बने
इन वैदिक कवियों को
पुराण स्मृतियों और जैन ग्रंथों में
श्रद्धा से चितारा है
अष्टाध्यायी, हर्ष चरित और राजतरंगिणी
भवभूति और कालिदास ने
उनकी प्रज्ञा को नमन किया है
संसार में कवि, ईश आराधक
और देवी अवतार
जिनकी शाश्वत परम्पराएं रही
जिनकी खरी खरी सुनकर
क्षत्रियों ने भी शीश झुकाये
सत्य की रक्षा के लिए
वाणी के इन वरद पुत्रों ने
अन्याय के विरुद्ध धरना और झंवर किया
तागे और तेलिये करके खुद को जम्मर किया
पर सांच को आंच न आने दी
उन्होंने ईश स्तुति और वीरत्व के अलावा
किसी की वंदना नहीं की
ईसरा परमेसरा का हरिरस
और देवियाण का पाठ
आज भी गूंजता है घर घर में
इनके आऊवा के लाखा जमर ने
संसार को सिखाया सत्याग्रह का पाठ।
मातृभूमि की रक्षा के लिए
रणभूमि में जिन्होंने
एक हाथ में कलम
और एक में करवाल लेकर
आताताईयों के अश्वों की वल्गाओं को थामा
और अपने साथ जूझ रहे जुझारों को
” मरण बड़ाई मांय ” का
रणराग सिंधु सुनाया।
जिनके घर आंगन में
हिंगलाज,आवड़, करणी,
खोड़ल और बिरवड़ ने
मातृ शक्ति बनकर अवतार लिया
जिनकी आजीविका
सत्य पर आधारित थी
जो सत्य के संभाषक
और वीरत्व के व्यंजक थे
सरस्वती के इन मानस पुत्रों की
काव्य प्रतिभा से विरचित
दिव्य स्तुतियों में
नारी को नारायणी,ब्रह्माणी,
विद्यादायिनी कहकर संबोधित किया
जिनके शब्द मंत्र
डिंगल का अनहद नाद बने
दिव्य स्तुतियों में समाहित होकर
जो धरणी आकाश का निनाद बने,
बामनों ने जिनकी मेधा से भयाक्रांत होकर
छल कपट से बंद कर दिए
काशी के विद्यापीठों के द्वार
फिर भी कंठ दर कंठ चलता रहा
जिनके अद्भुत ज्ञान का प्रवाह
शब्द जिनके संस्कारों में थे
कवित जिनके शोणित में था
हर चारण छंदशास्त्र था
और मंत्र की तरह स्वयं सिद्ध था।
जिन्होंने शोषितों दलितों को गले लगाया
जानबाई बनकर अपना फरजंद बनाया
करणी माता बनकर दशरथ को पुजवाया
देवल बनकर कागों को अपनाया
सत्ता के मदांध में झूमते
सूमरा,शिलादित्य,जायल खींची
कान्हा राठौड़ और अकबर को
दंडित कर मानव आचरण सिखाया
सत्य जिनका आचरण था
सत्य जिनका उच्चारण था
सत्य ही जिनके जीने का कारण था
यह सदियों पुरानी बात है
जिसका साक्षी इतिहास है
आज जिस धरती पर
इंसानों के भेष में
रहने लगे हैं धूर्त सियार,
मानवरक्त के प्यासे नर पिशाच
एक समय था जब
सचमुच के इंसानों के बीच
दिव्यगुणों वाले कोई गण भी रहा करते थे
हां ! यह सच है कि
कभी इस धरती पर मनुष्य रहते थे
उनकी मनुष्यता को जीवित रखने के लिए
उनके बीच चारण भी रहा करते थे।
~~डॉ. रेवंत दान बारहठ
गांव पोस्ट भींयाड़, तहसील शिव,
जिला – बाडमेर,राजस्थान, पिन 344701
ईमेल – rewantdan@gmail.com
सुन्दर।
लेकिन फिर भी एक सवाल तो है कि क्या चारण की वह उज्जवल परंपरा क्या अब भी वैसी ही है….अगर नहीं तो
फिर समाज के दूसरे वर्ग से इतनी भारी अपेक्षा?
बहुत अच्छी रचना है |
आपकी ये रचना और रचनाकर्म वन्दनीय है
बहुत सुन्दर हुकम
रेवन्त मामू आज आपने अपने समाज के बारे बहुत ही बड़ी बात लिखी है।
आज की स्थिति भयानक है मामू…..इसमें सुधार की आवश्यकता है।