चारणां कियौ नित अहरनिस चांनणौ – महेंद्रसिंह सिसोदिया ‘छायण’

।।दूहौ।।
सीर सनातन सांपरत, राखण रजवट रीत।
अमर सदा इळ ऊपरां, पातां हंदी प्रीत।।

।।गीत – प्रहास साणौर।।
पलटियौ समै पण छत्रियां मती पलटजौ,
राखजौ ऊजल़ी सदा रीती।
संबंधां तणी आ देवजौ सीख कै,
पुरांणी हुवै नह जुड़ी प्रीती।।

चारणां कियौ नित अहरनिस चांनणौ,
छत्रियां नहीं आ बात छानी।
सत्त रा पखू बण बैविया साचवट,
महीपत जिकां री बात मांनी।।

गूंजिया भडा़ं रा गाँव रै गौरवे,
गीत व्है गगन में अजै गूंजै।
औळिया मांडनै अमर जस राखियौ,
खरी आ राखजौ बात खूंजै।।

मंड्या कण-कण मेळा जिथ मांण हित,
शान नै बढा़ई बैय साथै।
जीभ पर शारदा रहावै जिणां रै,
सगत पण जिणांरै रहै साथै।।

चूंटीया भरीनै जगाया चारणां,
धारणां प्रबळ रख दियौ धीजौ।
कारणां इणी ज पूजनीक कौम रा,
वारणां इणां रा वधक लीजौ।।

ऊपड़ी आंधियां छायगी आभ में,
सांभळौ सनातन लीक साची।
निभाई आदलग जेम ई निभावो,
करो मत बात आ अबै काची।।

घटाटोप चहुँदिस व्हैगी गगन में,
लोप व्है रयी हैं लोक-वांणी।
कोप रैया हैं वळोवळ कटक दळ,
रोप पग हरावळ तोप तांणी।।

अबक्खै बगत में सदाई आपरो,
सगत रै सुतां नित कियो साथो।
जगत सह जांणवै ख्यात हर जूनकी,
नेहधर निभावै जाण नातो।।

तारसी छत्रियां हेताळू तवां आ,
आरसी साच री रखौ आगै।
ठारसी काळजो उकळतो ठाकरां,
सारसी काम कव होय सागै।।

वंदना करौ अब बीसहथ सिंवरतां,
पुरातन आखडी़ फेर पालौ़।
सनातन रैवसी सीर ओ सांपरत,
ढबैसर छत्रियां निजूं ढालौ़।।

।।सोरठा।।
ईहग लिख अखियात, ख्यात किया जग छत्रियां।
भूल मती यूं भ्रात, गुण आं रा गरिमामयी।।

कथतौ कुण तव कत्थ, ओजपूर्ण कह उक्तियां।
चारण हंदै सत्थ, अमर किया धर ऊपरां।।

म्हैं मानूं इक गंग, पावन करणा पात नित।
उर में भरण उमंग, तार्या आछा ताकवां।।

मरियां पछै मिळैह, नाम काम रै निमित पण।
जीवत जोत जळैह, पात तणी आखी प्रिथी।।

वसुधा पर विख्यात, चारण ऊजळ चित्त रा।
पूजीजै तो प्रात, सिरदारां पूजौ सदा।।

~~महेंद्रसिंह सिसोदिया ‘छायण’

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