चारणां नै समर्पित एक डिंगल़ गीत

गीत-प्रहास साणोर

करो बात नै सार इम धार नै कवियणां,साचरी चारणां कोम संभल़ो।
भूत रे भरोसै रेवसो भरम मे, बगत री मांग रे साथ बदल़ो।।१

पढावो पूत रु धीवड़्यां प्रेम सूं, रीत धर चारणां जदै रैसी।
निडरपण उरां मे बहो मग नीत पर, कोम री कीरती जगत कैसी।।२

सजो इक धार ने संगठन साबता, भूल सूं बुरी मत बात भाल़ो।
समै रै सामनै सजो मजबूत मन, टेम सूं करो मत आंख टाल़ो।।३

परहरो कुसंप नै पंथ बो प्रीत रै, देखलो जीत जगदंब दैसी।
हाट कुल़वट तणी कोम रे हेत री, लाट वो जगत मे सुजस लेसी।।४

सोटड़ां तणो ग्यो राज थै सांभल़ो, इल़ा पर वोटड़ां राज आयो।
पार नह आंट सूं हेक तिल पड़ेला, चेतियां होवसी मनां चायो।।५

वसुधा ऊपरै किता रंग बदल़िया, पूगगी दुनी उण चांद पाखै।
आंपै तो नसै असलाक मे अल़ूझ्या, लेस नह सल़ूझ्या अजूं लाखै।।६

वीणती कोम कज बहो सतवाट पर, लाग तज नेह सूं भीर लेसो।
अजूं ई चारणां उठो असलाक तज, थब हिदवाण रा थेई थैसो।।७

बेटां नै बेचणो छोडदो वीदगा, प्रीत घण बहुंवां हूंत पाल़ो।
जोड़सो अरथ सूं तनूपण जितै तक, भाव नै उवै घर मती भाल़ो।।८

बगारो मती दीह रात ऐ बातड़्यां, कर्म री शर्म नह रती कीजो।
धर्म री धजा सिर राखजो धारनै, दीठ बदलाव दिस नितां दीजो।।९

बाण आ नसै री त्याग दो बैलियां, नितां घर थेलियां ठीक नाही।
इणी सूं बूडग्या अपरबल़ अवन पर, पूगता पुरस ने पातशाही।।१०

बडो कुण लघु कुण पड़ो मत वाद मे, जोर कर जात रो साथ जुड़सी।
कहै कवि गीधियो लेस नह कूड़ री, पेखजो नीठ जद पार पड़सी।।११
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published.