चारणों के गाँव – थेरासणा

ई.स.1755 में मेवाड की राजधानी उदयपुर की गद्दी पर महाराणा जगतसिंह जी विराजमान थे। उस समय उदयपुर के राजकवि ठा.सा. श्री गोपालसिंह जी सिंहढायच थे। उनका परिवार कुम्भलगढ के पास मण्डा नामक गाँव में रहता था (यह गाँव जोधपुर के राजा नाहरराव ने ठा.सा.श्री नरसिंह जी सिंहढायच को जागीर में दिया था) उस समय ईडर के राजा राव रणमल थे और ईडर के राजकवि श्री सांयोजी झुला थे। वो ईडर से उत्तर दिशा मे श्री भवनाथ जी के मंदिर के पास कुवावा नामक गाँव है में रहते थे। सांयोजी बहुत बडे संत और कृष्ण भक्त थे। इनके बृज की यात्रा के लिए निकलने की बात ईडर के राव रणमल जी को पता लगी तो वे भी उनको मिलने हेतु उनके पीछे यात्रा पे निकल पड़े। पर तभी सांयाजी झुला ने नदी मे समाधी ले ली और देवगति प्राप्त हुए। यह बात राव रणमल को जब पता चली तो उन्हें बहुत दुःख हुआ। वो बडे ही निराश होकर वापस ईडर लोटने को रवाना हुऐ।

वापसी में रास्ता उनके मोसाण (मामोसा का घर) उदयपुर से गुजरता था अतः सबसे मिलते हुए निकलने का सोचकर वे उदयपुर पहुंचे। उन्होंने सांयाजी की सारी बात महाराणा जगतसिंह को बताई। जगतसिंह ने बडा खेद व्यक्त किया और उनके खास मित्र तथा उदयपुर के राजकवि श्री गोपालसिंह जी सिंहढायच को राजा राव रणमलजी को दे दिया। तब गोपालसिंह जी अपना पूरा परिवार लेकर राव रणमलजी के साथ ईडर पहुंचे। रणमल जी ने बडे मान सम्मान के साथ गोपालसिंह जी को ईडर का राजकवि घोषित किया। उसके बाद करोड पसाव और थेरासणा, वडाली, रामपुरा एवं थूरावास ये चार गाँव जागीरी में दिए। उस समय पूरी ईडर रियासत मे सबसे ज्यादा आवक (25,000/30,000) इन चार गाँवों की थी।

एक बार गोपालसिंह जी के पुत्र राजसिंह जी ईडर की सवारी मे दरबारगढ़ जा रहे थे। साथ में बहुत से लोग थे। उसी वक़्त वडाली के एक जैन व्यापरी ने उनसे कहा “ठाकुर साहब अपना पुराना हिसाब बाकी है कब चुकता करोगे?”

राजसिंह जी को आया गुस्सा, उन्होने दूसरे दिन उसके वहाँ जाकर कहा “मे चार गाँव का धणी और तेरी ये हिम्मत कि तू हमसे दरबार सवारी मे इस तरह से बात करे?” इतना कह कर कटार निकाल कर जैन की हत्या कर दी।

व्यापारी के परिवार वाले ईडर दरबार मे पहुँचे और कहा “महाराज न्याय करो, दरबार साहब राजसिंह जी ने मेरे बेटे की हत्या कर दी”

राजसिंह जी चूँकि राज्य के जागीरदार, राजकवि और दरबारी थे, तो राजा ने अधिक कुछ नहीं करके न्याय के तौर पर वडाली और रामपुर की जागीर खालसा कर दी।

गोपालसिंहजी ने एक हवेली (नाशवत है) और चार मंजिल की वाव बनवाई थी जो आज रामपुर मे स्थित है। वर्तमान में इनके वंशज थेरासणा के जागीरदार है। और वह चारणकुल में खानदान कहलाते है।
संदर्भ – फॉबस रासमाला
राव वीरमदेव पृ :677-78

प्रेषक: कुँ.जीगरसिंह सिंहढायच

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