छंद भयंकर भ्रमर भुजंगी – कवि भंवरदान माडवा “मधुकर”

।।दोहा।।
आद अनादी ईश रा, पढ जस चारण पूत।
भ्रमर भुजंगी भांतरा, उचरां छंद अदभूत।।
शुद्ध भावी समरण सदा, भँमर रट भूतेस।
षट दर्शण भगती खरी, जट धारी जोगेस।।
।।छंद – भ्रमर भुजंगी।।
जटा धार जंगा, गले में भुजंगा, सती नार संगा, गंगा धार गाजे।
खमे भ्रंग खारी, जमे कांम जारी, भमे रीस भारी लमे चन्द लाजे।
हुरां बीच हाले, चँडी साथ चाले, घटां प्रेम घाले, पटां प्रीत पावे।
अहो ओम कारा, सदा तो सहारा, मधुकर तमारा गुणां गीत गावे।।
कवी जो मधूको, धणी हेत धावे।
नचे खेल नट्टा, छिले अंग छट्टा, गिरां देत गट्टा, सुघट्टा, सुहाणी।
वजे नाद वाजा, अनेकां अवाजा, तपे भांण ताजा तके रीठ तांणी।
धुबे धोम धारां तिके थै ततारां, हजारां तरां ताल, भूमी हिलावे।
अहो ओमकारा, सदा तो सहारा, मधुकर तमारा गुणां गीत गावै।।
तँडां नृत तांणी, महा मोज मांणी, अच्चम्भे ज आंणी उमाँणी उमावे।
हुवा लोक हाकां त्रिलोकी त्रमाकां, डमंरू डमाकां घमाकां घुरावे,
हरी देख हम्फे, कठे व्रम्मं कम्पे, धुरी देव धम्फै झम्फैतां झुकावे।
अहो ओमकारा सदा तो सहारा, मधुकर तमारा गुणांगीत गावे।।
अखे ऊद यासी, गिरां रा रिवासी, सधू के सनासी, सदा तोय सेवे।
भजे जो सभागी जिकां नीद जागी, वणे वो विरागी क रागी रहेवे।
कहू धांम काशी, कहू जा कलाशी, हिमाले हुलाशी जिगाशी जतावे।
अहो ओमकारा सदा तो सहारा, मधुकर तमारा गुणां गीत गावे।।
प्रभू प्रीत पालो भली नीत भालो, चुरासी र चालो हमारो चुकावो।
भँमो भाव भोला चंगा केक चोला दिखै भेख दोला दुनीमे दिखावो।
हिजो जांण हमां करी क्रीत क्रमां, तुँही तूँज तमां जमां जीत जावे।
अहो ओमकारा सदा तो सहारा, मधुकर तमारा गुणां गीत गावे।।
।।छप्पय।।
आद नमो ओमकार, सार रख भगत सदाई।
सबतो नमे शंशार, भवां नित शरण भलाई।
काल तणो महाकाल, सकल कल पास सिधाई।
जगत झूठ जंजाल, आप तणी ईधकाई।
मधुकर सच बातां मुदे, महादेवा मुझ मनरी।
जग छोड़ जद होस्यो जुदे, आ गरजां उण दिन री।।
~~कवि भंवरदान माडवा “मधुकर”