छप्पय आशापुरा माताजी रा – भारमलजी रतनू “घडोई”

भारमलजी रतनू “घडोई” जद हिंगळाज दरशण वासते गिया उण समय वळता कच्छ आशापुरा (आवडजी) रे आगे ओ रचना बोली ही।
।।छंद-छप्पय।।
तुं माता तुं पिता, तुंहिज बंधव तुं बाइ।
तुं साजण तुं शेण, साथ पण तुंज सदाइ।
तुं उत्तम आधार, वाट ओ घाट वहंते।
देवी तुं दिवाण, कवित गुण गीत कहंते।
सही थोक दिये तुंही सदा, कर जोडे तुनां कहां।
माहरा देव परदेश मां, मन डर मत आधार मां।।1
कुण बीजो सम्मरुं, वाट ओ घाट वहंता।
कुण बीजो सम्मरुं, रणां चाचरे रहंता।
कुण बीजो सम्मरुं, ओळ्ग भय हार ओ देवी।
कुण बीजो सम्मरुं, देश परदेशां देवी।
सम्ररां तुहि आदि शगत, तुं विण कुण वाहाविए।
सुर रात्रि वार तुं सारखी, आइ वेगे आविए।।2
झरे गिरे झंगरे, मढे चाचरे मसाणे।
वडे तटे वम्मरे, रहे तुंहिज रिण टाणे।
सदा सरे सायरे, रास त्रिय भुंवणाँ रम्मे।
अलख थकी उमीया, इला अमर आगम आगम्मे।
आ उठ पीठ अवगाहणी, आद जुगाद उपावणी।
कर जोड एम सेवग कहे, जयो जयो मा जोगणी।।3
आज दीठ कोहलो, आज दीठो देशाणो।
आज दीठ त्रेमडो, आज दीठो नागाणो।
आज दीठ आबुवो, आज सांधवगिर दीठो।
आज दीठ अंबाव, विमळ चालकना पीठो।
वंकडो गडो क्रोडी विमल, के अडसठ तिरथ किया।
आज मुख देख आशापुरा, देवी ईता मुख देखिया।।4
~~भारमलजी रतनू “घडोई”
प्रेषित: मोरारदानजी सुरताणिया (मोरझर कच्छ)