छोटी बहर की एक गज़ल

🌺गज़ल🌺
रैण अंधारी!
लागै खारी!
नैण आप रा,
तेज कटारी!
सूरत थारी,
पर बलिहारी!
संगत करल्यां,
आ कविता री!
बात कदे नी,
करणी खारी!
कविता सुरसत,
री बलिहारी!
भीड लगी मढ,
में भगतां री!
मन री इच्छा,
अगन कुँवारी!
अंतस सुल़गै,
नित चिंगारी!
कवि री कविता,
ज्यूं फूलवारी!
आखर आखर,
केसर क्यारी!
नरपत मनरो,
है अलगारी!
~~©वैतालिक