चिरजा चंदू माजी री

साद करंतां कापणी संकट, आप उदाई आय।
पूर पखो नित पाल़णी पेखो, मात चंदू महमाय।।टेर
हे मा चंदू आप पुकार सुनकर अपने भक्तों के संकट निवारण करने वाली हैं !! इसलिए तो आप अपने निजजनों का पूर्णतया पक्ष निभाती हैं।
गढवाड़ा जिण गंजण चाह्या, तरवारां बल़ ताय।
सांभ बातां जद कोप जिणां सिर, धमकै कीधो धाय।।
………………..मात च़ंदू महमाय।।1
जिसने भी गढवाड़ों (चारणों के गांव) को डराना अथवा तलवारों के बल पर विध्वंस करना चाहा और जब आपने उन आतताइयों की ऐसी मंशा देखी तो उन पर कुपित होकर गढवाड़ों की रक्षार्थ उन पातकों को रोकने हेतु उनके समक्ष अडग खड़ी रही।
ढोल ढमाकां कांकड़ ढूकी, कीध कंठीरू काय।
साख दिनंकर वंश रै सारु, निरमल़ झाल़ां न्हाय।।
………………..मात चंदू महमाय।।2
आतताइयों को रोकने हेतु ढोल के ढमके सिंहणी के रूप में सीमा पर पहुंची और चारणाचार को पवित्र रखते हुए तथा वंश की आबरू हेतु सूर्य की साक्षी में योगबल पर अग्नि स्नान किया।
नेस बचायो देस में नामी, वेस खमा वरदाय।
चोल़ चखां कर काल़जो चीर्यो, सालम रो सुरराय।।
………………..मात चंदू महमाय।।3
देश में नेसों (चारणों के घर) की रक्षार्थ आपने जो रूप धारण किया उसे सभी ने वंदनीय माना क्योंकि आपने उसी रूप में चोल़ यानि लाल नेत्र करके आतताइ सालमसिंह चांपावत के कलेजे को विदीर्ण कर दिया था।
पाट गयो निरवंश वो पोढी, कूड़ नहीं गल काय।
ऊजल़ कीनो काम अखैसर, जस नहीं जग जाय।।
………………..मात चंदू महमाय।।4
आपके इस सत्य की रक्षार्थ किए गए आत्मोत्सर्ग के कारण पोढी (पोकरण का एक नाम) का सिंहासन सालमसिंह के बाद निर्वंश चला गया, इसमें किसी भी प्रकार की असत्यता नहीं है। आपने आपके प्रपितामह के जन हितार्थ खुदवाए गए अखेसर (माड़वा का प्रसिद्ध तालाब) को उज्ज्वल करके जो सुयश स्थापित किया वो सदैव अमर रहेगा।
माड़वो अंजसै पीहर मोटो, अंजस भाखरी आय।
इल़ दासोड़ी सासरै अंजस, मोद थारै पर माय।।
………………..मात चंदू महमाय।।5
आपके इस गौरव अभिवृद्धि करने वाले कार्य के बल पर माड़वा (चंदू मा का पीहर) तो गौरवान्वित है ही साथ आपका ननिहाल भाखरी भी अपने आपको गौरवान्वित मानता है तो दासोड़ी (चंदू मा का ससुराल) भी इस कीर्ति प्रद कार्य पर मुदित है।
जोगणी राजी जाल़ टुल़ां बिच, थान बैठी कर थाय।
रल़ियाणा हद रूंखड़ा पीहर, भोम भली मन भाय।।
………………..मात चंदू महमाय।।6
हे भगवती! आप तो अपने पीहर के जाल (एक वृक्ष) व टूल़ों (करील) के बीच में ही प्रसन्नचित्त रहती हो इसलिए तो वहीं स्थान बना लिया। आपके वहां विराजित होने से ही वहां की प्रकृति मनोहारी व वो भूमि प्रिय लगती है।
मगरा मोहणा माडधरा रा, दिल किया निज दाय।
पाल़ अखैसर पावन पहुमी, रास रमै सुरराय।
………………..मात चंदू महमाय।।7
आपको माडधरा के मगरै बड़े प्रिय लगते हैं अतः आप तो वहीं प्रसन्न हैं। उसी मगरों में आई हुई पवित्र अखेसर की भूमि पर आप सदैव रास रमती रहती हैं।
देवी बूट बलाल दिपैरी, खमा खारोड़ाराय।
साथ थारै दिन-रात ऐ सहियां, गूघरिया घमकाय।।
………………..मात चंदू महमाय।।8
आपके साथ बूट, बलाल सहित खारोड़ाराय(देवल) आदि तो शोभित हैं ही, साथ ही अन्य कई शक्तियां भी अखाड़े में खेलने हेतु आती रहती है।
दास जीयावत गीधियो दादी, पड़ियो थारै पाय।
ऐम चढावै भावरा आखर, देख लीजै कर दाय।।
………………..मात चंदू महमाय।।9
हे दादी जीयै के वंशज गीधिया (गिरधरदान) आपके चरणों की शरण है। जो केवल आपको भाव के अक्षर समर्पित कर रहा है, अतः बिना किसी मूल्यांकन आप स्वीकार कर लेना।
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”