चिरजा मंदिर की – कवि हिंगऴाजदान जी जागावत

आदरणीय जागावत हिंगऴाजदान जी सा चिरजावां में अनूठो प्रयोग करियो है। भगवती का मंदिर ने सम्बोधित करती दो रचनावां करी है जिणमें पहली में निवेदन है कि हे माँ भगवती आप भव्य मंदिर को निर्माण करवायो जिणमें कई भांत की विशेषता है, और दूसरी चिरजा में भवन ने कहियो है कि भवन तूं कितणो भाग्यशाली है जो बीसभुजाऴी भगवती आप में बिराजमान है।
।।प्रथम।।
अम्बा हे गढ मानहु स्वर्ग बसायो।
सो सह शकत्यां आय सरायो।।टेर।।
दिशि पूरब झांकत दरवाजो,
कोट तणो करवायो।
ऊंचा पण देशाण अन्दाजै,
लोयण भोत लखायो।।1।।
बुरज उतर वारी पर भारी,
“भगवती-भवन” बणायो।
ताहि नजीक सरिस तैं कूवै,
श्री जऴ सो सरसायो।।2।।
करण निरत मँढ के नजदीकी,
चारू महल चुणायो।
द्वार जिकण नांमां शुध्द आंकां,
करनल रो लिखवायो।।3।।
कीर्ति सुकवि गढ की को बरणै,
पार न कौ अजु पायो।
आसति छवि अवलोकि दृगां उण,
नाक घणों सिर नायो।।4।।
उण मूरति सूरति उण आगे,
हौ गुण गा हरषायो।
कह “हिंगऴाज” कृपा करि केता,
संकट विकट नसायो।।5।।
अम्बा हे गढ मानहु स्वर्ग बसायो।
जिणनै सह सकत्यां आय सरायो।।
।।द्वितीय।।
भवन तैं तो भजन कर्यो काहा भारी।
तौ में ब्राजत जग महत्तारी।।टेर।।
सकत्यां अमित तणी तसबीरां,
सजि सजि निज असवारी।
कूकङ हंस चढी केई केहरी,
सरिस रूप धरी सारी।।1।।
थऴवट राय दिशा आथूंणी,
मूरति कंचन वारी।
सब सुररायां सीस सिरोमनि,
छबि देखत चित छारी।।2।।
सांझ सुबै करनल री सेवा,
इन्दर करत अणपारी।
अजपा जाप जपै मुख अम्बा,
दीप पुंज कर धारी।।3।।
मधु आसोज सुदी के मांहीं,
बणत बिछायत भारी।
मदकरिपान मात नृत्य मंडै,
धूजत सर तो धरारी।।4।।
धनि “हिंगऴाज” मात रो मंदिर,
कवि कुऴ रो सुख कारी।
इन्दर अम्ब तपो युग ऐता।
देह रखी रह धारी।।5।।
भवन तैं तो भजन कर्यो काहा भारी।
तौ में ब्राजत जग महत्तारी।।
~~कवि हिंगऴाजदान जी जागावत
प्रेषित: राजेन्द्रसिंह कविया (संतोषपुरा, सीकर)