चोर निदाणै कै न्हासै!!

पुराणो जमानो मारकाट, लूट खसोट, दाबा मसल़ी रो हो अर्थात जिण री डांग उणरी ई भैंस! कणै लोग घात प्रतिघात कर लेता इणरो ठाह ई नीं लागत़ो। ऐहड़ो ई घात प्रतिघात रो एक किस्सो है तणोट रै राजकंवर देवराज भाटी रो।

देवराज भाटी भटींडै रै वराह राजपूतां रै अठै जान ले परणीजण गयो। वराह रै मन में भाटियां रै प्रति खारास उणां देवराज अर बीजै भाटियां साथै घात तेवड़ी अर पूरी जान रो धोखै सूं घाण कर दियो पण जोग सूं आ सुल़बल़ देवराज री सासू सुणली! उणरै मन में आपरी बेटी री ममता जागगी। बा नीं चावती कै कालै हाथ पील़ा किया अर आज उणरी बेटी लंबी पैरै! उण आपरी बेटी नैं विधवा होवण सूं बचावण सारु ‘आल’ राईकै नै बुलायो अर कैयो कै ‘देवराज नै रातो -रात कठै ई ऐहड़ी जागा छोडर आव जठै उणनै जीव रो जोखो नीं होवै। ‘ आल आपरी ‘जाणक’ सांढ माथै देवराज नै चढाय टुरियो जिको भटींडै सूं रात-रात में पोकरण री घाटी जाल़ां में पूगग्यो। अठै सांढ बेल़ास रो भार झाल नीं सकी जणै आल देवराज नै कैयो ‘भलांई म्हनै अठै उतारदो अर सांढ आप ले जावो अर भलांई आप अठै जाल़ां में उतर जावो अर सांढ म्हनै ले जावण दो, क्यूंकै अबै सांढ बेल़ास (दो सवार) रो भार झेल नीं सकै ! ‘  जणै देवराज कैयो कै ‘सांढ तूं लेय जा अर म्हनै अठै उतारदे। ‘ देवराज जाल़ रो टाल़ो झाल लंटूब उतरग्यो अर राईको सांढ ले आगे गयो।

देवराज जाल़ सूं नीचो उतर थोड़ो आगे बूवो तो उणनै बोलाल़ो सुणीज्यो। बो उठीनै बैयो। आगे जाय देखै तो एक ढाणी, जठै एक डोकरो मांचै माथै बैठो। देवराज देखियो ढाणी बामणां री है उण, डोकरै नै पगै लागणा कर सारी हकीकत कैय बचावण री अरज करी। डोकरो ई सतधारी उण देखियो कै वेल़ा जाणी है अर बातां रैणी है। टाबर घराणै रो है पछै बाको फाड़र शरण मांग ई ली तो आंपणो फरज है कै इणनै बचायो जावै। डोकरै रो नाम वसुदेवायत पुरोहित (पुस्करणा) हो। उणां देवराज नै कैयो लाडी ऐ गाभा तो खोलदे र दूजा पैरर आ कसी उठा!! अर म्हारै इण छोरां साथै निदाण काढ लागज्या।

वसुदेवायतजी रा पांच मोट्यार बेटा एक पासै निदाण काढै हा, देवराज ई इणां भेल़ो निदाण काढण लागग्यो! डोकरै आपरै बेटां नैं कैयो ‘मींडा ओ राव तणू रो पोतरो है! चूड़ाल़ै विजैराज रो मोभी है! बिखै में आपांरी शरण आयो है। कोई पूछै तो थे इणनै भाई कैयर ई ओल़ख दिज्यो ‘

र वडो विद्वान, नेम नीती में नामी।
जिण जाणी सह जोय, वडै पुरस वरियामी।
वडै घरां रो बाल़, आज मो सरणै आयो।
जिणियै समही जोय, विपर कर कोड बिठायो।
तेड़िया पूत पांचूं तुरत, सही बात समझायनै।
देवजो ओल़ख इणरी दुरस, बंधव तोर बतायनै।। (गि.रतनू)

थोड़ी ताल़ पछै वाहर ई पगै-पगै पुरोहितजी रै खेत पूगी। डोकरो एकै कानी जाल़ री जाडी छिंया में माल़ा रा मिल़िया गुड़कावै हो। वराहां आवतां ई कैयो ‘गुरां अठै म्हांरो चोर आयो है! भलाई इणी में है कै म्हांरो चोर दे दियो जावै!! ‘ पुरोहितजी कैयो ‘ओ रैयो खेत, जोयलो चोर नै, कुण वरजै ! ‘ वराह समझग्या कै मा’राज सीधी सलाह में आपांरो चोर दैणो मुसकल है। उणां निदाण काढतै मोट्यारां कनै जायर जोयो तो उणांनैं एक छोरो थोड़ो डरूं-फरूं होयोड़ो लागो! उणां उण कानी आंगल़ी कर र कैयो ‘ओ म्हांरो चोर है, म्हांनै दे दिरावो !!’ मा’राज ई हाको सुण उठै आयग्या अर कैयो ‘ना रै भाई! ओ तो म्हारो लोहड़ो मोट्यार है। थांरो चोर भल़़ै कठै ई होई, अठै कोई चोर नीं है ‘

च्यार पहर हर भगत की, प्रगट दिखाई देत।
दया धरम अर दीनता, परदुख को हर लेत।।

वराहां ई मान लियो कै हो सकै ओ छोरो मा’राज रो ई होवै। बांमणां री ढाणी है अठै उजर ठीक नीं है-भायां गायां बामणां, भागा ई भल्लाह!!

पछै डोकरो चौथे आश्रम आयोड़ो है कोई कूड़ थोड़ो ई बोलै। जितै उणां नै एक बहुआरी ओडियो उखणियां भातो लेयर आवती दीखी। उणां कैयो इण बहुआरी नै पूछां कै इणरै खेत में कितरा मिनख निदाण काढै ? उणां बहुआरी नै पूछियो कै ‘बाई थारै खेत में निदाणिया कितरा ?’ इण कैयो ‘पांच !’ वराहां सोचियो कै साचाणी चोर अठै ई है। ऐ खेत में छवू मिनख निदाण करै! ऐ ई बहुआरी रै साथै पाछा डेरे आयग्या अर कैयो ‘मा’राज धोल़ां में धूड़ मत नखावो! म्हांरो चोर अठै ईज है! आ बाई कैवै खेत में पांच जणा है! अर ऐ जणा छव! जणै एक म्हांरो चोर पक्को। ‘ मा’राज भल़ै ई उणी दिढता सूं कैयो कै ‘ना रै भाई! ऐ म्हारा छोरा ई है! आ ई साची है इण छवां में एक इणरो धणी! उणनै आ निदाणियो कैय कीकर बतल़ावैली? थे ई राजपूत हो भला मिनख लागो हो! ओ एक तो इणरो सुहाग है! एकै मोट्यार कानी इसारो करता कैयो अर इती लाज तो ई में है कै आ आपरै धणी कानी कीकर इसारो करैला ?’ वराहां उण बहुआरी नै पूछियो ‘बाई राम माथै राखर बोली कै इणां में अपरोगो मिनख कुण ?’ बहुआरी गूंघटै में देवराज कानी झालो कियो कै ‘ओ है !!’ वराहां खरी मींट सूं डोकरै कानी जोयो! डोकरै उणी नेठाव सूं कैयो ‘नीं रै गैलां! आ तो इणरी भावज है, देवर सूं हंसी कर र डरावै! बाकी थे ई जाणो हो कै चोर निंदाण करैला का न्हासैला ‘

हाय भावज हासै!
चोर निदाणै कै न्हासै!!

वराहा भल़ै ई नीं मानिया अर इणां नै बेपारो करण नै उडीकण लागा! उण दिनां बामण किणरै ई भेल़ो भोजन नीं करता!
डोकरै आपरै मोटोड़ै बेटे रतनै नै कैयो ‘अरे रतन! तूं अर देवो भेल़ा बैठ जावो अर ऐ तीनूं भाई भेल़ा जीम ले ला !’ बापरै आदेश मुजब पांचां भायां साथै देवराज ई बेपारो कर लियो-

बात अखी वसुदेव, सँभल़ सुत रतन सचाल़ा।
भोजन वरियां भाल़, बैठजै साथ वडाल़ा।
भाई रो रख भाव, भ्रांत मत करजै भाई!
त्याग तुहाल़ै तरां, साच कथ बहै सदाई।
जदू रै साथ रतनेस जद, सही जीम्यो सभागियो।
जात रै जाल़ जाहर जदन, तरां विपरजन त्यागियो।।(गि.रतनू)

वराहां नै ई पतियारो होयग्यो कै ऐ पांचूं छोरा इण डोकरै रा ईज है। बै बुवा ग्या।

पांच सात दिनां पछै देवराज ई आपरी सुरक्षित जागा गयो परो।

देवराज रै जावतां ई दूजोड़ै भायां रतनै नै कैयो ‘भाई रतना हमे तूं थारी वड़ी वट, हमे आपां रा दो मार्ग। तूं एक वेदपाठी होय! राजपूत रै भेल़ो जीमियो सो हमे तूं बामण नीं रैयो। ‘ रतनै कीं दिन तो भायां री दुभांत सहन करी पण पछै स्वाभिमान हावी जिण पार नीं पड़ण दी जिणसूं वैराग उपड़ियो अर भायां सूं रीसाय रतनै गिरनार जाय जोग जगायो।

दिन बीता। देवराज संभियो। भुट्टां री जमी दबाय आपरै नाम सूं देरावर बसायो अर गढ बणाय राज थापित कियो। ज्यूं ई सुख री घड़ियां आई उणनै रतनो अर रतनै रो त्याग याद आयो। उण आदमी मेल पत्तो करायो तो ठाह लागो कै रतनै रै साथै भायां, राजपूत साथै जीमण सारु दुभांत करी अर जात बारै कियो। देवराज नै दुख होयो। उण आपरै आदम्यां नै कैयो कै ‘म्है गुणचोर नीं हूं! रतनो म्हारो मोटो भाई है! म्है राज करूं अर रतनो बिखै में दिन तोड़ै! तो म्हारै सारु लख लाणत री बात है! गुणचोर रो कदै ई भलो नीं होवै-

जन रज्जब गुणचोर का, भला न होसी नेट।
भसमाकर भसमी भयो, महादेव गुण मेट।।

सो जावो अर कीकर ई रतनै नै जोयर लावो। ‘  नासेटुवां आखिर गिरनार रै पहाड़ां में रतनै नै जोय ई लियो। उणां रतनै नै कैयो ‘भाई रतन अबै ऐ भंगमा न्हांख अर देरावर हाल! उठै भाटी देवराज आपरो राज थापित कियो है अर तन्नै मोटो भाई मानै !!’ रतनै कैयो ‘अबै म्हनै किणी सूं कोई लेणो -देणो नीं ‘  ‘मुझे है काम ईश्वर से, जगत रूठै तो रूठण दे!! म्है हरि रत्तो होयो हमे म्हारो हालण रो अंकै ई मत्तो नीं !!’ आवणिया पक्की तेवड़र आया। उणां घणो हट्ठ कियो जणै रतनो उणां रै साथै आयो!!

देवराज! रतनै सूं बाथै मिलाय मिलियो अर आपरो राजगुरु बणण री अरज करी! रतनै कैयो ‘अबै म्है ऐहडै रूढीवादी समाज में तो रैवूं ई नीं! जठै मिनख रै जीव सूं बत्ती परंपरावां है! मिनख रा प्राण भलांई जावो पण इणां रो धरम रैणो चाहीजै! जठै ऐहड़ा अधरमी उठै म्हारो वासो नीं !!’

देवराज कैयो तो आप ‘चारण कुल़ अपणाय म्हारा पोल़पात बणो !’ रतनै कैयो ‘आ सही है म्है चारण बणण नै त्यार हूं! जिण कुल़ में मा खूबड़, आवड़ जैड़ी लोकहितकारणी देवियां जनमै उण कुल़ में आय म्हनै गीरबो होवैला। ‘

देवराज, रतनै नै चारण बणाय, मीसणां में परणायो! अर आपरै भाईपै नै भेल़ो कर र कैयो कै ‘आज सूं रतनो म्हारो मोटो भाई! दो देह एक जीव! लेस ई न्यारा नीं! आज सूं आगे म्हारै कुल़ रो कोई भाटी रतनूवां सू विरचैला तो आ मानजो बो असली नीं होयर कमसल होवैला ‘

देवराज इम दाखियो, मुझ तणै कुल़ मांय।
भाटी विरचै रतनुवां, जो कुल़ सूधा नाय।।
देवराज इम दाखियो, मुझ तणै कुल़ मांय।
भाटी विरचै रतनुवां, जो कुल़ सूधा नाय।।

देवराज रै इणी भावां नै इण ओल़्यां रै लेखक इणभांत शब्दां दिया है-

देवराज यूं दख्यो, सुणो मो गोती सारा।
रावल़ नै रतनेस, निमख मत जांणो न्यारा।
कहूं सुणो दे कांन, भाल़ रतनो मो भाई।
जादम बदल़ै जोय, निपट असली रो नाही।
जादमां छात इणविध जगत, वसू सुजस वरणावियो।
मीसणां घरै धिन माडपत, पह रतनो परणावियो।।

इणी रतन री संतति चारणां में रतनू बाजै।

~~गिरधर दान रतनू दासोड़ी

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