चुगलखोर री चावना

सजन सबै संसार नैं, चुगली हंदो चाव।
गजादान चुगली बिना, बंतळ बेरस साव।
बंतळ बेरस साव, हुई बिन हुई हथाई।
भरै पेट में गैस, रंच नहिं रितै रिताई।
निंदा-रस निठतांह, रस-नौका मझधार में।
शोध-बोध-संबोध, सुकवि कहै संसार नैं।।01।।

बंतळ करतां बीच में, चुगल चलावै चांच।
साच-कूड़ सगपण करै, बोदा मंतर बांच।
बोदा मंतर बांच, स्वारथी खेत सिंवाड़ै।
खुसर-फुसर रो खेल, खेल सब खेल बिगाड़ै।
भरम भुंवाळी चाढ़, कोजा पटकै कीच में।
‘गजा’ राखजे चेत, बंतळ करतां बीच में।।02।।

सामी करै सराहना, पछै पिदावै काख।
काम निकाळै आपरा, राजी सबनै राख।
राजी सबनै राख, भाख कर कूड़ भलेरी।
मौको मिलतां करै, मिजळिया तेरी-मेरी।
‘गजा’ पंच पहचाण, (ज्यांरी) भली रंच नहिं भावना।
नामी खामी छोड, सामी करै सराहना।।03।।

सहकरम्यां रै सामनै, कर कुरसी री काट।
चुगल बणावै चूरमा, थावै अणहद थाट।
थावै अणहद थाट, इतै अफसर आ जावै।
पितलज पासो पलट, उठै उठ धोक लगावै।
‘गजा’ मतलबी मीत, लाज फैंक द्यै कीच में।
देवै फांटा घाल, सहकरम्यां रै बीच में।।04।।

गाड्या मड़ा उखाड़ कर, चुगल मनावै सूण।
कुचर घाव हरिया करै, बुरकै मिरचां लूण।
बुरकै मिरचां लूण, पूण नैं पाव बतावै।
कहै चोर नैं लाग, धणी नैं जाय जगावै।
‘गजा’ राखजै चेत, चलतां चाढै झाड़ पर।
रुगड़ करावै राड़, गाड्या मड़ा उखाड़ कर।।05।।

मुख-मिट्ठा पर-निंदणा, बर-बर सोगन बाण।
थिरचक थारी-माहरी, एह चुगल अहनाण।
एह चुगल अहनाण, प्रशंसा-पाश चलावै।
चक्रव्यूह री चूड़, चाढ़ नित कूड़ घुंकावै।
‘गजा’ राखजे गौर, जग में इसड़ा घण जणा।
घर फोड़ैला धूत, मुख-मिट्ठा पर-निंदणा।।06।।

~~डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published.