दादाजी (बालकाव्य)


दादाजी का कमरा जिसमें बच्चे मौज मनाते हैं।
नित्य नई बातें बच्चों को, दादाजी बतलाते हैं।
इक दिन दादाजी ने बोला, आज पहेली पूछूँगा।
जो भी उत्तर बतलाएगा, उसको मैं टॉफी दूँगा।
गणित विषय का ज्ञाता है वो, झटपट जोड़ बताता है।
घर बैठे हमको दुनियां की, सरपट सैर कराता है।
नाम बताओ उसका है जो, टीचर गाईड ओ ट्यूटर।
सारे बच्चे बोल उठे वो, अपना प्यारा कम्प्यूटर।।
वाह बेटा वाह वाह वाह जी, बोल उठे यूँ दादाजी।
हम बच्चों से बातें करके, होते राजी दादाजी।
लम्बे लम्बे सफर करे जो, बूढ़े बच्चे सबके संग।
गरमी सरदी बारिश में भी, वो न कभी भी होती तंग।
पतला रस्ता पकड़ के सरपट, मंजिल तक ले जाती है।
स्वागत का सिग्नल जहं दिखता, रुक करके बतियाती है।
इसका उत्तर देगा वो ही, जिसका तगड़ा ब्रेन है।
एक साथ सब बच्चे बोले, दादाजी वो ट्रेन है।
वाह बेटा वाह वाह वाह जी…..
कभी न थकती चलती रहती, सबको समय बताती है।
ना रुकती ना सुस्ताती है, शायद ही सो पाती है।
उसकी सुन कर बच्चे जगते, पापा न्हा कर आते हैं।
दादी मन्दिर चाचा ट्यूशन, दादा उपवन जाते हैं।
आधे बच्चे घड़ी बताते, आधे बोले मम्मीजी।
दादाजी ने लिया ठहाका, बोले अबकी फँस गए जी।
वाह दादा वाह दादाजी सबके प्यारे दादाजी।।
उठने में आता है आलस, मस्ती में मन लगता है।
पढ़ने की जब बात चले तो, दाएं बाएं भगता है।
अच्छे कपड़े अच्छे जूते, फैशन में सबसे आगे।
बस्ता पटका कपड़े बदले, संग सखा खेलन भागे।
दादाजी के कुल का दीपक, माँ की आंखों का तारा।
दीदी चुटकी लेकर बोली, वो है मेरा भैया प्यारा।।
वाह बेटा वाह वाह वाह जी…..
जहाँ ज्ञान का दान मिले नित, विद्या का वरदान जहाँ।
वीणापाणि का मंदिर वह, सच का है सम्मान जहाँ।
अनुशासन का पाठ पढ़ाता, संस्कारों की सीख सही।
मानवता की राह दिखाता, कहता सच्ची लीक यही।
बच्चों का मंदिर मस्जिद यह, गिरजा और शिवालय है।
पूरा कमरा गूँज उठा वह, दादाजी विद्यालय है।
वाह बेटा वाह वाह वाह जी…..
जिनका अनुभव सागर जैसा, जिनकी बुद्धि निराली है।
घर को गर हम बाग समझ लें, तो वे उसके माली हैं।
अपने घर के आभूषण हैं, आन बान ओ शान वे ही।
मम्मी कहती है हम सबके, हैं सच्चे भगवान ये ही।
वे बच्चों की ढाल बनेंगे, बोलो किसने कोल किया।
इसका उत्तर दादा-दादी, बच्चों ने झट बोल दिया।
वाह बेटा वाह वाह वाह जी….
सुबह से लेकर रात तलक, जो मेहनत करते दिखते हैं।
ज्यादातर बाहर रहते हैं, घर में कम ही टिकते हैं।
पूरे घर की ख़्वाहिश पूरी, करना जिनकी ड्यूटी है।
तीसों दिन की भागदौड़ है, कभी न उनको छुट्टी है।
मम्मी का सिंदूर सुहाना, बूढ़ी दादी की लाठी।
सब बच्चों ने कहा शान से, वो हैं प्यारे पापाजी।
वाह बेटा वाह वाह वाह जी….
~~डॉ.गजादान चारण “शक्तिसुत”