दई न करियो भोर


।।दोहे।।
कजरी, घूमर, लावणी, कत्थक, गरबा, रास।
थिरकूं हर इक ताल पे, जब आये पिय पास।।१
बीण, सितार, रबाब, ड़फ, मुरली ढोल मृदंग।
जब वो आए ख्वाब में, सब बाजै इक संग।।२
खड़ी याद की खेज़ड़ी, मन मरुथल के बीच।
शीतल जिसकी छाँव है, सजन! स्नेह जल सींच।।३
अँसुवन काजल कीच में, खिले नैन जलजात।
खुशबू से तर याद की, मन भँवरा सुख पात।।४
नैन-कंज, किसलय-पलक, पिय की याद पराग।
चखे चित्त का चंचरिक, काजल कीच तड़ाग।।५
नैनों की सीपी तले, पलकन मानस ताल।
पकते मोती याद के, चुगता जिया मराल।।६
भीगी मोरी कामरी, भीगा मोरा गात।
अबके सावन में हुई, यादों की बरसात।।७
मन का अंतर्नाद ही, है खुद से संवाद।
सीखी जिसने यह कला, वह रहता दिल-शाद।।८
नैन-चकोरी रैन को, मुंद पलक की कोर।
चितवत पिय मुख चंद्रको, दई! न करियो भोर।।९
पलक कुंडली में बसे, कस्तुरी सी याद।
पर नैना-मृग भटकते, मरुथल विरह विषाद।।१०
बदली में ज्यूं बिजुरिया, कदली में कर्पूर।
त्यों इन नैनन में सखी!, निर्गुन पी का नूर।।११
विरह-भुजंगम है बसे, याद मलय-गिरि बीच।
चंदन मन होकर उगा, चख-काजल-जल-कीच।।१२
रैना बीती जा रही, नैना रीता नीर।
बिन पिव द्रग की माछ़री, तलफत पलकन तीर।।१३
नदिया जैसे नीर बिन, मंदिर बिन ज्यूं दीप।
तुम बिन यूं है जिंदगी, ज्यूं मोती बिन सीप।।१४
रैन पूर्णिमा छँट गई, भई सुनहरी भोर।
चक्रवाक प्रमुदित हुआ, रोया बहुत चकोर।।१५
छोड़ूं साज सिंगार को, दरपन फेंकूं दूर।
साँवरिया के नैन में, निरख निखारूं नूर।।१६
सोरठ, तोड़ी, भैरवी, काफ़ी, जोग बिहाग।
राग रागिनी से मधुर, सखि! तेरा अनुराग।।१७
नैनन का चकवा युगल, बैठ पलक-तरु-डार।
अपलक सूरज याद में, करता आँखे चार।।१८
शीतल चंदन आप है, मैं मरुथल का फोग।
कहिये फिर कैसे बनें, मणि-कांचन संयोग।।१९
लागा तुझसे मन सखी!, हुआ तभी मैं खास।
पतझड़ सा पहले रहा, आज बना मधुमास।।२०
आती है;जाती नहीं, याद पिया के देश।
जा पाती तो भेजती, ज़ज़बाती संदेश।।२१
~~नरपत दान आसिया “वैतालिक”