दासोड़ी मीठो दरियाव!!

लारलै सईकै रै सिरै डिंगल़ कवियां में बगतावरजी मोतीसर रो नाम चावो है। बगतावरजी रो जनम गांम सींथल़ में होयो। मोतीसर चारणां रै सारु पूजनीक अर श्रद्धेय जात। लच्छीरामजी बारठ (गोधियाणा)रै आखरां में-

ज्यांसूं भेद कदै नह जांणूं,
हर कर आंणूं चीत हुलास।
मावल भला बणाया मांगण,
आयां आंगण हुवै उजास।।

बगतावरजी आपरी बगत रा नामी डिंगल़ कवि। जिणां री करणी सुजस प्रकास, पाबू गुण प्रकास, गंगेस रो गौरव, सेति मोकल़ी रचनावां चावी।

बगतावरजी रो गांम दासोड़ी में घणो आघमान। एकर बगतावरजी मेवाड़ गया। ढोकलिया ढूका उठै दो चार दिन रैया। पाछा आपरै गांम संभिया जणै दधवाड़ियां कैयो कै अबै आप डोढ दो महीणा अठै ई विराजो क्यूंकै इतरै दिनां पछै कविराज री बाईसा री शादी है अर जान जोधपुर कविराजजी रै अठै सूं आवैली।

बगतावरजी कैयो कै “इतरा दिन म्है अठै नीं रैय सकूं!”

क्यूं? आपरो घर है विराजो! सिरदारां निवेदन किय़ो

बगतावरजी कैयो कै “अबकै घणा दिन होयग्या दासोड़ी गयां नै सो म्है अठै सूं सीधो गांम जायर दासोड़ी जावूंलो।”

दधवाड़ियां कैयो “हुकम ! कविराजजी रो घर छोड र उण थोथै धोरां रै आकां अर फोगां वाल़ै गांम कांई लाटण जावोला?”

बगतावरजी कैयो “हुकम ! दासोड़ी तो दरियाव है! भलांई थोथा धोरा अर फोगड़ा है पण उठै म्हारो जितरो मन लागै उतरो दूजी जागा नीं लागै!! उठै रा वासी भलांई नादारगी में जीवै पण मरजादा पाल़ण में मन मोटो राखै।”-

हेमाजल़ ऊंनो हुवै, कल़जुग लोपै कार।
दासोड़ी ऊतर दियै, भमँग न झेलै भार।।

“इतरो कितरो क मन मोटो है? उणां रै कन्नै साधन कांई है? थोथी थल़ियां रा मोथा मिनख है! इतरो मोटो मन है तो आप संदेश साथै अठै ई कीं मंगायलो नीं! म्है ई देखां तो सरी कै आपरी उठै कितरी कदर है?”

कवि रो स्वाभिमान जाग उठियो। उणां कैयो ठीक है “आप एक रुको लिखाओ जिणमें लिखो कै बगतावर मोतीसर मेवाड़ में है अर उणनै अजेज पांचसौ रुपियां री दरकार है सो इण हाजरियै साथै खिनावण री खेचल करजो।”

मेवाड़ सूं रुको लेय एक आदमी ठेठ दासोड़ी आयो। जिण -जिण आदम्यां रा नाम बताया उणां नैं भेल़ा कर र बो रुको दियो गयो। पढियो, पूरी बात समझी पण अणूंत भाठै सूं काठी! मन चालै पण टट्टू नी चालै। गांम री पेठ अर कवि री बात राखणी जरूरी। छवै ई धड़ां रा छवू मौजिज आदमी भेल़ा होय करनीजी रै मढ रा खंचाची मोहता मानमलजी कन्नै गया अर कैयो “सेठां बात आ है!! बात पार कीकर घालणी आप जाणो!”

सेठां कैयो “आ आप चारणां री एकलां री बात थोड़ी है ! आ तो गांम रै शान री बात है। एकर तो मढ रै खजानै मांय सूं दे देवांला अर पछै गांम सूं भाछ करर मढ में पाछा जमा करां देवांला।”

प्रभात री बगत उण हाजरियै नै पांचसौ रुपिया बगतावरजी रै पेटै अर ग्यारह रुपिया उणरी हाजरियै री दैनगी पेटै दिया अर दो छाटी बाजरी री हाजरियै रै देखतां ऊठां माथै लदाय सींथल रवाना करी।

दिन लागां हाजरियै पाछै जाय रुपिया सिरदारां रै देखतां बगतावरजी नैं दिया साथै ई कैयो कै म्हनै दैनगी पेटै ग्यारह रुपिया अलग सूं दिया है। जेड़ी धोल़ी रेत बेड़ो ई धोल़ो हेत है, उठै रै वासियां रो कवि रै प्रति तो बाजरी वाल़ी बात ई बताई। मेवाड़ वासी थल़ियां री उदारता देख, सुण इचरज कियो। उण बगत बगतावरजी मेवाड़ में दासोड़ी वासियां री अनुपस्थिति में जिको दासोड़ी री कमनीय कीरत रो गीत पढियो बो आज ई अमर है अर थल़ वासियां रै मोद रो कारण है। किणी कवि सही ई कैयो है कै दाता कवि नै जकी चीज देवै कवि उणी बगत खाय पूरी करै पण कवि दाता नै जकी चीज देवै बा सदैव अमर रैवै-

दाता नै कवि को दिया, कवि गया सो खाय।
कवि नै दाता को दिया, जातां जुगां न जाय।।

बगतावरजी रै आखरां री एक बांनगी-

सबल़ी रित ग्रीखम सज्यां,
बज्यां अगन सम बाव!
नीर घटै जद नाडियां,
दे नी छै दरियाव।।
अदत कई नर आदरा,
रतनागर जल रीत।
खीर समद व्रिद खाटिया
जीयावत जस जीत!!
——
नर कई अदत घट्या जल़ नाडा,
बींट्या जंवर कल़ू रै बाव।
दिनप्रत छिल्यो दूध रो दीठो,
दासोड़ी मीठो दरियाव!!

कवि बगतावरजी री काव्य प्रतिभा पेटै वैणीदानजी रतनू सही ई कैयो है-

कव बगतो धूड़ो कवी,
बिचली झामल़झोल़!
करै मोतीसर कानियो,
कवता तणी किलोल़!!

~~गिरधर दान रतनू “दासोड़ी”

 

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