दीकरी – गज़ल

🌺दीकरी – गज़ल🌺

AutherGirdhardanRatnuगिरधरदान रतनू “दासोड़ी”
घर रो दारमदार दीकरी।
म्हारो सुक्रत कार दीकरी।।
बेटां भार समझ सिरकायो।
कांधां लीनो भार दीकरी।।
बेटा रहे बहुवां सूं विलम्या।
म्है सूं बंतल़ै तार दीकरी।।
सांझ सवेरे, दुख में हेरे।
पूछै सुख समचार दीकरी।।
आतां उमंग, उदासी जातां।
ऐ देवै उपहार दीकरी।।
चूण चूगै नैं धर्म पसारै।
सुख-दुख में इकसार दीकरी।।
कीनो देख सांवल़ियै देखो।
घर मेलै! उपकार दीकरी।।
बिनां भरम रै साची कहदूं।
सूनो! बिन संसार दीकरी।।
बाकी सैंग अलूणा मानूं।
सदन म्हारै सिंणगार दीकरी।।

AutherNarpatAsiaनरपत आसिया “वैतालिक”
तुलसी आंगणद्वार दीकरी!
पूजूं बारंबार दीकरी!
कुम कुम पगली मम आंगणियै,
लिछमी रो अवतार दीकरी!
हेत बादल़ी वरे बाप पर,
अनहद अनराधार दीकरी!
जीवन दीपक राग थल़ी रो
जिण पर मेघ मल्हार दीकरी!
भाव प्रणव लयमय कविता जिम,
सरल, सहज सुकुमार दीकरी!
कल़ी कोमल़ी पलै कोख तो,
क्यूं लागै है भार दीकरी!
सुगनचिडी ज्यूं बा उड जासी,
मती कोख में मार दीकरी!
बाल़ करै ने बल़ै बाप हित,
पति घरां घनसार दीकरी!
नाना, नानी, ब्हैन, जमाई,
रिश्तां रो आधार दीकरी!
भुआ!बणैनें लाड लडावै,
वहै भतीजां लार दीकरी!
मासी बण मोदक खवरावै,
करै घणी मनुहार दीकरी!
घरै बाप रै धी बण आवै,
बणै पति घर दार दीकरी!
काली, लिछमी, सुरसत, रूपी,
दुरगा रो अवतार दीकरी!
आंगण पल़ पल़ रहै चांदणौ,
पुनमियौ अंधार दीकरी!
रमैं आंगणै नवलख चौसठ,
जिणरे घर परिवार दीकरी!
“नरपत” रे घर बणै “ज्हानवी”
आई!हरख अपार दीकरी!

JagmalSinghJwalaAuthorजगमाल सिंह “ज्वाला”
आँगण में अवतार दीकरी।
म्हारो सब संसार दीकरी।
बळती लूवांअरु तपे तावड़ो
मरुधर में जलधार दीकरी।
बेटा कारण सब जग हरखे।
म्हारो तो गळहार दीकरी।
बिना लाडली दादा दादी।
सुनों सह परिवार दीकरी।
होळी दिवाली तीज राखड़ी
म्हारो हर त्यौहार दीकरी।
मरणे को तो कब मर जातो।
जीवण को आधार दीकरी।
धरम नेम कितरा भी धारो।
पण नियति उपहार दीकरी।
लिछमी आ जे घर में जन्मे।
कर दे ओ बेड़ा पार दीकरी।

Loading

Leave a Reply

Your email address will not be published.