देशाणराय रो गीत – चौथ बीठू

वेदां मह ढील रती नह वरनी।
धाबलयाल़ रही दिसी धरनी।
वीदग बेल थई वीसरनी।
किण दिस गई हमरकै करनी।।
आप तणी म्हारै अवलम्बा।
आवे मनमें घणा अचम्बा।
ईहग कूक सुणी नह अम्बा।
बोल़ी हुय बैठी जगतम्बा।।
चंडी लाग रही किम चाल़ै।
भांणव सुद लैवा नह भाल़ै।
रैणव नेस नथी रखवाल़ै।
बैठ रही पाताल़ बिचाल़ै।।
पाल़ण कवियां बेग पधारो।
महमाया हेलो सुण म्हारो।
थांनकराय भरोसो थारो।
बांह गह्यां की लाज बिचारो।।
चारण वरण भणै सुभ चाहो।
नृपति कनां सू धर्म निबाहो।
क्यूं करनी सूना छिटकावो।
ऊपर देशनोक सूं आवो।।
ईहग मांझ थई अबखाई।
रैणव ढील कियां सुरराई।
मत सूना मेलो जी माई।
बानो वीरद लाजसी बाई।।
~~चौथ बीठू
कहते हे चौथ बीठू की पुकार सुन कर मातेश्वरी करनी ने तुरंत टूटे हुऐ अपंग ऊंट को ठीक कर दिया
प्रेषित – मोहनसिंह रतनू, चौपासणी