🌺श्रीदेवल माता सिंढायच🌺


देवल माता का जन्म पिंगलसी भाई ने सवंत १४४४ माघ सुद्धी चौदस के दिन बताया है। लेकिन वि सं 1418 में घडसीसर तालाब की नींव इन्होने दी थी जिसका शिलालेख वहां मौजूद है। ऐसा उल्लेख जैसलमेर की ख्यात व तवारीख में आता है। अत इस प्रकार इनका जन्म 14 वी शताब्दी में माघ सुदी चवदस के दिन होना सही लगता है। देवल माता हिंगलाज माताजी की सर्वकला युक्त अवतार थी। देवल माता ने भक्त भलियाजी और भूपतजी दोनों पर करुणा कर के एक के घर पुत्री और दुसरे के घर पुत्र वधु बनकर दोनों वंश उज्जवल किए। इनका जन्म माडवा ग्राम में भलियेजी सिंढायच के यहाँ हुआ था। इनकी माता का नाम वीरू आढी था जो करणी माता की मां देवल आढी की सगी बहिन थी। इनका ससुराल खारोडा ग्राम और पति बापन जी देथा थे। मैया ने भक्तो के हितार्थ गृहस्थी धर्म पालन किया। देविदास, मेपा, खींडा आदि देथा शाखा के चारण मैया के पुत्र थे। बूट, बेचरा, बलाल, खेतु, बजरी, मानसरी एवं पातू ये पुत्रिया थी।

एक बार जैसलमेर राजा गड़सी को भयंकर रोग हो गया था, इनकी पीड़ा मिटाने के लिए मैया खारोडो से माड़ प्रदेश होकर पधारी थी। उस समय माड़ प्रदेश मे पानी की विकट समस्या थी। मैया ने अपने तपोबल से सुमलियाई आदि ग्राम मे दस फ़ुट जमीन खोदने पर अथाह स्वच्छ जल होने का वरदान दिया था। ऐसे अनेक चमत्कार बताते हुए मैया ने गड़सी राजा को असाध्य रोग से छुटकारा दिलाया। इस पर राजा ने प्रसन्न होकर अनेक ग्राम ३६ लोक बगसीस करने का मातेश्वरी से निवेदन किया। तब मातेश्वरी ने सिर्फ़ ३६ लोक भक्त ही स्वीकार किए और राजा को प्रजा हित मे गड़ीसर नामक तालाब बनाकर उसमे हिंगलाज मैया का मन्दिर बनाने का आदेश दिया। अभी वर्तमान मे गड़ीसर तालाब के अन्दर जो हिंगलाज मन्दिर बना हुआ है वो देवलजी का ही बनाया हुआ है। देवल मैया ख़ुद हिंगलाज की साक्षात् अवतार थी।

देवल माता का देवलोक गमन पिंगलसी भाई के अनुसार सवंत १५८५ आषाढ़ सुद्धी चौदस बताया गया है। जिस तरह करणीजी राठौडों में एवं आवडजी भाटियों में पूजी जाती है, उसी तरह देवल माता सोढा राजपूतों में विशेष श्रद्धा से पूजी जाती है।

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जय मां देवल
जय खारोडाराय

 

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