धवल उजवल मरुधरा – कवि श्री मोहन सिंह रतनू

जिण भोम उपजे भीम सा भट, थपट भूमंड थरथडै।
धड शीश पडियो लडे कमधज, झुण्ड रिपुदल कर झडे।।
जुध काज मंगल गिणत जोधा, वीरवर विसवासरा।
प्रचंड भारत दैश प्रबल, धवल उजवल मरुधरा।।
धर धाक राखण केक धरपत, होमवा तन हालिया।
परजाल पावन पिण्ड पदमण, लाख जम्मर जालिया।।
पण सोंपियो नह जीवतो सिर, हाथ मो हमलावरा।
प्रचंड भारत देश प्रबल, धवल उजवल मरूधरा।।
मीठा मतीरा जेम मीसरी, बोर काचर बावडे।
तर ग्वार फलियो देखने तिल, सुखी दिल हरसावडे।।
खड धान ढिगला खेत मे व्हे, मोठ बाजर मूंगरा।
प्रचंड भारत देश प्रबल, धवल उजवल मरूधरा।।
धडकत अवरंग कांपतो, दुरगेस जिसडो देखने।
मरजाद राखण भोम री, हस झेलिया दुख केकने।।
कड कडड करतो कडकियो, अरिसेन भुजबल ऊपरां।
प्रचंड भारत देस प्रबल, धवल उजवल मरुधरा।।
संताप मेटण देस हित, अवतार करणी आविया।
जंभेस पाबू देवता जग, प्रकट परचा पाविया।।
झण झणण करता झणकिया, मीरां मेवाडी घूंघरा।
प्रचंड भारत देश प्रबल, धवल उजवल मरुधरा।।
गणगोर पूजत गोरियां, मधु गीत गावत आपरा।
मिल झुण्ड मगरां निरत मांडे, मोरिया अणमापरा।।
झर शीखर झरणो बहे झर झर, सलिल भरिया सरवरां।
प्रचंड भारत देस प्रबल, धवल उजवल मरुधरांं।।
~~कवि श्री मोहन सिंह रतनू