धुर पैंड़ न हालै माथौ धूंणे (गीत घोड़ा रैं ओळभा रौ) – ओपा जी आढ़ा

देवगढ़ के कुंवर राघवदेव चूंडावत ने ओपा आढ़ा को एक घोड़ा उपहार में दिया। जब वह इसको लेकर रवाना हुआ तो घोड़े ने अपने सही रंग बता दिये। प्रस्तुत गीत में घोड़े के सभी अवगुण बताते हुए राघवदेव को कड़ा उपालम्भ दिया हैं।
धुर पैंड़ न हालै माथौ धूंणे,
हाकूं कैण दिसा हे राव।
दीधौ सौ दीठो राघवदा,
पाछो लै तो लाखपसाव।।१
यह घोड़ा ऐसा अड़ियल हैं कि एक कदम भी आगे नहीं चलता और सर धुन कर वहीं ठिठक जाता हैं। हें राव, बताओ अब मैं इसे हाँक कर किस और ले जाऊं? हें राघवदेव, तुमने मुझे घोड़ा दिया, उसे अच्छी तरह परख लिया। यदि इसे वापिस ले लें तो समझूंगा मुझे लाख-पसाव उपहार दिया हैं।
चौड़ी पूठ सांकडी छाती,
करड़ उघाड़ी लांबा कान।
लाखां ई बातां पाछो लीजै,
कंवर न दीजै दांन कुदांन।।२
इस अश्व में सभी कुलक्षण भरे पड़े हैं। इसका पृष्ठ भाग चौड़ा, छाती संकड़ी, कमर उघाड़ी और कान लम्बे हैं। अतः जैसे भी हो, कोई उपहार करके इसे वापिस अपने पास मंगवा लें। हें कुँवर कम से कम भविष्य में तो अब बिना मन के ऐसा कुत्सित दान और किसी को मत देना।।
ओ अस दीन्हां थारौ अपजस,
पायां म्हारौ किसौ पण।
माफ करौ हैंवर जो म्हांनै,
गेंवर दीधा तणां गुण।।३
निःसन्देह, ऐसे निक्कमे अश्व को देने से तुम्हारा अपयश हुआ हैं। मैंने भी कोई प्रण नहीं ले रखा था कि घोड़ा लेकर ही जाऊंगा। अब क्षमा करो और अपना अश्व वापिस मंगवा लो तो हाथी देने जितना उपहार मानूंगा।।
डाकण भखै न बाघ अडोळै,
दीधा वटै न कौड़ी दाम।
चंचल परौ लीजियै चूंडा,
गज दीधौ काय दीधौ गांम।।४
यह ऐसा नाकारा जानवर हैं कि इसे कोई डायन भी खाने को तैयार नहीं हैं और न चीता ही मारता हैं। इसे मोल बेचने पर तो एक कानी कौड़ी भी मिलने वाली नहीं हैं। अतः हे चुंडावत, तुम इस अश्व को अपने यहां ले जाओ तो समझूंगा मुझे हाथी ही नही, कोई गांव उपहार में दिया है।।
पाप घातियो”ओपा”पूठै,
किसौ ताहरौ खून कियौ।
ओ थारौ धजराज अंवेरै,
दत जाणु गजराज दियौ।।५
ओपा आढ़ा कहता हैं-मैंने कौन सा गुनाह किया था कि उसके दंड स्वरूप ऐसा बेकार अश्व गले बांध दिया। यदि इस अश्वराज को अपने पास वापिस मंगवा लो तो मानूंगा कि तुमने मुझे कोई बड़ा गजराज बख्शीश में दिया हैं।।
~~©ओपा जी आढा