दिन धोऴै अंधियारो कीकर

दिन धोऴै अंधियारो कीकर।
अणसैंधो उणियारो कीकर।।
सिकुड़ गया सह मकड़ीजाऴां।
बदऴ गयो ओ ढारो कीकर।।
बातां तो घातां में बदऴी।
रातां बंद हँकारो कीकर।।
तालर तालर कण कण जोयो
पालर पाणी खारो कीकर।।
धुर दे कांधै खेती जुतिया।
बऴदां बैकर चारो कीकर।।
काम बणावण बीजा पचिया।
नाम कमावण कारो कीकर।।
दीसण में तो बाईदास सा।
मूंढै में दूधारो कीकर।।
आतां जातां पड़ी पलारो।
जीवत माखी जारो कीकर।।
माऴा साथै जाऴा गूंथो।
सुधरै अबै जमारो कीकर।।
~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”