डिंगल फेशन – कवि भंवरदान गढवी “मधुकर”

इण पढ्यो लिख्यो री पंगत में, जुनोड़ा आखर कुण जांणे।
नखरा कर नये जमांने रा, तिरछी हद रागां लो तांणे।।
जा जोर तमासा कर जितरा, जोवे जनता मन जोकरिया।
वाजे आधुनिक वायरियो, डिंगल फेशन कर डोकरिया।।१

ऊचे शब्दां रा अरथ करे, वो कूंत करणिया रैया कठे।
जुनी भाषा ने जांणणिया, अब देख किता सच कया अठे।।
तड़का बाजे लै ताड़ी रा, हाका कर लड़का होकरिया।
वाजे आधुनिक वायरियो, डिंगल फेशन कर डोकरिया।।२

जंगी कविता ने कुण जांणे, घुस अड़बंगी रचना घोळे।
मन मंगी के रागी मिलकर, ठस ठंगी हास्य ठिंठा ठोळे।।
तुक बंदी तोतक कर तकड़ा, छाया मंचां पर छोकरिया।
वाजे आधुनिक वायरियौ, डिंगल फेशन कर डोकरिया।।३

दुनियां दिवानी फेंशन री, फेंशन में मनड़ो फूले हे।
रागां रा रसिया रंग भीना, झाके मंचां पर झूलै हे।।
खुशियां कर श्रोता खूंजे सूं, कर नोट ऊछाळै रोकड़िया।
वाजे आधुनिक वायरियो, डिंगल फेशन कर डोकरिया।।४

गुजराती रागां कर गेहरी, छंदां री साथे छोळां दे।
भजनां सूं रिझा मन भोळा, हाथां रा साथ हबोळा दे।।
सज आज गबोळां री शैली, कर हरष झबोळा मधुकरिया।
वाजे आधुनिक वायरियो, डिंगल फेशन कर डोकरिया।।५

~~कवि भंवरदान गढवी “मधुकर”

Loading

One comment

  • सुमेर दान देथा

    बहुत ही सराहनीय रचना है। डिंगल फेंशन।

Leave a Reply

Your email address will not be published.