डिंगल़ गीतां मांय चारण कवेसरां रो सूरापण

आदरणीय अर स्नेही सैणां! सादर जथाजोग। म्हारी निबंध पोथी ‘मरूधर री मठोठ‘ मांय सूं एक निबंध क्रमशः आपसूं साझा करण रो लोभ संवरण नीं कर पा रैयो हूं – निबंध है ‘डिंगल़ गीतां में चारण कवेसरां रो सूरापण‘ आपसूं अरज है कै कोई सुझाव होवै तो अवस दिरावजो बाकी किणी प्रकार री छेड़खानी कै फोरबदल़ मत करजो। जथा लेखक रो नाम हटाणो कै माडै ई काट-छांट करणी-

चारण कवेसरां री ओल़खाण वाणी रै पाण ई नीं ही, उणां अवसाण आयां घमसाण में केवाण उठाय सैलां रा घमोड़ा खावण खातर आपरा केकाण आगूंच खड़िया अर अरियाण सूं अड़िया। आणंद में रजवट रो वट आखरां सूं सींचता अर संकट री वेल़ा करां खाग धार रण-रांमत मांडता। भाद्रजण ठाकुर बख्तावरसिंहजी रै आखरां में-

दुख में धीरज देवणौ, सुख में छाती सेक।
म्हांरै लाल़स मांनडौ, आंधां लकड़ी हेक।।

जगत में सुजस कोरी बातां सूं नीं खाटीजै। “मरणै नूं मंगल़ गिणै ” उणां माथै मोद करणिया ई मरण री महत्ता जाणै अर महत्ता रै कारण ई मरणियां नैं बखाणै।

कलम अर करवाल़ दोनां री महत्ता सिद्ध करणिया ऐ कवेसर रणांगण में माण अर आण खातर प्राण देवण सारू आखता पड़णिये भड़ां नैं बोकारता ई नीं अर नीं खाली उपदेशक बण र रैवता, बे तो खुद आपरै सिंद्धान्तां सारू जीवण निछावर करता, डरता नीं। “लाखरां ठाकरां तणा माथा लुल़ै, आखरां तणै गजबोह आगे ” री बात सुणियां इणां री कलम री ताकत चौड़ै दीसै तो खाग रो बल़ उण सूरां खुद सरायो जिणांरै साथै ऐ जूझिया। ओ ई कारण हो कै जिणांनैं जगत पूजतो उण महाभड़ां इणां नैं पूजिया। महाराजा मानसिंहजी (जोधपुर) चारणां री वीरता री वंदना करतां जद ई तो कैयो है-

लख पावण देयण सवालख लाखां,
रूपग कहण संभायां रूक।
चारण मरण परायां चैरां,
चारण मरण न पाड़ै चूक।।

चारणां रो चरित्र चारू रैयो है। वीरता रा चारण पूजारी रैया है। वीरता अर स्वामीभक्ति नै जन साधारण री चेतना रो अंश बणावण वाल़ा चारण ही हा। ‘वीर भोग्य वसुंधरा ‘ रा प्रबल़ हिमामती अर ‘रसा कंवारी रावतां वरै तिकोई वींद ‘ रा उद्घोषक रैया है। जका काम पड़ियां सगल़ां सूं आगे माथो देवै बे ही आ कैवण री हूंस राखै ‘सापुरसां रा जीवणा, थोड़ा ई भल्लांह। ‘ जका आ केवै बे ही जीवट रै साथै जीवै अर जीवट नैं धार मरै। रामनाथजी कविया रा ऐ आखर चारणां री ओल़खाण करावै-

मरस्यां तो मोटै मतै,
सो जग कहै सपूत।
जीस्यां तो देस्यां जरू,
जैता रै सिर जूत।।

ओ चारण रो मूल़ मंत्र रैयो है, जद ही तो चारण नीची नाख र कदै ई नीं जीया। स्वाभिमान कदीम सूं कायम राखियो।
जब लग सांस सरीर में, तब लग ऊंची ताण। ‘ जका ऊंची ताणै, उणांनैं जगत जाणै। वीर होसी बो ई वीरता री कूंत करसी। नीतर ईलोजी वाल़ा घोड़ा है। इतिहास साखी है कै चारण वीर छत्रियां रै साथै रणांगण में जावता अर मरता नै मारता। जिण वीरां री वीरता नै कुटंब-कबीलै रा घण व्हाला विसराय देवता उणां री वीरता नै चारण कवेसर अमर वाणी देता-

मात पिता सुत महल़ी, बांधव वीसारैह।
वीरां धीरां बातड़ी, चारण चीतारैह।।

इणी कारण तो राजस्थानी कवियां चारणां नै अर चित्तौड़ रै अनमी हिंदवां सूरज महाराणावां रै बरोबर मींडिया है-

चारण चीत्तौड़ाह, है दुय सूरज हिंदवां।
साहां सुख सौड़ांह, दोयां नह सूवण दिया।।

राजस्थानी री रणबंकी रसा माथै मंडियो कोई पण जुद्ध ऐड़ो नीं जिणमें चारण, छत्रिय सपूतां रै मरण अर मारण नीं टुरिया होवै। देश समाज, स्वामी, स्वाभिमान, स्वतंत्रता अर सुरभियां री रक्षार्थ चारण सपूतां आपरा माथा कटाया। जिणरो साखी इतियास है। ख्यातां अर बातां में इण सपूतां री अखियातां भरी पड़ी है।

चारण कवेसरां री कमनीय कीरत आज लग कायम इण सारू है कै उणां साच अर वाच री रुखाल़ी सारु प्राण देवतां संको नीं करियो। बाजतै डंकै सत्यनिष्ठा रै साथै जीया। अन्याय नीं सैयो। न्याय री रुखाल़ी सारू पग आगे ई दिया लारै नीं मानसिंहजी (जोधपुर) नै महाराजा भीमसिंह जाल़ौर रै जंगी गढ मांय घेर लिया। उण बगत विचलित होय मानसिंहजी जाल़ौर छोडण रो मतो कर र आपरै साथ नै त्यार होवण रो आदेश दियो, जणै उठै ई साहिबदानजी सुरताणिया मानसिंहजी नै कैयो कै इयां जाल़ौर नीं छोडां! जाल़ौर तो कोई आपांरी लोथां ऊपरकर ई लेवैलो!! साहिबदानजी रै सबदां में-

आभ फटै धर ऊलटै, कटै बगतरां कोर।
तूटै सिर धड़ तड़फड़ै, जद छूटै जाल़ौर।।

साहिबदानजी री इण ओजस्वी वाणी नै सांभल़ र जिण अणी-पाणी वाल़ै छत्रिय भड़ां मानसिंहजी रो छेहली सांस तक साथ देवण रो पण लियो बै ई ज गोल़ां रा हबीड़ सुण बाठां पग देय र पड़ छूटा। उण अबखाई में सत्रह चारण कवेसरां मरणो अर जीवणो तेवड़ मानसिंहजी रो साथ दियो। उण अबीह वीरां रै प्रति उण गुणी कृतज्ञ नरेश रा कृतज्ञता रा ऐ आखर इण बात रा साखीधर है-

ठौड़-ठौड़ त्रबंक ठहठहिया,
भड़ बहिया पग रोप भव।
व्हाली लाज तजै के बहिया,
सतरै जद रहिया सकव।।

ओ ई नीं जसधारी मानसिंह, उण सत्रह कवेसरां रा नाम गिणाय उण वीरां नै पूगतो सनमान दियो-

हाजर जुगतो हुतो, पीथलो हरि पुणीजै।
भैर बनो भोपाल़, सिरै फिर ऊम सुणीजै।
दानो महा दुबाह, इंद नै कुशल़ो आखां।
मेघ अनै म्याराम, सिरै सौ बीसां साखां।
पनो नै नगो नवलो प्रगट, केहर साहिब वडम कव।
महाराज अगर घेरा महि, सतरै जद रहिया सकव।।

ओ ई कारण हो कै महाराजा मानसिंहजी चारणां री इणी चारित्रिक दृढता रै गुणां सूं अभिभूत होय र ई तो ओ कैयो-

अकल विद्या चित ऊजल़ो, इधको घर आचार।
बधता रजपूतां बिचै, चारण बातां चार।।

राजस्थानी डिंगल़ गीतां मांय चारण कवेसरां री वीरता रो वरणाव सोनलिये आखरां में होयो है। चारण कवियां ई नीं बल्कि दुजै कवियां ई चारण सुकवियां री संग्राम में दरसाई वीरता नै मुक्त कंठ सूं सराई। जद अलाऊदीन खिलजी जाल़ौर माथै चढ आयो। उण बगत कान्हड़देव अर उणरै महापराक्रमी सपूत वीरमदेव सोनगरै अदम्य साहस रै साथै मुकाबलो कियो। उण बगत सहजपाल़ गाडण जाल़ौर रै सोनगरै सूरां रै साथै हरावल मांय रैय चारण चरित्र री चंद्रिका नै चतुर्दिक चमकाय आपरै दो भायां सोहड़ अर नरपाल़, दो भतीजां मान अर कान, अर आपरै बीजै सेवकां सहित वीरगति वरी-

गाडणां राव जालौर गढ,
कल़हण जल़हल़तै कंकल़।
नेव जिण सरसर हियो नवह,
सहजपाल़ कान्हड़ सबल़।।

महावीर मेहाजल़ दधवाड़िया सूरमै सीहड़देव सांखला रै साथै रूण मांय तो मांडण दधवाडिया खानवा री लडाई में राणा सांगा रै कानी सूं लड़तां थकां वीरगति रो वरण कियो। मेहाजल़ रो ई वंशज चूंडा दधवाड़िया, बल़ूंदा ठाकुर चांदा मेड़तिया रै साथै नागौर मांय हसन अली सूं जुद्ध करतां थकां सुरगपथ रो राही बणियो।

जोधपुर राव गांगाजी रै मूंछ रो बाल़ अर प्रमुख सेनानायकां में चावो नाम हो अमराजी खिड़िया रो। कांवल़िया रै धरमाजी खिड़ियो रो ओ सपूत महावीर अर खाग रो धणी होयो। जिणनै राव गांगाजी चौबीस गांमां सूं मतोड़ो जागीर में दियो। किणी समकालीन कवि लिखियो है कै अमरो तो बो चारण है जिण साहित्यिक मार्ग नै छोड दियो अर देसोतां रै साथै आपाण बताय वीरता सूं खाटी खाय रैयो है–

चारणवट छोडी ओ चारण,
देसोतां संग दोड़ै!
माल्है गांगो राव मंडोवर,
माल्है अमर मतोड़ै।।

जोधपुर रै राव गांगाजी रा विश्वासपात्र सभासद सांदू गोयंद चांगावत महासुभट होयो। जिणरी वीरता जग चावी। राव गांगा रै कानी सूं लड़तां थकां गोयंदकरण, रणखेत में अदम्य साहस बतायर परमजोत मांय विलीन होयो। कवि लिखै कै जिणरै मुंड रा कुटका माल़ा में पिरोवण सारू महादेव नै चुगणा पड़िया!! रण में कण-कण होवणियै उण वीर री वीरता रै वरणाव री समकालीन कवि रचित ऐ अजरी ओल़्या पढणजोग है-

गंगराव सुछल़ गजदल़ कव गोवंद,
धारा चढ कीधो धजोधज।
चांगावत तणा कमल़ चा चुण-चुण,
कुटका ले हर हार कज।।

इणी गरबीलै गोयंदकरण रो बेटो उदयकरण सांदू (खुंडाल़ा) आपरी बगत रो नामी वीर पुरुष होयो। वि.सं.1600 में गिररी-सुमेल री लड़ाई में अनमी नर-नाहरां जैता-कूंपा राठौड़ रै साथै कुल़वट री आण लिया रजवट बताय हरावल़ पांत मांय वीरगति रो वरण कर र मरण नै अमर कियो। महाकवि कुंभकरणजी सांदू आपरै ग्रंथ ‘रतनरासो’ में इण बात री हामी भरता लिखै-

मुरधर छल़ि महाराव छल़ि, गौ विपर छल़ि लाज।
उदयकरण जुग-जुग अमर, म्रित अवसर परकाज।।

कविया अलूनाथजी रै सपूत अर भैराणै रै धणी नरू कविया री वीरता वंदनीय। नरू कविया महाआंकधारी होयो तो ऐड़ो ई आखरां रो कहणहार कवि। जिणनै आमेर राजा मानसिंह करोड़ पसाव देय र सम्मानित कियो। दक्षिण रै जुद्ध मांय पठाण सेना नै हाण पुगाय वीरगति पाई। इण नखतधारी नरू कविया री वीरता री बांनगी डिंगल़ गीतां मांय अंकित है। एक डिंगल़ गीत री ऐ कड़ियां पेस है, जिकी लाखिणी लड़ियां ज्यूं लागे। भलकंतै भालै री अणी सूं अरियां री छाती छेकणिये इण नेजाधारी सुभट रै सुजस री सोरम एक कवि पसरावतो यूं लिखै-

वल़ां वल़ी अपछर वरमाल़ै।
विगतै लाख वेजमां वाल़ै।
कल़ै पोखीजै किरमाल़ै।
नरपाल़ो नहियो नेजाल़ै।।

इण मरटधारी री वरेण्य वीरत रो वरणाव संवेदनशील महाकवि पृथ्वीराजजी राठौड़ ई एक गीत मांय कियो है। कतलू री करड़ाण मेटणियै इण मरद आपरी करद री टेक राखर र सुरग री वाट ली-

कतलू सरस बढंतां कदंक,
टल्यो नहीं सूरातन टेक।
साहे खाग नरू पहुंतो श्रग,
ओजस बोल न सहियो एक।।

भोज रतनू रो मोभी जैत रतनू जैतधारी होयो। जिणरो सुजस सोनै रै आखरां मांय मढियोड़ो है। धणलै रै धणी नै सुजस दिराय, गायां री वाहर, वैरियां नैं विचलित कर सुरगगामी बणियो। उण सपूत री सपूताई अर सूरमापणै नैं विरदावतां कविवर्य दुरसाजी आढा लिखियो है-

जुड़िया प्रब पांच सरीखा जैता,
वड चारणै परदल़ वहण।
वेस मारण अनसाथी विचलण,
गांम सांम छल़ गौ ग्रहण।।
रुड़िवै सलणै म्रत रतनू,
खाग खिंचै प्रगटिया खल़ां।
धणला सुछल़ धणी छल़ धज,
वेलियो पण छाडियौ वल़ां।।

जद पातसाह अकबर आपरी आंधी रै अड़ूड़ बल़ रै पाण मेदपाट नै मिटियामेट करण चढियो अर हल़्दीघाटी मांय महाराणा प्रताप सूं मुकाबलो होयो। उण बगत हिंदवा सूरज री साख मांय मेवाड़ री मठोठ नै अंतस मांय धारियां जसोजी अर केसोजी सौदा सुरग री वाट बुवा। गिरधर दान रतनू रै आखरां मांय-

पातल रै ऊपर पातसा अकबर,
दूठ जदै गज ठेल दिया।
सधरै पिंडपाण साहस सूं सूरै
लेस बीह बिन झेल लिया।
सौदा तिण दीह वंस रा सूरज
केसव जसियो मरण करै
सौदा परिवार सिरोमण सारै
कुळ चारण लुळ नमन करै।।1

मोटै राजा उदयसिंह (जोधपुर) रै अन्याय रो विरोध करण सारू वि.सं. 1643 मांय आऊवै री आंटीली धरती रै सिव मंदिर आगे चारणां धरणो दियो। जिणनै इतियास में ‘लाखा जमर ‘ रै नाम सूं जाणियो जावै। अक्खाजी भाणावत आपरा इकतीस गांम जात हित मांय त्याग धरणा रा मांझी बणिया। खीमाजी आसिया लिखै-

रोहड़ अखवी राण, साथ खट व्रन सिघाल़ा।
बैठा धरण बोत, राव ऊपर रेढाल़ा।
आढो दुरसो अभंग, वल़ै कव घणा वडाल़ा।
रूठा सिव री रीठ, तीठ धारै तागाल़ा।
सिर मंजर धार तुलछी तणा, उदक गंग मुख आचमन।
मुख राम धार मंडै मरण, मोटा पात सधीर मन।।

इण धरणै मांय चारणां रै साथै दूजी जातरै सतपुरुषां ई आपरा प्राण होमिया पण रामाजी सांदू जातीय हितैष्णा सूं बधर धर्म अर धरा रै सारू प्राण देवणो श्रेयष्कर समझियो। ओ मोटमन महाराणा प्रताप री आण कामय राखण खातर चढ बुवो। देशभक्ति रै आगे जात रो हित रजी सम समझियो। देबारी-दिवेर री घाटी मांय रणभेरी बजाय र ओ सूरमो राणा री आण अनूठी है री आखड़ी पाल़ी। मेवाड़ री माटी नै निकलंक राखण कारण ओ चारण मांटीपणै सूं शहीद होयो-

रामो रण राचैह, अकबर तेज उफाणतां।
सूरो रण साचैह, सांदू सुरग सिधावियो।।

वीरता री आघ अर इण त्याग रो मोल जाणणिया महाकवि पृथ्वीराजजी राठौड़ लिखै-

तैं लिय आहव राण त्रिजड़ हथ,
ले लांघण सांसण न लिया।
सोहै ससत्र सालिया सात्रव,
कंठ सोहै न खाल़िया किया।।

जद निबोल़ रै बांमणां नै साहजादै खुर्रम रै अमीन अबू मेहमद पकड़ र कैद कर लिया उण बगत धरम री धजा धारणियो चूंडा दधवाड़िया रो सपूत अर रामरासो रो रचणहार कवि माधवदास दधवाड़िया उण परवश बांमणां नै छोडावण सारू मूंछां अर खाग माथै हाथ दियो। इण भावां रो एक गीत उपलब्ध है जिणमें चूंडै रै इण चानणै नै अतुलीबल़ हड़मान रै समजोड़ मानियो है-

विप्र बंध छुडावण सीत वाहरू,
सोलह नव सितरै सामंत।
स्याम काम सारण रण साम्रथ,
हुवौ सही माधव हड़मंत।।

इण महाभड़ कवेसर री कमनीय कीरत नै अखी करतां पृथ्वीराजजी राठौड़ ई एक गीत लिखियो। जिण मांय माधवदास अर रामदास चांदावत री अंजसजोग वीरता रा दरसाव है। पृथ्वीराजजी लिखै कै जे उण विपन्न बांमणां नै माधवदास अर रामदास राठौड़ नीं छोडावता तो महाराजा गजसिंहजी री वीरता रै दाग लागतो। इण बातरी री हांमल़ भरतो ओ गीत ठावको है। दोनूं महाभड़ां रणांगण मांय सैज पोढण सूं पैला बांमणां नैं विधर्मियां सूं छोडाया। स्वामीधरम निभावतां ऐ सूर आपरी कुल़वट उजागर कर परलोक वासो कियो-

वडो एक चारण नै इक रजपूत वडो,
बिहूं जो जलम लग होत बाधो।
महा गजसिंघ छल़ सूर रामो मरै,
मरै राम सुछल़ सूर माधो।
पाड़ खल़ खेत जल़ चाढ कुल़ आपरै,
राय बंध कर दिन समर रसिया।
कंवारी घड़ां वर चंद नामो करै,
वीरहर मयंकहर सुरग वसिया।।

पृथ्वीराज (आमेर) रै पूत सांगै धोखै सूं नरूकै कर्मचंद दासावत नै मार दियो। कर्मचंद रा भाई अर रिस्तेदार सांगै रो बाल़ ई बांको नीं कर सकिया। कर्मचंद रै कान्हो आढो मनमीत अर मानेतड़। उण आ बात सुणी तो उणरै झाल़ां उपड़गी। छेवट ऐ झाल़ां सांगै नैं बाल़ र रैयी। कान्है बोकार र सांगै नै कर्मचंद रै वैर मांय मार नांखियो। कान्है रै इण टणकेल काम रो ओसाप नरूकां मानियो। नरूका कान्है रै वंशजां नै आज ई मोटे भाई रो सनमान देवै। वीर कान्हा नै आज ई रैयाण मांय रंग लागे-

मार्यो कान्हो महपती, वैर करमचंद बोड़।
अमलां रा रंग आपनै, आढा कान्हा कोड़।।
वैर करमचंद वाल़ियो, सांगो भचड़ सँघार।
अमल लियंतां आपनै, रंग कान्हा रिझवार।।

कान्हो महावीर कवेसर। जिणरा आखर ई सतोला तो हाथ ई सजोरा। कान्हा री कीरत मांय दो-तीन गीत उपलब्ध है। एक कवि लिखै कै जिण भांत गीत कान्है कैयो उण भांत रो गीत दूजै कवियां सूं नीं कैईज्यो-

चहुंवै जुग हुवा वडाल़ा चारण,
आखर सारां कलौ अनेक।
कानां गीत सांगा दिस कहियो,
इम कय किणियन हुई एक।।

सूरजमाल रोहड़ियो आपरी बगत रो वीर अर साहसी मिनख होयो। जद मुगल सेना गुजरात रै धागधड़ा माथै आक्रमण कियो उण बगत इण वीर केशरिया कर मुगलां रो मुकाबलो कियो। सामधरम पाल़ियो अर सूरता रै साथै समरागण मांय वीरगति पाई। इण अजरेल री वीरता अर धीरता कवियां आपरी विमल़ वाणी सूं बाखाणी-

गल़माल़ा थये चमाल़ा गढवी,
वाचा वल़वाल़ा विमल़।
रज-रज करैह रैवै रोसाल़ा,
काल़ा मूंछाल़ा कमल़।।
सोरठ नरेश तणा सिर संकर,
जड़ियो तन आपरै जुवौ।
खेमाहरा तणो मुख खागै,
हर ऊभां रज-रजी हुवो।।

इणी भांत जीवण किनिया रो जीवटधारी सपूत माहव किनिया महादाटक अखाड़ासिद्ध अर प्रवाड़ा जैत होयो। जिण आपरै स्वामी री रक्षार्थ गुजरात रै रणांगण मांय वीरगति पाई। कलम अर करवाल़ रो धणी माहव किनिया स्वामी रै शौर्य री गाथा सरावण अर सुणावण उणरै घरै नीं जाय र उणरै आगे हरावल़ मांय हाल र काल़ सूं बाथै आयो। उण महासूर रै सूरमापणै नै सरावतां किणी कवेसर रा ऐ आखर आज ई अमिट है-

साम रै काज गुजरात जीवण सुतन,
विढण घड़ कंवारी तणो वणियो।
रंभ वर हरि रै साथ बैठो रथां,
कथा न कहण ग्यो घरै किनियो।।

सिरोही रै राव सुरताण देवड़ा अर रायसिंह चन्द्रसेनोत (जोधपुर के महाराव चन्द्रसेन का तीसरा पुत्र) रै बिचाल़ै दताणी मांय रण होयो। जद रायसिंहजी रै गजारोही सूरां आपरो आपाण बतायो तो चहुंवाणां रा खांचा ढीला पड़ग्या अर बै ओला तकण लागा। ऐड़ी अबखी बगत मांय राव सुरताण रा विश्वासपात्र सेनानायक दूदाजी आसिया मोर्चो संभाल़ियो। महाधनखधारी दूदै रै तीखै तीरां सूं रायसिंहजी रै सेनिकां कानो लियो-

गहरी देखै गज घटा, सब भागा चहुंवाण।
उण पुल़ दूदै आसियै, कर ग्रहिया कब्बाण।।
आछो लड़ियो आसियो, दूदो खेत दंताण।
घोड़ै चढ गज भांजिया, दीध फतै सुरताण।।

इणी लड़ाई मांय रायसिंह चंद्रसेनोत रै साथै दुरसाजी आढा अर ईशरदास बारठ ई भेल़ा हा। ईशरदास बारठ(देवरिया) जिण टणकाई सूं खागां खणकाई बै आज ई अमर है। घमसाण मांय घणा रो घाण कर ओ वीर अपछरां रै विमाण चढियो। कविश्रेष्ठ देवराजजी रतनू(नूंदड़ा) आपरै गीत अर दूहां मांय लिखियो है कै ईशरदास जिण भांत वडो बोलियो तो उणीगत उण वचनां री रुखाल़ी करी। ईशरदास री ओट लेय इण रण मांय घणा कायर कुशल़ पूगिया। नायक तो नीसरिया अर ईशरदास धारातीर्थ कियो-

ईशर सटै अनेक, कायर नर पहुतां कुशल़।
बारठ आडा बोलणो, आडो रहियो एक।।
अइयो ईशरियाह, बारठ आडा बोलणा,
नायक नीसरियाह, तूं बढियो तरवारियां।।

देवरिया रा ई बारठ सामदानजी महाराजा मानसिंहजी नै एक अरजी रो गीत लिख र आपरै बडेरां ईशरदास, जसराज, गिरधरजी, खेतसी अर करनीदान आद री जोधपुर राज रै पेटै माथा कटावण री विगत बतावतां लिखियो है-

आयो काम ईसरो आबू,
जसवंत अरथ ऊजीण जसो।
गिरधर पड़ै दिली रिमगाहे,
कहौ चूक अवसाण किसो।।

धरमाट री लड़ाई मांय देवरिया रा जसराज वैणावत जिण बहादुरी सूं लड़ र वीरगति वरी उणसूं महाराजा जसवंतसिंहजी इतरा संवेदनशील होयग्या अर आंसू धारावां रै साथै मार्मिक हिरदै ऐ बोल निकल़िया कै “हे जसराज! थारी मोत रा समाचार सुण र जे म्हारी आंख्यां मांय रगत रा आंसू आवता तो ओ निष्ठुर संसार आपांरै आपसी हेत रो मोल जाणतो “–

रत जो आवत रार, वार न आवत वैणवत।
साचो हित संसार, जद तो मो जाणत जसा!।।

बारठ जसराजजी, जसवंतसिंहजी रै अभिन्न मित्र, सभासद अर एक जोधार रै रूप मांय, महाराजा रै जीव री जड़ी हो। जिणगत जसराज जस खाटण सारू जसवंतसिंहजी रै जंगी जोधारां रै भेल़ो रैय धरमाट मांय झाट झाली अर दुसमणां रा दांत खाटा कर र महाराजा री जस बेल बधाय खुद जूंझार होयो। इण खातर महाराजा तो सरायो ई उण बगत रै मोकल़ै कवियां ई विरदायो। राठौड़ अखैराज स्यामसिंघोत आपरै एक गीत मांय जसराज री वीरता रो चित्राम मांडतां लिखियो है-

गजछट कटि गरट आहरट।
प्रिसणां घट उलट पुलट।
धारा पछट सार झट धोवट।
विकट बारहट आद वट।।

इणी धरमाट री लड़ाई मांय खिड़ियो जगमाल आपरी करवाल़ रो तेज बताय महाराजा रै सारू वीरगति रो वरण कियो। इण समर लाडै री कीरत समकालीन कविया गुमर रै साथै उकेरी है। जगनाथजी सांदू(भदोरा) अर नारायणजी मोतीसर रचित गीत घणा चावा है। वि. सं.1715 मांय हुई ऊजीण रै धरमाट री इण लड़ाई मांय जगमाल लडियो अर अरियां नै झाटां सूं झाड़़ र खुद झड़ियो। खिड़िये हदजी रै इण सपूत सूरमापणै री छाप छोडी। इण भड़ री स्वामीभक्ति अर तरवार शक्ति माथै अनुरक्ति दरसावता जगनाथजी सांदू लिखै-

खिड़ियो चे जिको जगत आखतो,
चोरंग ची वेल़ा अणचाल।
भांजै धुरी नांखियो भारथ,
जाडां विचि गाडो जगमाल।।

इणी धरमाट री लड़ाई मांय महाराजा जसवंतसिंहजी रै कानी सूं महावीर अखैजी बारठ रा च्यार पोतरां ई आपरो शौर्य दरसायो। भीम, आईदान, भगवान अर आसै बारठ आपरी वंश परंपरा मुजब सामधरम पाल़ियो अर उजवाल़ियो। कड़कती असिधारां रै बिचाल़ै इणां अतंस मांय हार नीं धरी बल्कि अपछरावां रै हाथां वरमाल़ावां धारण करी। इण सूरां री बातां गीतड़ां मांय कायम है-

मंडै भीम आईदान भगवान आसो मंडै,
धजवड़ां लोहड़ां हीच धाया।
जोधपुर तणै छल़ च्यार मांझी जुड़ै,
अखै रा पोतरा काम आया।।

उणी आपाधापी रै जुग मांय मुगल सेना कासी रै शिव मंदिर नैं ढावण पूगी। उण बगत रतनू महेस काशीनाथ रा दरसण करण गयोड़ो हो। अत्याचारी सेना नै देख खुद महेस, सहायता री आस मांय रतनू महेस साम्हो जोयो। उण बगत रतनू रै इण कुल़ोधर महेश, महेश री मदत करण नै मरण तेवड़ियो। अबीहवीर महेश धर्म री धजा अखंडित राखी अर रजवट नै मंडित कियो। उण निडर री निडरता नै बखाणतां किसन कवि रा ऐ आखर आज ई अमर है। उण बगत खुद शिव रै मूंडै सूं वाह!वाह! निकल़ पड़ियो। कवि रै आखरां मांय-

ईसर वचन सांभल़ै अतनू,
कर मतनू दढ समझ कटै।
तोड़ो खल़ां जवन घड़ ततनू
रतनू सिव मुख दाद रटै।।

जद महाराणा जगतसिंह अर किणी पदमसिंह राठौड़ बिचाल़ै लड़ाई हुई उण बगत पदमसिंह रै साथै आसियो दयाराम घणी बहादुरी बताय काम आयो। आसिये दयारामजी री वीरत री वरणाव रा गीत उपलब्ध है-

नल़ां पड़ धमक त्रंबाल़ां निद्रस,
राण जगो कमधज सिर रूठ।
भार पड़ंत पदम नह भागो,
दयाराम खग वागो दूठ।।

रामपुरै राव वैरीसाल मद मांय चूर होय जद निर्दोष चारण पूरणदास महियारिया (धधल़ाई) नै मार नांखियो। वैरीसाल जैड़ै ताकतवर सूं पूरणदास रा घरवाल़ा पार नीं पड़ सकिया अर वैर आयो नीं होयो। जद सताजोग सूं सांदू मालैजी रो पोतरो अर सांवतसी रो सपूत भैरूंदासजी सांदू महाराणा राजसिंह रै दरबार मांय हाजर होयो अर आपरी वाणी रो चमत्कार बतायो। वैरीसाल सूं अदावत राखणिया महाराणा, भैरूदास जैड़ै अक्खड़ वीर नै पूरणदास महियारिया री हत्या री बात बतावतां आ कैयदी कै “बाजीसा चारण री ताकत जीब मांय होवै, हाथां मांय नीं ! जे ताकत हाथां मांय होवती तो पूरणदास कुत्ते री मोत क्यूं मरतो? कोई तो चारण उणरो वैर अजै तक ले लेतो कै नीं ? ” स्वाभिमानी वीर अर जातीय गौरव नै मंडण वाल़ै भैरूदास नै आ बात अखरगी। उण वैर लेवणो तेवड़ियो अर आपरै तीनूं बेटां नै लेय र ओ महाभड़ चंद्रावत वैरीसाल सूं जाय भिड़ियो। पूरणदास रो वैर लियो अर जात मांय नाम कमायो। किणी कवि भैरूदासजी री अडरता नै कितरै सतोलै सबदां मांय सराई है-

मूरखपणै न मोल, मोल नहीं मांटीपणै।
सारी बात सतोल, तीनूं बेटा अर आपतण।।

महावीर भैरूदास माथै लिखिया समकालीन कवियां रा गीत घणा चावा है। कविवर चुतरा मोतीसर, जीवण कल्ला, आदरै साथै भल़ै ई अज्ञात कवियां रा गीत मिलै। डिंगल़ रै सुविख्यात कवि जीवण कल्ला रै आखरां मांय-

पूरा वैर काढतै पूरा,
सूरा भला जगत साधार।
महियारियां तणै सिर माथै,
ओ सांदुवां तणो उपगार।।

आ ई बात चुतराजी मोतीसर लिखै-

सांवत रा बधियो सिरदारां,
आछी रीत उजाल़ी,
पूरा री वाहर कर पूरी,
सांदू री सुजड़ाल़ी।।

बाघो गा़गणियो ई महावीर होयो। इण सूरमै किणी लाखणसिंह रै पखै रैय रणांगण मांय काम आयो-

असपत घघरन वड समधरियां,
हैमर दल़ हाथियां हमस।
लाखा साथ बाघडौ लीजै,
वसुतल़ मांही पैंतीस वंस।।

जय जंगल़धर पातसाह री पदवी खाटणिया जंगल़धर रा जसधारी नरेश कर्णसिंह चारणां रै चरित्र री कद्र करणिया होया। गांम सिरुवै रो रतनू मान इणांरै अठै घोड़ा लेय आयो। मान रतनू ई मरटधारी अर तेग रो धणी हो। कर्णसिंहजी रतनू मानजी नै दांतली गांम देय पूगतो सम्मान दियो। कर्णसिंहजी उण बगत पातसाही सेना रै साथै दक्षिण अभियान मांय भेल़ा हा, उण बगत रतनू मानजी ई साथै हा। उठै हुई लड़ाई मांय जद पांच जवनां अचाणचक दरबार माथै हमलो कियो उण बगत ओ वीर उठै ई हो। आपरी तरवार री धार सूं पांचूं ई जवनां नैं खांडेला देय खुद ई वीरगति पाई-

भारी तेगा किय भल, पा्ंच जवन इक पात।
दाखां रतनू द़ांतली, इल़ जेतै अखियात।।
रतनू कीधा रीत सूं, भल तेगा पँच भाव।
सौभा रखीस सूरमै, इल़ पर अम्मर नांव।।

खारी रो बारठ अचल़सिंह मोटावत महाराजा जसवंतसिंहजी रै सारू फतियाबाद रै झगड़ै मांय जूझ वीरगति पाई। किणी कवि लिखियो है कै राठौड़ां रै सारू लड़णो दूदा रा पोतरा आपरो फर्ज मानै अर ओ ई कारण है कै आपरी भागीदारी सदैव निभावता रैया है-

दूदाहरो बिचै देसोतां,
धरा सुद्ध मन बात धरी।
वेढ-वेढ अगलूणी वारी,
खारी री इक हैंस खरी!!

ओरंगजेब री कुदीठ सूं जसवंतसिंहजी रै कुंवर नैं सुरक्षित निकाल़ण मांय जितरी महताऊ भूमिका मुकनदास खीची री है उणसूं ई बत्ती भूमिका मुकनदास नांधू (सुरपाल़िया) री है। पुराणा दस्तावेज उपलब्ध है जिण मांय मुकनदास नांधू री स्वामीभक्ति अंकित है। मुकनदास नांधू बाल़क अजीतसिंह नै जोगी रो रूप धार ओरंगजेब रै कुड़कै सूं काढण वाल़ो आदमी हो पण आज इण बात रो पूरो श्रेय मुकनदास खीची रै नाम अंकित है। उण बगत दिल्ली मांय इण पेटै हुई झड़फ मांय मीसण सांमदान अर रतनदान अजीतसिंह रै सारू काम आया। किणी कवि कैयो है कै जितरो चावो दुरगादास राठौड़ है उतरा ई चावा ऐ दोनूं चारण भाई है-

दो चारण चावा दुनी,
ज्यूं चावो दुरगेस!!

जद ओरंगजेब, महाराणा राजसिंह माथै चढ आयो अर रुहिल्लखां रै नेतृत्व मांय उदयपुर री आबरू लूटण नै टुकड़ी मेली। उण बगत राजसिंह गढ खाली कर र सुरक्षित जागा गया परा पण इणांरो पोलपात अर सम्मानित कवि सैणूंदा रा सौदा नरपालजी अमरावत पोल़ छोडण सूं मना कर दियो। नरपाल कैयो कै ‘म्हारै वडेरां नै राणां पोल़ इण खातर नीं भोल़ाई ही कै जद इण माथै भार पड़ै अर म्हे बांठां पग देवां!! पोल़ तो मरियां छोडूंला ! ‘ जगदीश मंदिर री रुखाल़ी करतो ओ नर-नाहर फौजां रो मांझी बणियो अर आंझी बगत मांय उदयपुर रो नाक ऊंचो कियो। त्रिपोल़िया अर बडी पोल़ रै बिचाल़ै जूझतो ओ वीर मुगलां री कंवारी घड़ परणीज मेवाड़ी माण सारू मर मिटियो पण मुगलां रै डर सूं डर र हटियो नीं!! हटतो कीकर? जिण पोल़ रो लूण खायो उण नै आफत मांय एकली उदास कीकर छोडतो? इण मरद पोल़ री प्रतिष्ठा अर उणरै प्रति निष्ठा रै कारण पग आगे ई दिया लारै नी!! इणी भावां नै किणी कवि इणभांत प्रगट किया है-

कहियौ नरपाल़ आवियां कटकां,
धोम छडाल़ धराखै धोल़।
पोल़ वडा गज गांम पावतो,
पड़ियां भार न छोडूं पोल़।।

जितै तक निडर नरपाल रै पिंजर मांय प्राण रैया उतै तक मुगल ‘दाणैराव’ री दिवार रै ई हाथ नीं लगा सकिया। किणी दूजै कवि रै आखरां मांय-

दांणैराव देवरै दाणव,
ऊभै नरू न सकिया आय।।
**
अमरवत बात राखी अमर,
दल़ बिचकर दरियाव रै।
पाड़िया नरू पड़ियो पछै,
देवल़ दाणैराव रै।।

सौदा उम्मेदजी ई सामधरम पाल़ रणांगण रैयो। फतैसिंह बारठ लिखै कै जे तूं धणी नै अरियां रै बिचाल़ै छोडर घरै आ जावतो तो सूरापणै सूं विश्वास ई उठ जावतो-

जे तूं धणी साथ नह जातो,
घर आतो छोडै घमसाण।
नटता जण जण भाख निराल़ा,
सूरापण वाल़ा सहनाण!!

सैणूंदा रा ई सौदा नरसिंहजी धरा रै कारण जुड़ियै भारथ मांय रूकां झाली पण डिगियो नीं। किणी कवि कैयो है-

रथ खंचियो गैणांग रिव, धर कज मचियो धींग।
रचियो भारत रूकड़ां, नह मुचियो नरसींघ।।

ईंदोकली रा बारठ चांदोजी देदावत रो नाम ई चावो है। बीकानेर अर नागौर रै राजावां रै बिचै हुई ‘मतीरै री राड़ ‘ नैं रोकण कारण इण त्यागी पुरुष अखैजी रो नाम ऊजल़ कियो।

चांदोजी सीलवै रै आसियां रै अठै परणीज र आपरै गांम पाछा जावै हा। आगे सीमा माथै देखियो कै दोनां कानी री सेनावां भिड़ण सारू आखती पड़ै ही। कवि घोड़ै सूं उतर लड़ण रो कारण जाणियो, तो ठाह पड़ी कै फगत एक स्याल़ियै रै खज सारू आपस मांय भाई, भाई नै मारण कमर कसियां ऊभा है।

चांदैजी दोनां कानी रै मौजीज राठौड़ां नै कैयो कै “आपस मांय एक मतीरै रै कारण मरो मत, थां दोनां रै म्है चारण हूं, अर आदरणीय हूं सो ओ मतीरो मांगियो म्हनै दिरावो।

आ बात सुण बीकानेरियां तो हां भरली पण नागौरियां कैयो कै “बाजीसा ! नवा परणिया हो, मूंछां ई पूरी फूटी नीं है सो मरण सूं डर रैया हो, क्यूंकै आपनै ठाह है कै नागौर री धरा मांय बैठा हो सो नागौर साथै लड़णो पड़सी।

चांदो तो कुल़ रो चानणो हो, बलाय रो बटको हो। स्वाभिमानी सूरमो नागौर रै सूरमां साथै हरावल़ मांय लड़तो आपरी मातभोम रो गौरव मंडण री कामना लियां रणांगण मांय वैरियां नै पटक रणसैज सूतो। इण मछराल़ै मरद रो महादेव आघ कियो। धुरजटी कलंकी चांद नै माथै सूं हटायर इण देदेजी रै सपूत निकल़ंक चांद नै सिर चढायो अर वीर रो गौरव बधायो-

चढ लोहां लाणत नह चाढी,
घावां समहर कीध घणो।
समंद तणो ससि तिलक न सौभै,
तिलक न्रिमल़ ससि देद तणो।।

चांदैजी री अडरता नै बखाणतां किणी दूजै कवि लिखियो है कै चांदै आपरी दाड़ी चैरावण सूं पैला ई दुसमणां री दाड़ी बाढी-

दाढी दाढाल़ैह, चांदै चैराई नहीं।
बाढी बाढाल़ैह, दुजड़ां मूंडै देदवत।।

नागौर अमरसिंहजी महा स्वाभिमानी अर अबीह वीर हा। मुगल दरबार मांय वीरता बताय जिको सुजस खाटियो बो आज ई अमर है। अमरसिंहजी रै सुंदरदास बीठू (दियातरा) मर्जीदानां मांय। एकर कठै ई अमरसिंहजी पड़ाव दियो। रात रा रक्षक रै रूप मांय विश्वासपात्र सुंदरदास री जिम्मेदारी। घोर अंधारै मांय एक घाती अमरेश रै घाव करण छापल़तो आयो अर तंबू फाड़ बड़ण लागो उण बगत सूरमै सुंदरदास आपरी समसेर सूं उणरो सिर झाटकै सूं तोड़ स्वामी री रक्षा करी। किणी कवि रै आखरां मांय-

आय चोर अमरेस री, फाड़ी तंबू कनात।
सिर तोड़्यो समसेर सूं, हद सुंदर रा हाथ।।

अमरसिंहजी, सुंदरदासजी री इणी वीरता सूं राजी होय झोरड़ा गांम दियो-

अमरेस दियो सांसण अचल़,
सुकवि सुंदरदास नै।।

महाराजा अजीतसिंह किणी सुजाणसिंह री छतरी उदावतां रै कैणै मांय आय पटकावण रो आदेश दे दियो। उण बगत भोपतजी खिड़िया रा सपूत तेजसी उण छतरी कारण मरण संभियो अर सनातनी संबंधां री रुखाल़ी करी-

तिणवार सकव भोपत तणै,
और नहीं करवै इसी।
सुजाण तणी छतरी सिथर,
तिण दिन राखी तेजसी।।

रूपावास रा बारठ अमरजी धरा रै कारण असमरां संभाई अर वीरगति पाय कीरत पाई। भदोरा रा मोतीसर रोड़जी लिखै कै अमर नै विधाता रै घड़ियो शरीर दाय नीं आयो इण सारू उण तरवारां सूं शरीर पाछो घड़ायो-

विजैराम रै बेढ धुबतां जमी वासतै,
भड़ां बध अणीरा होय भमरा।
वेह घड़ियो जको न आयो दाय वप,
असमरां घड़ायो फेर अमरा।।

महाराजा अभयसिंहजी मरती बगत मारवाड़ रै मौजीज सिरदारां सूं वचन लियो कै म्है मरियां पछै ई म्हारै बेटे रामसिंह नै स्वामी मान र पख मांय ऊभा रैवोला, बदल़लो नीं। राठौडां वचन दियो उण बगत लोल़ास रा बारठ इंद्रभाण जसावत ई उठै हाजर हा, उणां ई वचन दियो। जद बगतसिंह अर रामसिंह रै बिचाल़ै जोधाण नै लेय तरवारां तणी उण बगत ओ वीर बगतसिंह रै दूठपणै सूं नीं तो डरियो अर नीं तरवारां देख पाछो फुरियो। नकतूण्यां सांस रैयो जितै तक पग पाछा नीं दिया अर आपरै वचनां री रुखाल़ी सारु रामसिंह रै पख मांय लडियो अर झड़ियो। भदोरा रा मोतीसर गिरधर रै आखरां मांय इंद्रभाण रै सकड़ापणा रा बखाण पढणजोग है–

भरोसो हुतो अप्रमाण अणमापरो,
प्रगट वरदाय रो तेज पुरणां।
जसावत कायरोपणो नह जणावै,
फरूकै बायरो तेज फुरणां।।

इंद्रभाणजी रो ई भाई बारठ रुघनाथ महा रोसिलो वीर होयो। अभयसिंहजी रै साथै अहमदाबाद री राड़ मांय बहादुरी सूं लड़ियो। कविया करनीदानजी लिखै-लड़ै जसराज तणो रुघनाथ।

ऐ ई रुघनाथजी मेड़ता री राड़ मांय महाराजा विजयसिंह रै कानी सूं लड़िया। माथो कटियां पछै ई जिणगत जूझ वीरता बताई बा आज ई सोनलिये आखरां मांय अंकित है-

मंडी राड़ हद मेड़ते, हद्द बताया हाथ।
सिर कटियां धड़ जूझियो, रँग बारठ रुघनाथ।।

इणी लड़ाई मांय मथाणिया रा बारठ गिरधर दास, ईंदोकली रा बारठ दलपत, विजयकरण आद ई जूझता थका काम आया। उल्लेखणजोग बात आ है कै दलपतजी बारठ कदै ई बगतसिंहजी रै खास आदम्यां मांय हा पण एक दिन बगतसिंहजी चामुंडा रै थान आगे पाडे री बली एक ई झाटकै सूं कर दीनी। उण बगत उठै हाजर सिरदार अर कवेसर खमा! खमा! रै होकबै सूं धरा गूंजाय दी पण उठै ई हाजर दलपतजी एक आखर ई नीं बोलिया। आ बात बगतसिंह रै सारू असहनीय। उणां पूछियो “बाजीसा आपरी कांई राय है इण झाटकै बाबत ?

दलपतजी कैयो “ठीक ई कियो हुकम!!

“इणनै ई आप ठीक कैवो तो पछै ठावको कीकर होवै ? आप कर र बतावो !” दरबार, दलपतजी नै कैयो।

दलपतजी नै रीस आयगी अर कैयो “हुकम ! आपरै बूकियां मांय गाढ है ! ओ तो बापड़ो पाडो हो! आपरै हाथां तो बापरो माथो ई आगो जा पड़ियो “-

बो बगतो बा ई बगत, बा री बा तरवार!
बाप कटै जिण बाहुंवां, भैंसे रो की भार!!

इण सबदां रै साथै ई उठै एक र तो सणणाटो पसरग्यो। थोड़ी ताल़ पछै बगतसिंहजी बोलिया “आप चारण हो ! जणै म्है हमे आगली कीं नीं कर सकूं पण अबार रा अबार नागौर छोड दिरावो।” दलपतजी उणी बगत नागौर छोडतां कैयो “नाक भींच निकल़ूं जितै, (थारो)नागाणो नरियंद।

दलपतजी बीकानेर आयग्या जठै महाराजा गजसिंहजी घणै सनमान साथै राखिया। इण बात सूं रीसाय बगतसिंहजी चारणां रा गांम खालसे करणा तेवड़िया पण छीले रा बारठ भोजराजजी रै प्रभावशाली व्यक्तित्व रै कारण ऐड़ो कर नीं सकिया। किणी कवि कैयो है-

भोज ऊभां थकां नोज सांसण भिल़ै,
भोज पड़ियां पड़ै सांसणां भार।।

पण ज्यूं ई भोजराजजी देवलोक होया अर ज्यूं ई बगतसिंहजी चारणां रा गांम जब्त कर लिया। पण आ बात गीरबैजोग है कै जद महाराजा विजयसिंहजी री बगत मराठां हमलो कियो अर मेड़ते मांय दोनूं सेनावां रो मुकाबलो होवण वाल़ो हो उठै जोधपुर रै खातर बारठ दलपतजी बीकानेर सूं गया। किणी पूछियो कै “आपनै तो देश निकाल़ो है पछै उठै जावण री कांई जरूरत?” दलपतजी कैयो कै “देश मांय रैवणो मना है, पण देश कारण मरणो मना थोड़ो ई है !!”

बगतसिंहजी रै बेटे विजयसिंहजी रै शासनकाल री बगत वि.सं.1775 मांय मेड़ते माथै मराठां आक्रमण कियो। उण बगत देशभक्त कवि दलपतजी आपरै भाई करनजी रै सपूत विजयकरण साथै मेड़ते पूग र धरती रै कारण मरणो आपरो धरम मानियो। दोनूं बाप-बेटां मातभोम अर कोम रो गौरव मंडतां थकां देह छंडी अर विजय झंडी फरकाई। कवेसरां इण कवि रत्न री वीरता नै वरेण्य मान र मरूधरा रूपी समंद रो अणमोल रत्न कैयो-

दलपत रतन खोल चख देखो,
मुरधर रतन अमोलख मांह।।

महा स्वाभिमानी सूरमै दलपत आपरी दाटकता कायम राखी। जिणरा साखी डिंगल़ कवियां रा रचिया गीत है-

दोहूं बाप बेटे दल़ां भेल़िया अथाह दल़ां
केवी झाड़ अथाहां अथाह क्रोध कीध।
जोय राड़ कहै विजो वाहरै पिता रा जेठी
जगाहरो कहै वाह करन वाल़ा जोध।।

दलपतजी रै संस्कारां सूं सींचित बारठ विजयकरण रो सबल़पणो समकालीन कवियां री रसना सूं घणै गौरव रै साथै उद्घाटित होयो। मेड़ते री राड़ मांय ओ औनाड़ जिण बहादुरी सूं लड़ियो बो अंजसजोग। घणै कवेसरां आखर जोड़िया। मराठी सेना नै धूड़ चटाय र ओ सूरमो सुरग रो राही बणियो-

हुई मेड़ते राड़ विजपाल आपा हुतां,
भिड़ज उप्पाड़ दल़ लोह भिल़ियो।
विढण सूरापणै आंक वल़िया विजा,
विजा देवतपणै आंक वल़ियो।।

जिका सूर देशभक्ति री आण लियां घमसाण मांय सुरग रै विमाण चढै उणी सूरां री आण लेय लारला “भड़ बांधै तरवार। ” ऐड़ा मिनख ई अणी सूं जीवै अर पाणी कायम राख मोत रो वरण करै। बारठ दलपत जैड़ा सपूत ई जातीय गौरव री अभिवृद्धि करतां थकां आपरा बोल थिर राख सकै है-

बारठां रखाया इल़ा में मोटा बोल।।

आधुनिक कवि पुष्पेंद्र जुगावत रै सबदां मांय-

दलपत धिन ऊ दीहड़ो,
जलम्यो कुळ उजवाळ।
मुलक हेत मरणो कियो,
भलपण ऊंची भाळ।।

महावीर रामाजी सांदू री संतति री रगां मांय तो वीरता रगत रल्योड़ी है। महाराजा विजयसिंहजी री ई बगत मांय सिहू रा सांदू करनीदानजी रा सपूत दो सगा भाई तेजदानजी अर सैंसकरणजी, चंडावल़ ठाकरां रै भेल़ा मराठां सूं लड़ता थका सामधरम अर देशभक्ति नै ऊजल़ कर जात रो नाम विमल़ कियो अर कमल़ शंकर नै चढाय जमारो सफल़ मानियो। इण सूरमां समरभोम मांय कमर कस असमर रो तेज बतायो बो गीतां मांय अमर है। किणी कवि, तेजदान री वीरता नैं बखाणतां लिखियो-

मनां ऊगटै खार मारहटां अनै मारवां,
नाग तोफां हलै फाब नेजा।
रिमां छक देख कियो समै राड़रै,
तसां खग धाड़रै धाड़ तेजा।।

जिणगत बडो भाई वीर उणीगत छोटो भाई समर सधीर। राजस्थान रो कवि ऐड़ै आंटीलै नरा री सराह कर वाह पावण रो अभिलाषी रैयो है। कवि, सैंसकरणजी रै शौर्य नैं बखाणतो लिखै कै धुबती तोपां रै साम्हीं समर में तैं जैड़ो वीर ई तरवार झाल मौजां माणतो अरियां नै ई आणंद दिराय सकै-

त्रिजड़ झाल़ धुबनाल़़ गहरां गुमर सूरतन,
अनपहां उठै लहरां अनेके।
समहरां हंस लहरां लियण सहसमल,
आठ पहरां रहै अंस एकै।।

संभवतः इणी लड़ाई मांय भदोरा रा सादू गिरवर दानजी ई दुसमणां रै आडा पग रोप रणांगण मांय तरवार बजाई। कवि लिखै कै जठै दूजा कई मरद तरवर रै सूकै पत्तां दांई डरता नाठ छूटा उठै ई ओ सांदू गिरवर रै ज्यूं स्थिर रैयो-

नर दूजा तो नाठगा, तरवर पत्ता तेम।
सांदू तूं रहियो सथिर, गिरवर गिरवर जेम।।

भीमखंड रा गाडण करनीदान, कुराबड़ रावजी रै साथै मराठां सूं लड़िया। रणांगण मांय इण मारकै घणी वीरता बताई। समकालीन घणै कवेसरां सराई। रणांगण में रावजी माथै उरड़तै एक मदछकियै मैंगल़ नै कटारी पोय मार आपरो नाम अखी कियो। मोतीसर दानजी लिखियो है-

खंड खंड चावो कियो भीमखंड,
करनै बाय कटारी।।

सिरै डिंगल़ कवि महादानजी मेहडू ई अलंकृत डिंगल़ गीत लिखर इण महावीर नै समर्पित कियो। सबद-सबद मांय वीरता रा प्रतख दरसण होवै-

बकारां मार मारा बखत बाढणां,
वड पुखत लाडणां लाड वाल़ी।
आवतां आडणां गयंद चाली अखत,
उण बखत गाडणां राव आल़ी।।

इणी लड़ाई मांय ओ सामधरमी सूरमो सुरगगामी बणियो। सिरूवै रा कुशल़जी रतनू आपरा घोड़ा लेय वौपार करण निकल़िया। एक दिन कुड़की किलै मांय विसराम कियो। उण बगत कुड़की माथै अरियां हमलो कियो जठै रतनू कुशल़ आपरी रणकुशलता बताय कुड़की रो किलो कुशल़ राखियो-

काम कियो कुड़की किलै, जीत लियो हद जंग।
अमलां वेल़ा आपनै, रतनू कुशल़ा रंग।।

सिरूवै रा ई रतनू हरपाल़जी महा स्वाभिमानी मिनख होया। तेजमालजी भाटी, जैसलमेर महारावल़ री अनीत रा शिकार होय घणी बहादुरी सूं लड़तां थकां हरबूर मांय वीरगति पाई। रावल़जी तेजमालजी री पार्थिव देह नै दाग देवण सूं मना कर दियो। उण बगत रतनू हरपालजी ई उठै हा। उणां कैयो “तेजमाल तो म्हांरै मा जायै सूं बध र है, म्हें मरियां थोड़ा ई हां जिको दाग नीं देवां !!” रतनू हरपाल़ ऊनड़ां रै साथै मिल़ र महाभड़ तेजमालजी नै दाग दियो। उण बगत दो झीबा ई उठै हा, जिकै इण पेटे होई झाकझीक मांय रणखेत रैया। किणी कवि हरपालजी री वीरता नै वरेण्य मान र लिखियो है-

झीबां पाव झिकोल़िया, उड र गया अलग्ग।
पह रतनू हरपाल़ रा, परतन छूटा पग्ग।।

उलेख्य है कै भाटी तेजमालजी बो वीर हो जिकै मुसलमानां सूं रतनुवां रो वैर लियो। गुजरात रै कांठै दो रतनू अर दो वरसड़ां नै अकारण मुसलमानां मार दिया। एक रतनू मरतै किणी बैतीयाण नै कैयो-

दो चीचा दो वरसड़ा, रणखेतां रहियाह।
पंथी एक संदेसड़ो, तेजल नै कहियाह।।

ज्यूं ई तेजमालजी नै ठाह लागो बो वीर अजेज चढियो अर वैर लेय सनातनी संबंधां नै उजवाल़िया।
इणी खातर किणी कवि कैयो है-

तेजल रामनरंद रा,
तो हत्थां बल़िहार।।

रतनू सलजी ई महावीर होया। किणी चहुवाण रजपूत रै साथै लड़तां ओ वीर आपरी कुल़वट ऊजल़ करग्यो। डालूरामजी देवल नेतड़ास लिखियो है-

जमी लालंबरी खूटा मजीठ माटलै जेहा,
हरख्खै अच्छरां वीण वाटलै हुसेर।
संभरां लूण साटै रतन्नूं आंटलै सीधो,
सीस रो माहेस कीधो कांठलै सुमेर।।

चौपासणी रा कुशल़जी रतनू ई नीति निपुण अर सामधरमी कवि हा। जद महाराजा मानसिंहजी (जोधपुर) बिहारीदास खिची री किणी बात माथै रीसायग्या अर उणनै मारण रो मतो कियो। उण बगत बिहारीदास बीहतो इन्नै-बिन्नै घणो ई नाठियो पण महाराजा मानसिंह रै गुनहगार नै शरण देय आफत नै कुण तेड़ै? छेवट बिहारी दास डरतै साथीण हवेली मांय ठाकुर सगतीदानसिंहजी भाटी रै अठै शरण ली। साथीण ठाकुर रजपूती रो रूप। कवि बुद्धजी आसिया लिखै-

रजपूती रुखसत हुई, पड़ मारग प्रतिकूल।
वाल़ी ढोलां बाजतां, सगतै नै सादूल।।

जद महाराजा मानसिंहजी नै खबर मिली कै बिहारी दास साथीण री हवेली मांय सरण ली है। साथीण ठाकुर शक्तिदानसिंहजी, महाराजा रै मर्जीदानां मांय। उणां कुशल़जी रतनू नै बुलाया अर कैयो “बाजीसा आपरै अर भाटियां रै घरूपो। आप ठाकुर साहब कन्नै जावो अर कैवो कै राज रै जुलमी नै सरण दैणै रो मतलब है राजद्रोह करणो। ” कुशलजी गया अर ठाकुर साहब नै पूरी बात बता र कैयो कै “राज सूं आप पड़पो नीं इण वास्ते खीची नै काढ बारै करो !” ठाकुर साहब पूछियो कै “आप आ सलाह म्हांनै घरूपै रै कारण दे रैया हो, पण आप एक चारण रै नाते बतावो कै सरणागत रै सारू राजपूत रो कांई कर्तव्य है ? ” कुशल़जी कैयो कै “राजपूत नै सरणागत री रक्षा करणी चाहीजै। ओ विश्वास कर र आप कन्नै आय ई ग्यो तो पछै मर पूरा दो !!

जैण लाज हम्मीर, मुवो जूझै रणथंभर!!

केहर केस भमंग मण, सरणाई सूहड़ांह।
सती पयोहर क्रिपण धन, पड़सी हाथ मुवांह।।

ठाकुर साहब कैयो “तो आप दरबार नै अरज करदो कै भाटी सरणागत खातर मरैला पण सरणागत नै कायरां ज्यूं सूंपैला नीं। ” कुशल़जी कैयो कै “जावणो भल़ै कठै? उणां म्हनै आप कन्नै, आपरो जाणर मेलियौ है तो ऐड़ी अबखी बगत मांय म्है आपनै छोडर कठै जावूं? हमें भुगत भेली ज है !

महाराजा चढिया, राटक बाजी। रतनू कुशल़जी मोर्चे मांय आगल़ रैय आपरी कुल़वट ऊजल़ी करी। समकालीन कवि बुद्धजी आसिया लिखियो है कै कुशल रतनू जिण पोल़ मांय पोल़पात रै नाते जिकी सम्मान सरूप आगे रैयर भेंट लेतो उण पोल़ माथै भार पड़ियां मुदायतां सूं आगे बधर ई लड़ियो अर झाटां झाली-

मुदायतां रीझ लेतो सदा मोहरी,
मोहरी नेग में झोक मतनू।
मोहरीपणो निरवाहियो मोटमन,
राड़ में मोहरी लड़ै रतनू।।

बगसीरामजी रतनू लिखै-

महपत री फौज भाटियां माथै,
भड़ खीची आंटै भाराथ।
लड़तां कुशल़ आभ सिर लागो,
पारथ जिम वागो वड पात।।

खराड़ी रा खिड़िया अमरोजी ई किणी लड़ाई मांय बहादुरी बताय वीरगति वरी। हरनाथजी कोठारी आपरै एक मांय लिखै–

करी बात अखियात दध सात पहुती कड़ां,
पंचोल़ी माथ करतां पराजो।
पात अमरेस अरखेस मांटीपणै,
जातरो दिखायो भलो जाझो।।

गोधेल़ावास रा खिड़िया ईसरदासजी वीर पुरुष होया। रियां ठाकुर बगतसिंहजी साथै तुंगा री लड़ाई मांय जूझ र काम आया। समकालीन कवियां इण वीर री वीरता नै घणी सराई। महादान मेहडू, जादूराम आढा रै साथै मोतीसर कवियां रा घणा सतोला गीत चावा है। मोतीसर दलजी लिखै-

धारणो अडग लघुवेस व्रध धारियां,
चकारां बीससौ नीर चढबो।
गढपति मोहरां गजगाह थायो गरक,
गढपति बखाणै लड़ै गढवो।।

अदम्य साहस सूं लड़तो खिड़ियो ईशरदास परमजोत मांय विलीन होयो-

चमरां ढुल़ंतां जोत भेल़ो चानणोत।।

सुंदर दास दधवाड़िया ई वीर पुरुष होया। किणी लड़ाई मांय उणां घणी वीरता बताई। आपरी कराल़ करवाल़ सूं किणी विरड़ियै हाथी रा बटका करणो रो वर्णन एक गीत मांय उपलब्ध है। पिरागजी दधवाड़िया रै इण महामारकै सपूत री प्रशंसा करतां कवि लिखै-

सुतन पिराग भाग धिन सुंदर,
जगत ऊंचवै जुवो-जुवो।
हुवो बखाण पाण ज्यां हाथां,
हाथी हाथ समार हुवो।।

बलूंदा रा दधवाड़िया पदमजी ई नामी वीर मिनख हा। बलूंदा माथै आई किणी फौज नै बहादुरी बताय रोकी। गोल़ां री झाकझीक रै बिचाल़ै ओ सूरमो बडेरां री बताई राह बैय सामधरम पाल़ियो। कवि सायबोजी लिखै-

चकारां नेस चावल़ पदम चाढिया,
झाड़िया असुर खग लोह जुड़तां।
आद घर सीलगो करै धधवाड़िया
प्रचा सुध बल़ूंदै कांम पड़तां।।

दधवाड़िया जैड़ा कविता करण मांय पारंगत बैड़ा ई तरवारां चलावण मांय सिद्धहस्त। ‘अभैगुण’रा कवि प्रयाग सेवग अहमदाबाद री लड़ाई मांय बताई दधवाड़िया द्वारकादास अर मुकंददास री वीरता सूं अभिभूत होयर लिखै-

द्वारकादास मुकनेस दिक, धींग थका दधवाड़िया।
जित संभ कवित्त कहणा जिसा, तिसड़ा ई तरवारिया।।

जद एकलगढ माथै धाड़वी धाड़ो धाड़ण रै विचार सूं चढ आया उण बगत खिड़ियो करनीदान साम्हो जाय धाड़व्यां सूं भिड़ियो अर कीरत रो वींद बणियो। बांनै धूड़ भेल़ा किया अर पछै सुरग मांय जाय डेरा किया। उण सुभट नैं बखाणतां सैणूंदा रा सौदा भवानीदान लिखै कै राजपूत, रजपूती नै लोप एकलगढ नै लूटण रै विचार सूं चढ आया उण बगत खिड़ियो करनेस, महेस री माल़ा रो सुमेर बण उण कपूतां रो माजनो मटियामेट कियो-

पग-पग धड़ लोथां पड़ै, बक-बक घाव बहंत।
झड़ पड़ियो करनो जठै, हड़-हड़ मेस हसंत।।

मचायो धाड़व्यां रोल़ो ऊगतै ऐराण माही,
धुरां सजायो महीप वडांवड धाक।
राजपूतां लजायो सुभट्टां बट्टां जोस सारो,
वैरियां आगल़ां थट्टां हुवा हाको वाक।।

जद पोकरण री हवेली मांय भरी सभा मांय भाद्राजूण ठाकर इंद्रभाण छत्रियां री पुनीत परंपरा त्यागी अर अभागी, सांदू भोपाल़ दान नैं कावल़िया बकियो। स्वाभिमानी भोपाल़दान परिणाम री बिनां परवाह करियां, ठाकुर सूं जाय भट भिड़ियो। भरी सभा मांय ठाकुर रै सूरमावां रै साम्ही इंद्रभाण री छाती मांय कटार जड़दी। इण बात री खबर रात रै वालां पूरी मारवाड़ मांय पसरगी। वासणी रा बीठू बांकजी भोपाल़दान रै दाटकपणै नै सरावतां एक गीत लिखियो जिणरी ऐ ओल़्या उल्लेखणजोग है-

जाडाल़ा थंड में जबर, गाढाल़ा कर गाढ।
भोपाल़ा बाही भली, दाढाला जमदाढ।।

हुई बात अखियात पोकरण री हवेली,
लाज रख कटारी हूंत लड़ियो।
आठसौ नरां बिच मालहर आछटी,
पांचसौ कोस पल़लाट पड़ियो।।

सांदुवां रै इण सूरमापणै नै किणी कवि बखाणतां लिखियो है-

दादै बाही देवगढ, पोतै जोधपुरैह।
उवा कटारी आजदिन, सांदू माल घरैह।।

इण महाभड़ां रै टाल़ टीकमजी कविया बिराई, लूणोजी रोहड़िया सींथल, हरखोजी नगराजोत मूंजासर, भैरजी मीसण ओगाल़ा, अरजनजी किनिया सुवाप, मेहर दानजी सिंढायच माड़वा, करनीदानजी रतनू लूंबा रो गांम जोधजी बारठ तड़ला, धनजी लाल़स आकली, हणुवंतसिंह पदमावत सींथल़, विसन दानजी खिड़िया आद सतवादियां असत रै खिलाफ तत्कालीन शासक वर्ग द्वारा कियै समाज विरोधी कामां रै प्रतिकार सरूप घणी बहादुरी बताय तेलिया अर कटार कंठां कर जातीय गौरव नै अखी राखियो।
जैसलमेर महारावल़ रणजीतसिंह रै शासनकाल़ में चारणां सूं दाण लेवण रै विरोध में मेहरदानजी सिंढायच आपरो जिको आपाण बतायो बो आज ई चावो है-

जाय जैसाणै ऊपरै, जुड़ियो महिपत जंग।
अमलां वेल़ा आपनै, रेणव महरा रंग।।

महारावल़ रणजीतसिंह री बगत करनीदानजी रतनू दाण नीं देवण सारू कटार खाय आपरा प्राणांत किया पण थापित परंपरावां रो उल्लंघन सहन नीं कियो-

कटारी कीधी करां, जठै थरक्क जैसाण।
हैकंपत धरती हुई, रंग करन्ना राण।।

महाराजा रतनसिंहजी बीकानेर रै राज में हणुवंतसिंह पदमावत ई बहादुरी बताय पैला राज री टुकड़ी सूं मुकाबलो कियो अर छेवट चारणपणै री रीत सूं प्रीत पाल़ आपरी कीरत अमर करी-

आया अणचींतियाह, सांसण सींथल़ ऊपरै।
हाका हणवंतियाह, पदमावत तोसूं पलै।।

नगर रावत रै अत्याचार रै विरोधसरूप धनजी लाल़स आकली कटारी कंठां खाय वीरगति वरी। उण सपूत नै दूजै कवियां तो सरायो ई उणां रै पिता रामचंद्रजी लाल़स खुद मोद करतां कैयो-

धनिया धाराल़ीह, पहर गल़ै बिच पोढियो।
कर काबंल़ काल़ीह, राल़ी सिर रावत तणै।।
जो थूँ धनिया जाय, रजवट छोडै रामवत्त।
(तो) ठाढो मँगळ थाय, गँगाजळ ऊनो होवे।।

विसनदान खिड़िया गूलर ठाकरां री अजोगती बात सहन नीं करी अर गढ रै आगे आपरी आदू परंपरा पाल़तां थकां कटारी नै क़ठाहार बणाई-

कटारी विसनेस री, कंठ बकार जड़ीह।
तैं राखी खटवरण री, खिड़िया मूंछ खड़ीह।।

~~गिरधर दान रतनू “दासोड़ी”

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One comment

  • Nikhil kavia

    गिरधर दान जी के ज्ञान की जितनी तारीफ करी जाए उतनी कम है , वाह अदभुत लेख

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