डिंगल़ साहित्य साधकां रै नाम

राजस्थानी डिंगल़ साहित्य री साधना में जिकै साहित्य साधक लागोड़ा है वै नाम री नीं काम री वाट बैय रैया है।इणां री रचनावां में राजस्थान रै इतिहास, संस्कृति अर लोक भावनावां री सजोरी व्याख्या होई है।भक्ति ,संस्कृति अर प्रकृति रै पेटै इणां आपरी कलम रो कमाल दिखायो है।म्हारा कीं दूहा ऐड़ै ई साहित्य साधकां नैं समर्पित-
दूहा
गोविंद सुत कवियो गुणी, वसू वडो विद्वान।
गिरा गरिमा गजब्ब री, दाटक शक्तिदान।।१
संपादक शोधक सिरै, माधव भक्ति मन्न।
माधवहर देवल मुदै, साचो शुभ्भकरन्न।।।२
बात ख्यात अर विगत री, जाझी रखणो जाण।
सुखो सुतन शिवनाथ रो, सींथल़ में सुभियाण।।३
सगती री भगती सरस, धुर सबदां दे ध्यान।
आज बल़ाऊ आशियो, देखो डूंगरदान।।४
सहजपणो तन सादगी, दिल में नाही दंभ।
घूहड़ गुणधारी गिणो, आछो कवियण अंब।।५
डिंगल़ री बहणो डगर, पिंगल़ रो कर पान।
गाडण डांडूसर गुणी, देखो देवीदान।।६
आछी उकती ओपती, सुंदर सबदां साज।
सनवाड़ै मूहड़ सिरै, अरजण कवियण आज।।७
सिरजै साहित सरस मन, साचो कवी सुजाण।
चावै नगर चौपासणी, रतनू मोहन राण।।८
सोमेसर नखतो सुकव, बीठू अजरी बाण।
जोड़ डिंगल़ जुगबोध सूं, महि पाईयो माण।।९
मधुकर भंवरो माड़वै, ठावा आखर ठेल़।
कवित गीत दूहा कथै, सबदां अरथ सुमेल़।।१०
सहज भाव सबदां सधर, हिंवड़ै दैण हुलास।
झीबो कवियण झांफली, कवियण भल कैलाश।।११
~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी