दो गजलां -गिरधरदान रतनू दासोड़ी

१
एकर म्हारै गाम आवजै।
साथै थारी भाम लावजै।।
चांदो तारा बंतल़ करता।
हंसतो रमतो धाम पावजै।।
मिरच रोटियां मन मनवारां
काल़जियै रो ठाम पावजै।।
स्नेह सुरां री बंशी सुणजै।
तल़ खेजड़ आराम पावजै।।
फोग कूमटा जूनी जाल़ां।
परतख वांमे राम पावजै।।
विमल़ वेकल़ू धवल़ धोरिया।
कलरव मोर ललाम पावजै।।
सीर सबोड़ो मही घमोड़ो।
मधुरो सुर सरणाम पावजै।।
दीखै प्रीत कणूका अजतक
नेह नैण अठजाम पावजै।।
रूड़ी रागां पिचरंग पागां
ओलै गूंघट माम पावजै।।
सुख दुख एक सरीखा रैणा
कूड़ कपट नीं नाम पावजै।।
धरम तणो नीं गोरख ध़ंधो
करम तणो पैगाम पावजै।।
२
बस्ती मिनख विहूणी लागै।
ज्यूं- त्यूं कटती जूणी लागै।।
पढ लिख कितरा चातर बणग्या।
जूनी प्रीत अलूणी लागै।।
बैही झूंपा बैही बाड़ां।
पलटी धर आथूणी लागै।।
हिवड़ै हेत नहीं हिंवल़ासा।
हाथांं सैण धधूंणी लागै।।
जिण -तिण मूंडै मून पसरगी
तप र्यो जाणै धूंणी लागै।।
मन तो देख परायो होग्यो।
तन रै तन री कूणी लागै।।
पतियारो तो किणऱो करसां।
बातां सब री पूणी लागै।।
नेह छांनड़ी मुचगी भाई।
अब तो कीकर थूणी लागै।।
~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी