दो गजलां


गल़ी-गल़ी में रुल़ री कविता।
मोल विहूणी सुल़ री कविता।।
सबद आराधक भवन बणाग्या।
खेवट बिन आ खुल़ री कविता।।
स्वाभिमान नैं ऊंचो टांग्यो।
टेरां पर आ डुल़ री कविता।।
विपल्व रा जो बीज बावती।
धूण नीची कर जुल़ री कविता।।
पुरस्कार रै तोतक रासै।
दांत काढनैं लुल़ री कविता।
प्रेम राग बड भाग मानती।
जहर आखरां घुल़ री कविता।।
सत्ता रै सामै पग भिड़ती।
मिजल़ी हाकल चुल़ री कविता।।

पैला वाल़ा भाव कठै बै।
सबरी बोरां चाव कठै बै।।
राम आपरो स्वारथ भाल़ै।
नेह परखणा चाव कठै बै।।
रोप्या हा तो रोप जाणिया।
अंगद वाल़ा पाव कठै बै।।
तूंकारै आंख्यां झट तणती।
मूंछां वाल़ा ताव कठै बै।।
कागा बैठा करै कारोल़्यो।
हंसां वाल़ा राव कठै बै।।
नीर -खीर रो भेद नितारै।
इसड़ोड़ा उमराव कठै बै।।

~~गिरधरदान रतनू दासोड़ी

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